फूल तुमने जो कभी मुझको दिए थे ख़त में
उसके बगैर कितने ज़माने गुज़र गए
फूल तुमने जो कभी मुझको दिए थे ख़त में
वो किताबों में सुलगते हैं सवालों की तरह
मैं उस तरफ़ से अब भी गुज़रती तो हूं मगर
वो जुस्तजू, वो मोड़, वो संदल नहीं रहा
आप अगर यूं ही मुझे तकते रहे
नाम अपना आइना रख लूंगी मैं
याद उस शख्स की हर रोज़ रुलाती है मुझे
देख लेना मेरी तक़दीर भी चमकेगी ज़रूर
मेरी आवाज़ से रौशन ये ज़माना होगा
जगह मिलती है हर इक को कहां फूलों के दामन
हर इक क़तरा मेरी जां कतरा-ए-शबनम नहीं होता
आज अपनी पसंद के चंद अशआर पोस्ट कर रही हूं...उम्मीद करती हूं पढ़ने वालों को पसंद आएंगे...
15 अक्टूबर 2008 को 11:07 am बजे
रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे
याद उस शख्स की हर रोज़ रुलाती है मुझे
" ye shabd mujhe dil se rula gye.."
Regards
15 अक्टूबर 2008 को 11:09 am बजे
फिरदौस भाई , लाजवाब कविता । बहुत ही अच्छी लगी । क्या खूब लिख रहे हैं । आज जैसे ही ब्लागवानी पर आपइकी पोस्ट खोजने बैठा तुरंत ही ये दिख गयी । शुभ वर्तमान
15 अक्टूबर 2008 को 11:37 am बजे
जीना मुहाल था जिसे देखे बिना कभी
उसके बगैर कितने ज़माने गुज़र गए
waqai waqt aise hi guzar jata hai.
congrats
15 अक्टूबर 2008 को 11:53 am बजे
बहुत खूब
15 अक्टूबर 2008 को 11:56 am बजे
रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे
याद उस शख्स की हर रोज़ रुलाती है मुझे
बहुत अच्छी लाइनें हैं. फिरदौस बहुत अच्छा लिख रही हो. शुभ कामनाएं.
मै आपके इस हुनर से नावाकिफ था. लिखती रहें.
15 अक्टूबर 2008 को 1:09 pm बजे
अति सुन्दर !
15 अक्टूबर 2008 को 1:15 pm बजे
neeshoo जी फिरदौस भाई नही़ं हैं . महिला हैं वह . उनको यथायोग्य भाभी जी या बहिन जी कह सकते हैं आप .
15 अक्टूबर 2008 को 5:14 pm बजे
फिरदौस जी,
आप अगर यूं ही मुझे तकते रहे
नाम अपना आइना रख लूंगी मैं
बहुत खूब। वास्ती साहब कहते हैं कि-
खुद अक्स उलट जाये तो क्या दोष है मेरा।
मैं वक्त का आइना हूँ सच बोल रहा हूँ।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
15 अक्टूबर 2008 को 9:13 pm बजे
main blog ki duniya ka mahaz 8 din purana bashinda hoon. mujhe maloom nahin tha ki main ab tak aise khzane se mahroom hoon, jahan adab hi adab mojood hai. blog ki duniya waqai laajawab hai. omkar bhai ka shukriya, unhone hi mujhe is duniya se ru-ba-ru karya tha. shukriya omkar bhai. firdos aapki shyri acchi hai.
15 अक्टूबर 2008 को 10:38 pm बजे
जीना मुहाल था जिसे देखे बिना कभी
उसके बगैर कितने ज़माने गुज़र गए
क्या ख़ूब कहा है...
15 अक्टूबर 2008 को 10:54 pm बजे
firdausji,
chand ashar mein aapney jindagi ki haqeekat aur falsafa vayan kar diya hai. bahut achcha likha hai aapney lekin ye panktyan to bemisal hain-
जीना मुहाल था जिसे देखे बिना कभी
उसके बगैर कितने ज़माने गुज़र गए
आप अगर यूं ही मुझे तकते रहे
नाम अपना आइना रख लूंगी मैं
रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे
याद उस शख्स की हर रोज़ रुलाती है मुझे
16 अक्टूबर 2008 को 12:45 am बजे
फूल तुमने जो कभी मुझको दिए थे ख़त में
वो किताबों में सुलगते हैं सवालों की तरह
bahut badhiya...ye sher sabse jyada pasand aaya.
16 अक्टूबर 2008 को 11:20 am बजे
जीना मुहाल था जिसे देखे बिना कभी
उसके बगैर कितने ज़माने गुज़र गए
फूल तुमने जो कभी मुझको दिए थे ख़त में
वो किताबों में सुलगते हैं सवालों की तरह
मैं उस तरफ़ से अब भी गुज़रती तो हूं मगर
वो जुस्तजू, वो मोड़, वो जंगल नहीं रहा
हर शेअर...बेहतरीन...उम्दा...और दिल को छू जाने वाला...
27 अक्टूबर 2008 को 8:00 pm बजे
bahot khub bahot sundar likha hai aapne ...
arsh
4 अक्टूबर 2014 को 12:49 pm बजे
कल 05/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
5 अक्टूबर 2014 को 1:53 pm बजे
बहुत शानदार
5 अक्टूबर 2014 को 4:53 pm बजे
Bahut sunder likha hai har ashaaar behatareen .....