फ़िरदौस ख़ान
हिंदी सिनेमा की प्रतिभाशाली अभिनेत्री नूतन को अभिनय विरासत में मिला था. उनकी मां शोभना सामर्थ हिंदी सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं. नूतन भी अपने अद्भुत अभिनय के लिए जानी जाती हैं. उनकी सुजाता, बंदिनी, मैं तुलसी तेरे आंगन की, सीमा, सरस्वती चंद्र और मिलन आदि फ़िल्मों ने उन्हें भारतीय सिनेमा की महान अभिनेत्रियों के समकक्ष लाकर ख़डा कर दिया.
नूतन का जन्म 24 जून, 1936 को मुंबई में हुआ था. उनके पिता का नाम कुमारसेन सामर्थ था. घर में फ़िल्मी माहौल था. वह अपनी मां के साथ शूटिंग पर जाती थीं. रफ़्ता -रफ़्ता उनका रुझान भी फ़िल्मों की तरफ़ हो गया. वह भी बड़ी होकर अपनी मां की तरह ही मशहूर अभिनेत्री बनना चाहती थीं. उन्होंने बतौर बाल कलाकार 1950 में फ़िल्म नल दमयंती से अपने करियर की शुरुआत की. इसके साथ ही उन्होंने अखिल भारतीय सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. उनकी क़िस्मत के सितारे बुलंदी पर थे. नतीजतन, उन्हें मिस इंडिया का ख़िताब मिला. मगर फ़िल्मी दुनिया ने उन्हें कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी. उनकी मां शोभना सामर्थ भी उन्हें अभिनेत्री बनाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने अपने दोस्त मोतीलाल से बात की. मोतीलाल की सिफ़ारिश पर नूतन को फ़िल्म हमारी बेटी में काम करने का मौक़ा मिल गया. इस फ़िल्म का निर्देशन शोभना सामर्थ ने किया था. इसके बाद नूतन ने फ़िल्म हमलोग, शीशम, नगीना, पर्बत, लैला मजनूं और शबाब में अभिनय किया, लेकिन इससे उन्हें वह कामयाबी नहीं मिली, जिसकी उन्हें उम्मीद थी. फिर 1950 में उनकी फ़िल्म सीमा प्रदर्शित हुई. इस फ़िल्म में उन्होंने बाग़ी नायिका का किरदार निभाया था, जो चोरी के झूठे आरोप में जेल पहुंच जाती है और सुधार गृह में क़ैदी के तौर पर रहती है. इस फ़िल्म में बलराज साहनी ने सुधार गृह के अधिकारी की भूमिका निभाई थी. फ़िल्म बेहद कामयाब रही. इस फ़िल्म के लिए जहां नूतन ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेयर हासिल किया, वहीं हिंदी सिनेमा में अपने लिए एक ख़ास मुक़ाम भी बना लिया. यह फ़िल्म उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में शुमार की जाती है. वह हर तरह की भूमिकाएं बड़ी सहजता से कर लेती थीं. 1956 में प्रदर्शित फ़िल्म बारिश में उन्होंने काफ़ी बोल्ड सीन दिए. इसके बाद 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म दिल्ली का ठग में उन्होंने स्विमिंग कॉस्ट्यूम पहनकर सबको चौंका दिया. इसकी वजह से उनकी बहुत आलोचना हुई. इससे वह थो़डी परेशान भी हुईं, मगर वह जानती थीं कि अभिनय क्षमता के दम पर ही वह इस फ़िल्मी दुनिया में टिकी हुई हैं. उन्होंने अपना अभिनय स़फर जारी रखा. फिर 1958 में उनकी फ़िल्म सोने की चिड़िया प्रदर्शित हुई. फ़िल्म बेहद कामयाब रही और नूतन हिंदी सिनेमा में छा गईं. अगले ही साल 1959 में प्रदर्शित उनकी फ़िल्म सुजाता में उनके मार्मिक अभिनय ने उनकी बोल्ड अभिनेत्री की छवि को बदल दिया. सुजाता में उन्होंने अछूत कन्या का किरदार निभाया. इसके लिए भी उन्हें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से नवाज़ा गया. 1963 में प्रदर्शित फ़िल्म बंदिनी उनके करियर की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में शामिल है. नूतन ने इस फ़िल्म में जितना सशक्त अभिनय किया है, वैसा अभिनय किसी और फ़िल्म में देखने को नहीं मिला. यह हिंदी सिनेमा की उन सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है, जिसके बिना हिंदी सिनेमा का इतिहास अधूरा है. इस फ़िल्म के लिए भी नूतन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला. ऐसा नहीं है कि नूतन ने सिर्फ़ संजीदा अभिनय ही किया है. उन्होंने रूमानी और हंसमुख किरदार भी निभाए हैं. फ़िल्म छलिया और सूरत में उनके निभाए किरदार इस बात का सबूत हैं कि वह किसी भी तरह की भूमिका को ब़खूबी निभा सकती थीं.
1967 में प्रदर्शित फ़िल्म मिलन के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह फ़िल्म पूर्व जन्म की कहानी पर आधारित थी. इस फ़िल्म में उनके नायक सुनील दत्त थे. कहानी की शुरुआत नूतन और सुनील दत्त के विवाह से होती है. दोनों विवाह के बाद नाव से जा रहे हैं और अचानक नायक चीख़ उठता है कि आगे पानी में भंवर है. वह नाविक से नाव को वापस पीछे लेने को कहता है, तभी नाविक कहता है कि यह तो बीते ज़माने की बात है. यहां बांध बन चुका है. नायिका नाविक से नाव दूसरी तरफ़ मोड़ने को कहती है और फिर दोनों एक गांव में पहुंच जाते हैं. नायक को बीते जन्म की बातें याद आ रही हैं और दोनों गांव में बनी दो समाधियों पर पहुंच जाते हैं. यहीं से नायक और नायिका के पिछले जन्म की कहानी शुरू होती है.
1968 में प्रदर्शित फ़िल्म सरस्वती चंद्र की कामयाबी ने उन्हें फ़िल्म दुनिया की बुलंदी पर पहुंचा दिया. इसके बाद 1973 में आई फ़िल्म सौदागार में भी उन्होंने यादगार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. सुधेंदु रॉय द्वारा निर्देशित फ़िल्म में नायिक की भूमिका अमिताभ बच्चन ने निभाई थी. इसमें उनके किरदार का नाम मोती है, जो बाज़ार में गुड़ बेचता है. वह गांव की ही एक औरत महजबी यानी नूतन के पास खजूर का रस ले जाता है, जो इससे गु़ड बनाती है. मोती एक लड़की से प्यार करता है, लेकिन उसके पिता मोती से शादी के लिए पैसे की मांग करते हैं. मोती के पास इतने पैसे नहीं होते, इसलिए वह महजबी से निकाह करने का फ़ैसला करता है, ताकि उसका गुड़ मुफ्त में बन जाए और महजबी को दिए जाने वाले पैसे जमा करके वह अपनी प्रेमिका से शादी कर सके. कुछ वक़्त बाद मोती ढेर सारा पैसा कमाता है और महजबी पर बदचलनी का इल्ज़ाम लगाकर उसे तलाक़ दे देता है. इसके बाद वह अपनी प्रेमिका से विवाह कर लेता है. लेकिन इसी विवाह के साथ उसकी परेशानियां शुरू हो जाती हैं और उसे रह रहकर महजबी की याद आती है, जो किसी और से विवाह कर चुकी है. आख़िर में हारा हुआ परेशान मोती आंखों में आंसू लिए हुए महजबी के दरवाज़े पर पहुंच जाता है.
सत्तर के दशक तक नूतन का फ़िल्मी करियर चढ़ाव पर रहा, जबकि अस्सी के दशक में उन्होंने चरित्र भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं. ख़ास बात यह रही कि उनके अभिनय का जलवा बरक़रार रहा. फ़िल्म मैं तुलसी तेरे आंगन की और मेरी जंग में सशक्त अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार मिला. फ़िल्म कर्मा में भी उनके अभिनय को सराहा गया. इस फ़िल्म में उनके साथ अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे. उन्होंने अपने वक़्त के तक़रीबन सभी नामी अभिनेताओं के साथ काम किया. फ़िल्म अना़डी में उनके नायक राज कपूर थे तो फ़िल्म बंदिनी में अशोक कुमार. फ़िल्म पेइंग गेस्ट में देवानंद उनके नायक बने.
हिंदी सिनेमा में कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंची नूतन कभी मां से मुक़ाबला नहीं करना चाहती थीं. यही वजह थी कि उन्होंने फ़िल्म रामराज्य के रीमेक में सीता की भूमिका निभाने से साफ़ इंकार कर दिया था. प्रकाश पिक्चर्स के बैनर तले बनी फ़िल्म राम राज्य में उनकी मां ने सीता की भूमिका निभाई थी. निर्देशक विजय भट्ट इस फ़िल्म का रीमेक बनाना चाहते थे. उस वक़्त वह शोभना सामार्थ को नायिका सीता की भूमिका में नहीं ले सकते थे, क्योंकि वह उम्र की ढलान पर थीं. वह चाहते थे कि कोई कुशल अभिनेत्री इस किरदार को निभाए. विजय भट्ट को लगा कि नूतन सीता की भूमिका बेहतर तरीक़े से निभा सकती हैं. उन्होंने नूतन से मुलाक़ात की और अपना प्रस्ताव रखा, लेकिन नूतन ने इसे नामंज़ूर कर दिया. वह मानती थीं कि चूंकि पहली फ़िल्म में उनकी मां ने सीता की भूमिका निभाई है, इसलिए उनके लिए यह किरदार सही नहीं रहेगा, क्योंकि लोग दोनों के अभिनय की तुलना करने लगेंगे और ऐसा करना मुनासिब नहीं होगा. आख़िरकार बीना राय को सीता की भूमिका दी गई. मगर फ़िल्म फ्लॉप हो गई.
उनकी फ़िल्मों में हमारी बेटी, नगीना, हमलोग, शीशम, पर्बत, लैला मजनूं, शबाब, सीमा, हीर, बारिश, पेइंग गेस्ट, ज़िंदगी या तूफ़ान, चंदन, दिल्ली का ठग, कभी अंधेरा कभी उजाला, सोने की चिड़िया, आख़िरी दाव, अना़डी, कन्हैया, सुजाता, बसंत, छबीली, छलिया, मंज़िल, सूरत और सीरत, बंदिनी, दिल ही तो है, तेरे घर के सामने, चांदी की दीवार, रिश्ते नाते, छोटा भाई, दिल ने फिर याद किया, दुल्हन एक रात की, लाट साहब, मिलन, गौरी, सरस्वती चंद्र, भाई बहन, मां और ममता, देवी, महाराजा, यादगार, अनुराग, ग्रहण, सौदागर, एक बाप छह बेटे, मैं तुलसी तेरे आंगन की, साजन बिना सुहागन, साजन की सहेली, जियो और जीने दो, रिश्ता काग़ज़ का, यह कैसा फ़र्ज़, युद्ध, पैसा ये पैसा, मेरी जंग, सजना साथ निभाना, कर्मा, नाम, मैं तेरे लिए, क़ानून अपना अपना, मुजरिम, नसीबवाला और इंसानियत आदि शामिल है.
नूतन सादगी और सौंदर्य का अद्भुत संगम थीं. उन्होंने 19 अक्टूबर, 1959 को लेफ्टिनेंट कमांडर रजनीश बहल से विवाह कर लिया. उनके बेटे मोहनीश बहल भी अभिनेता हैं और हिंदी फ़िल्मों में काम करते हैं. नूतन की बहन तनुजा और भतीजी काजोल भी हिंदी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्रियों में शामिल हैं. 21 फ़रवरी, 1991 को कैंसर से नूतन की मौत हो गई. मीना कुमारी की तरह नूतन को भी साहित्य में दिलचस्पी थी. वह कविताएं भी लिखा करती थीं. भले ही आज वह हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन अपने सशक्त अभिनय के लिए वह हमेशा याद की जाएंगी.
(स्टार न्यूज़ एजेंसी)