फ़िरदौस ख़ान
इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता. अपनी हिम्मत और लगन के बूते वह नामुमकिन को भी मुमकिन बना सकता है. इसकी एक बेहतरीन मिसाल है स्टीफ़न हॉकिंग, जिन्होंने असाध्य बीमारी के बावजूद कामयाबी के आसमान को छुआ. तक़रीबन 22 साल की उम्र में उन्हें एमियो ट्रोफिक लेटरल स्केलरोसिस नामक बीमारी हो गई थी. यह ऐसी बीमारी है, जो कभी ठीक नहीं होती. इसकी वजह से व्यक्ति का पूरा जिस्म अपंग हो जाता है, सिर्फ़ दिमाग़ ही काम करने योग्य रहता है. स्टीफ़न ने एक बार कहा था कि मैं भाग्यशाली हूं कि मेरा केवल शरीर बीमार हुआ है. मेरे मन और दिमाग़ तक रोग पहुंच नहीं पाया. हिंद पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित स्टीफ़न हॉकिंग एक महान वैज्ञानिक नामक किताब एक महान वैज्ञानिक से रूबरू कराती है. स्टीफ़न हॉकिंग न्यूटन और आइंस्टीन के समकक्ष ख़डे हैं. कॉस्मोलोजिस्ट, मैथेमेटिशियन, कैंब्रिज में ल्यूकेशियन प्रोफ़ेसर, अंतरिक्ष और ब्लैक होल से पर्दा उठाने वाले, आकाश में काले गड्ढे ढूंढने वाले, अंतरिक्ष के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगाने वाले स्टीफ़न हॉकिंग ने 12 मानद उपाधियां हासिल कीं और अनेक पुरस्कारों से उन्हें नवाज़ा जा चुका है. उनकी किताब ए ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम ने ब्रिकी के रिकॉर्ड क़ायम किए. उन्होंने ज़ीरो ग्रेटीविटी फ़्लाइट से अंतरिक्ष की यात्रा की.
यह किताब स्टीफ़न हॉकिंग की ज़िंदगी के विभिन्न पहुलुओं पर रौशनी डालती है. इसमें उनकी निजी ज़िदगी के अलावा उनके कार्यों का भी लेखा-जोखा है. स्टीफ़न हॉकिंग ने एक आम व्यक्ति की तरह ही ज़िंदगी को जिया. यहां रिश्तों में मिठास भी है, तो कहीं-कहीं क़डवाहट भी देखने को मिलती है, वजह चाहे जो भी रही हो. कहा जाता है कि कामयाबी पाना एक बात है और उसे पचा ले जाना दूसरी बात है. लगता है स्टी़फन के संबंध में भी यही हुआ. शायद वह अपनी कामयाबी को हज़म नहीं कर पाए. कहते हैं कि सफ़लता के घमंड में आगे चलकर उनका अनुसंधान कार्य कमज़ोर पड़ने लगा. उनकी हिम्मत और धैर्य हठ में बदलने लगे. हालांकि वह सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे थे, लेकिन उनकी अपेक्षाएं ब़ढने लगीं. जीवन के विभिन्न पहलू उन्हें प्रभावित करने लगे. अपनी इच्छाओं को पूरा करने में ही उनका अधिकांश समय बीतने लगा. किसी की बात अस्वीकार करना उन्हें कठिन लगने लगा. सभी का निमंत्रण स्वीकार करके हर जगह जाने लगे. विदेश यात्राएं, अलंकार, मेडल, सम्मान, प्रशंसा आदि सब एकत्र होकर स्टी़फन को अपनी पत्नी और बच्चों से दूर ले जाने लगे. उनके साथ जेन का विदेश जाना भी कम हो गया. इस कार्य को उनकी नर्सें करने लगीं. स्टीफ़न के जीवन में जेन की सहभागिता कम होने लगी. अपने बीमार पति को साहस देने, ढांढस बंधाने और प्रेरित करने का काम लगभग समाप्त हो गया. अब एक ही काम बचा था. उन्हें हर समय यह बताना कि तुम परमात्मा नहीं हो और न बन सकते हो. 1990 तक उनका वैवाहिक जीवन सामान्य चल रहा था. विवाह को 25 वर्ष पूरे हो रहे थे. अत: उन्होंने इसे एक महोत्सव के रूप में मनाने का निर्णय लिया, लेकिन दूसरी ओर अलग ही खिचड़ी पक रही थी. स्टीफ़न का रोमांस अपनी नर्स इलाइन के साथ ब़ढ रहा था. यद्यपि जेन इस संबंध को उसी प्रकार स्वीकार करने को तैयार थीं, जिस प्रकार स्टीफ़न ने जेन और जोनाथन के संबंधों को स्वीकार किया था कि इस प्रकार का संबंध गुप्त रहेगा. परिवार और बच्चों को कोई नुक़सान नहीं पहुंचाएगा, लेकिन शायद अब पानी सिर के ऊपर से गुज़र रहा था. अक्टूबर 1989 में लूसी फ्रेंच और स्पेनिश प़ढने के लिए ऑक्सफोर्ड चली गई. रॉबर्ट अपनी परास्नातक की पढ़ाई के लिए ग्लासगो चले गए. अवसर पाकर स्टीफ़न ने जेन को अपने अलग होने और इलाइन के साथ रहने की चिट्ठी थमा दी. दोनों आकस्मिक रूप से अलग हो गए, लेकिन दोनों में से किसी ने भी इस संबंध विच्छेद की सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं की और न संबंध विच्छेद का कोई कारण ही बताया. हालांकि स्टीफ़न ने अपने आपको बहुत भाग्यशाली माना है. उन्होंने अपनी पुस्तक ए ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम की भूमिका में स्वीकार किया है कि उनकी पत्नी जेन और बच्चों रॉबर्ट, लूसी एवं टिम की सहायता, सहयोग एवं प्रेरणा के बलबूते ही मैंने अपना साधारण जीवन जिया और इतना ऊंचा करियर बनाया. उन सबके सहयोग के बिना यह सब संभव नहीं था.
स्टीफ़न की ख्याति दिनोदिन ब़ढ रही थी. बसंत 1989 की बात है जब एक फ़िल्म निर्माता गोरडन फ्रीडमेन ने स्टीफ़न के सामने उनकी किताब ए ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम पर फ़िल्म बनाने का प्रस्ताव रखा. स्टीफ़न तैयार हो गए, लेकिन उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि उनकी फ़िल्म भी उनकी किताब की तरह ही होनी चाहिए, यानी फ़िल्म विज्ञान पर हो, वैज्ञानिक पर नहीं. आख़िरकार फ़िल्म की शूटिंग शुरू हुई तो स्टीफ़न ने महसूस किया कि कई साक्षात्कार कार्यक्रम और दृश्य, परिवार और दोस्तों के साथ फ़िल्माए जा चुके हैं, लेकिन यह बायोग्राफ़ी तो आधी ही है. यानी उनकी पत्नी का इसमें कोई योगदान नहीं है. जेन से संपर्क किया गया और उनसे फ़िल्म में शामिल होने का अनुरोध किया गया, लेकिन जेन ने इस प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया. शायद वह नहीं चाहती थीं कि उनकी व्यक्तिगत जीवन कैमरे के सामने आए. इस संबंध में स्टीफ़न ने भी ख़ामोशी अख़्तियार कर ली. अकादमी ऑफ़ मोशन पिक्चर आर्ट एंड साइन्स में 14 अगस्त, 1994 को इस फ़िल्म का प्रीमियर शो किया गया. फ़िल्म कामयाबी रही. इसके बाद स्टीफ़न और इलाइन मेसन ने 16 सितंबर, 1995 को शादी कर ली. इस शादी में जेन और स्टीफ़न के बच्चे शामिल नहीं हुए.
असाध्य बीमारी के बावजूद स्टीफ़न ने कभी हार नहीं मानी. एक साक्षात्कार में अपनी बीमारी के बारे में उन्होंने कहा था, मैं अपनी बीमारी के प्रति कृतज्ञ हूं, जिसके कारण मैं अपना पूरा ध्यान शोध कार्य में लगा सका और समय खाऊ कार्यों से बच सका. अगर मैं शारीरिक रूप से स्वस्थ होता तो शायद इतना न कर पाता. मैं अपनी इस बीमारी के कारण ही थ्योरिटिकल फ़िज़िक्स में काम कर सका, क्योंकि इस काम में मेरी यह गंभीर बीमारी कभी बाधा नहीं बनी. इसका मुझे संतोष है. उन्होंने कॉस्मोलॉजी विषय को अपना शोध विषय बनाया और ब्रह्मांड की खोज में लग गए. अभी तक ब्रह्मांड के ओर-छोर का पता नहीं लग पाया है. उन्होंने अपने साथी कीप और पर्सकिल के साथ मिलकर ब्लैक होल्स पर भी का़फी काम किया है. उन्होंने बताया कि ब्लैक होल में जो कुछ भी जाएगा, स्वाहा हो जाएगा.
फ़िलहाल अपनी दूसरी पत्नी इलाइन से तलाक़ के बाद वह अकेले जीवन गुज़ार रहे हैं. 8 जनवरी, 2012 को उनका 70वां जन्मदिन मनाया गया. लोगों का कहना है कि एमियो ट्रोफिक लेटरल स्केलरोसिस जैसी बीमारी के बाद किसी को 50 वर्ष तक जीवित रहते नहीं देखा गया. वह विकलांगों के लिए भी काम करते हैं. उन्होंने विकलांगों के लिए उपलब्ध तकनीक का प्रसार किया. इसके लिए उन्हें प्राइड मोबिलिटी की तरफ़ से क्वान्टम जेजी 1400 नाम की व्हीलचेयर भी मिली, जिसकी तुलना उन्होंने फ़ेरारी गा़डी से की. परमाणु शक्ति का इस्तेमाल मानव कल्याण के लिए करने के हिमायती स्टीफ़न चाहते हैं कि विज्ञान परमाणु की इस शक्ति को ऊर्जा के स्रोत के रूप में विकसित करे. बहरहाल, स्टीफ़न हॉकिंग की यह जीवनी जहां इस महान वैज्ञानिक से रूबरू कराती है, वहीं यह भी सबक़ देती है कि इंसान को कभी मायूस नहीं होना चाहिए. (स्टार न्यूज़ एजेंसी)