एक साहब ने हमसे सवाल किया-
अगर खाना सामने रखा हो, तो क्या उसे खाये बिना पेट भर जाएगा ?
इसके दो जवाब हैं- एक दुनियावी और दूसरा रूहानी...
पहला, खाना खाये बिना पेट नहीं भर सकता... अल्लाह ने जिस्म दिया है, पेट दिया है, तो भूख भी दी है, जो खाना खाने से ही मिट सकती है...
बाज़ वक़्त खाना खाने से भी भूख नहीं मिटती... इसी से वाबस्ता एक वाक़िया है... तक़रीबन तीन साल पहले की बात है... हम भाई के घर आए हुए थे... दोपहर का वक़्त था... खाने में क़ौरमा और नान था... बहुत ज़्यादा भूख लगी हो, तो भी पौने या एक नान से पेट भर जाता है... हमने पूरा नान खाया, लेकिन
अब भी बहुत भूख लगी थी... लग रहा था, जैसे हमने एक लुक़मा तक न खाया हो... भूख में एक लुक़मा भी खा लिया जाए, तो कुछ तो तसल्ली होती है, लेकिन यहां तो वो भी नहीं... भूख से हमारा बुरा हाल था... हम पानी पीकर दस्तरख़ान से उठ गए... शर्म की वजह से और खा नहीं सकते थे...
तक़रीबन एक-डेढ़ घंटे तक यूं ही बैचैन रहे... समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर माजरा क्या है... फिर हमने एक कटोरी में छोटी इलायची रखी देखीं... हमने एक इलायची ली... एक दुआ पढ़ी और उसे खा लिया... यक़ीन जानिये भूख ग़ायब हो चुकी थी... पेट भरे होने का अहसास होने लगा...
अब दूसरा रूहानी जवाब, जब इंसान रोज़े में होता है, तो उसके सामने दुनिया की नेमतें रख दी जाएं, तो भी उसका दिल नहीं ललचाता... इंसान जब रूहानी ज़िन्दगी जीने लगता है, तो जिस्म की ज़रूरतें उसके लिए बेमानी हो जाया करती हैं... उसे सिर्फ़ अपनी रूह की ग़िज़ा चाहिए होती है, रूह की ग़िज़ा मुहब्बत है, इबादत है... मुहब्बत और इबादत में ख़ुद को फ़ना करने में जो सुकून है, उसके सामने दुनियावी लज़्ज़तें बेमानी हैं...
अब जिस्म है, तो भूख भी होगी... ऐसे लोगों को ज़ायक़े से कोई लेना-देना नहीं होता... सिर्फ़ पेट भरना होता है, भले ही रूखी रोटी क्यों न हो... हम भूख से कम खाना खाते हैं... दिन में सिर्फ़ दो ही वक़्त खाना खाते हैं... कई बार सिर्फ़ एक वक़्त ही खाना खाते हैं... ऐसा नहीं है कि हम जानबूझ कर ऐसा करते हैं... क़ुदरती ये हमारी आदत में शुमार है... खाने से पहले हमें एक गिलास पानी ज़रूर चाहिए...
जो लोग रूहानी ज़िन्दगी बसर करते हैं, वो हमारी इस तहरीर को अच्छे से समझ सकते हैं...
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)