तेरा दिल तो है सनम आशना, तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में...

इश्क़, इबादत और शायरी में बहुत गहरा रिश्ता है... इश्क़-ए-मजाज़ी हो तो ज़िन्दगी ख़ूबसूरत हो जाती है...और अगर रूह इश्क़-ए-हक़ीक़ी में डूबी हो तो आख़िरत तक संवर जाती है... शायरों ने इश्क़ और इबादत के बारे में बहुत कुछ कहा है... हज़रत राबिया बसरी फ़रमाती हैं- इश्क़ का दरिया अज़ल से अबद तक गुज़रा, मगर ऐसा कोई न मिला जो उसका एक घूंट भी पीता. आख़िर इश्क़ विसाले-हक़ हुआ...

इसी तरह अल्लामा मुहम्मद इक़बाल साहब ने कहा है-
मैं जो सर-ब-सज्दा कभी हुआ तो ज़मीं से आने लगी सदा
तेरा दिल तो है सनम-आशना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में
और
अज़ान अज़ल से तेरे इश्क़ का तराना बनी
नमाज़ उसके नज़ारे का इक बहाना बनी
अदा-ए-दीदे-सरापा नयाज़ है तेरी
किसी को देखते रहना नमाज़ है तेरी

कलाम
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुन्तज़र, नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं तेरी जबीन-ए-नियाज़ में

तरब आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरूद क्या के छिपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ओ-साज़ में

तू बचा बचा के न रख इसे तेरा आईना है वो आईना
कि शिकस्ता हो तो अज़ीज़तर है निगाह-ए-आईना-साज़ में

दम-ए-तौफ़ कर मक-ए-शम्मा न ये कहा के वो अस्र-ए-कोहन
न तेरी हिकायत-ए-सोज़ में न मेरी हदीस-ए-गुदाज़ में

न कहीं जहां में अमां मिली, जो अमां मिली तो कहां मिली
मेरे जुर्म-ए-ख़ानाख़राब को तेरे उफ़्वे-ए-बंदा-नवाज़ में

न वो इश्क़ में रहीं गर्मियां न वो हुस्न में रहीं शोख़ियां
न वो ग़ज़नवी में तड़प रही न वो ख़म है ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ में

मैं जो सर-ब-सज्दा कभी हुआ तो ज़मीं से आने लगी सदा
तेरा दिल तो है सनम-आशना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में...

अल्लामा मुहम्मद इक़बाल साहब के कलाम को जब  ख़ूबसूरत अबरार उल हक़ की दिलकश आवाज़ मिल जाए तो फिर कहने ही किया...लगता है जैसे किसी जिस्म को रूह मिल गई हो...कलाम सुनिए

अबरार उल हक़
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अम्मी बहुत याद आती हैं


इंसान की असल ज़िन्दगी वही हुआ करती है, जो वो इबादत में गुज़ारता है, मुहब्बत में गुज़ारता है, ख़िदमत-ए-ख़ल्क में गुज़ारता है. 
बचपन से देखा, अम्मी आधी रात में उठ जातीं और फिर तहज्जुद की नमाज़ पढ़तीं. नमाज़ के बाद तिलावत करतीं, तस्बीह पढ़तीं. इसी तरह उन्हें सुबह हो जाती. हमने भी अपनी अम्मी की देखादेखी तहज्जुद पढ़नी शुरू की. जब तहज्जुद में नमाज़ के लिए ख़ड़े होते हैं, तो अम्मी का ख़्याल आ जाता है कि वो अब अल्लाह के घर नमाज़ पढ़ रही होंगी. मां बच्चे के लिए पहला दर्स होती है, उस्ताद होती है. हमने भी अपनी अम्मी से ही शुरुआती तालीम ली. ज़िन्दगी के हर मुक़ाम पर अम्मी हमेशा साथ रहीं. इम्हितान होते, तो अम्मी इतनी फ़िक्र करतीं, मानो उनके इम्तिहान हों. जब नतीजा आता, तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं होता.
सच, किसी भी इंसान की ज़िन्दगी में मां का जो मु़क़ाम होता है, वो कभी किसी और का नहीं हो सकता. मां दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत औरत होती है. मां से अच्छा खाना कोई बना ही नहीं सकता. मां से ज़्यादा ख़्याल भी कोई नहीं रख सकता. हर बेटी की तरह हम भी हमेशा अपनी अम्मी जैसा ही बनना चाहते हैं. अम्मी की हर बात अच्छी लगती.
आज अम्मी की सालगिरह है. आज वो हयात होतीं, तो हम उनके साथ सालगिरह मनाते. अल्लाह अपने महबूब हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदकक़े में, पंजतन पाक के सदक़े में हमारी अम्मी की मग़फ़िरत करे, उन्हें जन्नतुल फ़िरदौस में आला मुक़ाम अता करे, आमीन.
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)

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भीड़ में भी तन्हा हैं राहुल गांधी


जन्मदिन 19 जून पर विशेष
भीड़ में भी तन्हा हैं राहुल गांधी 
-फ़िरदौस ख़ान
राहुल गांधी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. वे देश और राज्यों में सबसे लम्बे अरसे तक हुकूमत करने वाली कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं. हाल के लोकसभा चुनाव में उन्होंने उत्तर प्रदेश के रायबरेली और केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र से लाखों मतों से जीत हासिल कर इतिहास रचा है. उन्होंने अपने पुराने लोकसभा क्षेत्र वायनाड छोड़कर रायबरेली से सांसद रहने का फ़ैसला किया है. बहरहाल, उनकी ज़िन्दगी कोई आसान नहीं है. इसमें जितने फूल हैं, उससे कहीं ज़्यादा ख़ार हैं जिनकी चुभन उन्हें हमेशा महसूस होती रहती है.
 


राहुल गांधी एक ऐसे ख़ानदान के वारिस हैं, जिसने देश के लिए अपनी जानें तक क़ुर्बान कर दीं. उनके भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में लाखों-करोड़ों चाहने वाले हैं. लेकिन इस सबके बावजूद वे अकेले खड़े नज़र आते हैं. उनके चारों तरफ़ एक ऐसा अनदेखा दायरा है, जिससे वे चाहकर भी बाहर नहीं आ पाते. एक ऐसी दीवार है, जिसे वे तोड़ नहीं पा रहे हैं. वे अपने आसपास बने ख़ोल में घुटन तो महसूस करते हैं, लेकिन उससे निकलने की कोई राह, कोई तरकीब उन्हें नज़र नहीं आती.  

बचपन से ही उन्हें ऐसा माहौल मिला, जहां अपने-पराये और दोस्त-दुश्मन की पहचान करना बड़ा मुश्किल हो गया था. उनकी दादी इंदिरा गांधी और उनके पिता राजीव गांधी का बेरहमी से क़त्ल कर दिया गया. इन हादसों ने उन्हें वह दर्द दिया, जिसकी ज़रा-सी भी याद उनकी आंखें भिगो देती है. उन्होंने कहा था-  "उनकी दादी को उन सुरक्षा गार्डों ने मारा, जिनके साथ वे बैडमिंटन खेला करते थे."
वैसे राहुल गांधी के दुश्मनों की भी कोई कमी नहीं है. कभी उन्हें जान से मार देने की धमकियां मिलती हैं, तो कभी उनकी गाड़ी पर पत्थर फेंके जाते हैं. अप्रैल 2018 में उनका जहाज़ क्रैश होते-होते बचा. कर्नाटक के हुबली में उड़ान के दौरान 41 हज़ार फुट की ऊंचाई पर जहाज़ में तकनीकी ख़राबी आ गई और वह आठ हज़ार फ़ुट तक नीचे आ गया. उस वक़्त उन्हें लगा कि जहाज़ गिर जाएगा और उनकी जान नहीं बचेगी. लेकिन न जाने किनकी दुआएं ढाल बनकर खड़ी हो गईं और हादसा टल गया. कांग्रेस ने राहुल गांधी के ख़िलाफ़ साज़िश रचने का इल्ज़ाम लगाया था. 
  
किसी अनहोनी की आशंका की वजह से ही राहुल गांधी हमेशा सुरक्षाकर्मियों से घिरे रहे हैं, इसलिए उन्हें वह ज़िन्दगी नहीं मिल पाई, जिसे कोई आम इंसान जीता है. बचपन में भी उन्हें गार्डन के एक कोने से दूसरे कोने तक जाने की इजाज़त नहीं थी. खेलते वक़्त भी सुरक्षाकर्मी किसी साये की तरह उनके साथ ही रहा करते थे. वे अपनी ज़िन्दगी जीना चाहते थे, एक आम इंसान की ज़िन्दगी. राहुल गांधी ने एक बार कहा था- "अमेरिका में पढ़ाई के बाद मैंने जोखिम उठाया और अपने सुरक्षा गार्डो से निजात पा ली, ताकि इंग्लैंड में आम ज़िन्दगी जी सकूं." लेकिन ऐसा ज़्यादा वक़्त तक नहीं हो पाया और वे फिर से सुरक्षाकर्मियों के घेरे में क़ैद होकर रह गए. 

हर वक़्त कड़ी सुरक्षा में रहना, किसी भी इंसान को असहज कर देगा, लेकिन उन्होंने इसी माहौल में जीने की आदत डाल ली. ख़ौफ़ के साये में रहने के बावजूद उनका दिल मुहब्बत से सराबोर है. वे एक ऐसे शख़्स हैं, जो अपने दुश्मनों के लिए भी दिल में नफ़रत नहीं रखते. वे कहते हैं- “मेरे पिता ने मुझे सिखाया कि नफ़रत पालने वालों के लिए यह जेल होती है. मैं उनका आभार जताता हूं कि उन्होंने मुझे सभी को प्यार और सम्मान करना सिखाया.” अपने पिता की सीख को उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में ढाला. इसीलिए उन्होंने अपने पिता के क़ातिलों तक को माफ़ कर दिया. उनका कहना है- "वजह जो भी हो, मुझे किसी भी तरह की हिंसा पसंद नहीं है. मुझे पता है कि दूसरी तरफ़ होने का मतलब क्या होता है. ऐसे में जब मैं हिंसा देखता हूं चाहे वो किसी के भी साथ हो रही हो, मुझे पता होता है कि इसके पीछे एक इंसान, उसका परिवार और रोते हुए बच्चे हैं. मैं ये समझने के लिए काफ़ी दर्द से होकर गुज़रा हूं. मुझे सच में किसी से नफ़रत करना बेहद मुश्किल लगता है." 

उन्होंने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (लिट्टे) के प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण का ज़िक्र करते हुए कहा था- "मुझे याद है जब मैंने टीवी पर प्रभाकरण के मुर्दा जिस्म को ज़मीन पर पड़ा देखा. ये देखकर मेरे मन में दो जज़्बे पैदा हुए. पहला ये कि ये लोग इनकी लाश का इस तरह अपमान क्यों कर रहे हैं और दूसरा मुझे प्रभाकरण और उनके परिवार के लिए बुरा महसूस हुआ."

राहुल गांधी एक ऐसी शख़्सियत के मालिक हैं, जिनसे कोई भी मुतासिर हुए बिना नहीं रह सकता. देश के प्रभावशाली राज घराने से होने के बावजूद उनमें ज़र्रा भर भी ग़ुरूर नहीं है. उनकी भाषा में मिठास और अपनापन है, जो सभी को अपनी तरफ़ आकर्षित करता है. वे विनम्र इतने हैं कि अपने विरोधियों के साथ भी सम्मान से पेश आते हैं, भले ही उनके विरोधी उनके लिए कितनी ही तल्ख़ भाषा का इस्तेमाल क्यों न करते रहें. किसी भी हाल में वे अपनी तहज़ीब से पीछे नहीं हटते. उनके कट्टर विरोधी भी कहते हैं कि राहुल गांधी का विरोध करना उनकी पार्टी की नीति का एक अहम हिस्सा है, लेकिन ज़ाती तौर पर वे राहुल गांधी को बहुत पसंद करते हैं. वे ख़ुशमिज़ाज, ईमानदार, मेहनती, क्षमाशील और सकारात्मक सोच वाले हैं. बुज़ुर्ग उन्हें स्नेह करते हैं, उनके सर पर शफ़क़त का हाथ रखते हैं, उन्हें दुआएं देते हैं. वे युवाओं के चहेते हैं. राहुल गांधी अपने विरोधियों का नाम भी सम्मान के साथ लेते हैं, उनके नाम के साथ जी लगाते हैं. सच है कि संस्कार विरासत में मिलते हैं, संस्कार घर से मिला करते हैं. अपने से बड़ों के लिए उनके दिल में सम्मान है, तो बच्चों के लिए प्यार-दुलार है. वे इंसानियत को सर्वोपरि मानते हैं. अपने पिता की ही तरह अपने कट्टर विरोधियों की मदद करने में भी पीछे नहीं रहते.

राहुल गांधी छल और फ़रेब की राजनीति नहीं करते. वे कहते हैं- ''मैं गांधीजी की सोच से राजनीति करता हूं. अगर कोई मुझसे कहे कि आप झूठ बोल कर राजनीति करो, तो मैं यह नहीं कर सकता. मेरे अंदर ये है ही नहीं. इससे मुझे नुक़सान भी होता है. मैं झूठे वादे नहीं करता."  वे ये भी कहते हैं- “सत्ता और सच्चाई में फ़र्क़ होता है. ज़रूरी नहीं है, जिसके पास सत्ता है उसके पास सच्चाई है.”
 
वे कहते हैं- "जब भी मैं किसी देशवासी से मिलता हूं. मुझे सिर्फ़ उसकी भारतीयता दिखाई देती है. मेरे लिए उसकी यही पहचान है. अपने देशवासियों के बीच न मुझे धर्म, ना वर्ग, ना कोई और अंतर दिखता है."  

कहते हैं कि सच के रास्ते में मुश्किले ज़्यादा आती हैं और राहुल गांधी को भी बेहिसाब मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. बचपन से ही उनके विरोधियों ने उनके ख़िलाफ़ साज़िशें रचनी शुरू कर दी थीं. उन पर लगातार ज़ाती हमले किए जाते हैं. इस बात को राहुल गांधी भी बख़ूबी समझते हैं, तभी तो एक बार विदेश जाने से पहले उन्होंने एक्स पर अपने विरोधियों को सम्बोधित करते हुए लिखा था- "कुछ दिन के लिए देश से बाहर रहूंगा. भारतीय जनता पार्टी की सोशल मीडिया ट्रोल आर्मी के दोस्तों, ज़्यादा परेशान मत होना. मैं जल्द ही वापस लौटूंगा."

राहुल गांधी पर हर तरफ़ से हमले होते ही रहते हैं. उनके खिलाफ़ देशभर में इतने मामले दर्ज हैं कि वे आए दिन किसी न किसी अदालत में पेश होते रहते हैं. मोदी सरनेम वाले मामले में सूरत की अदालत से दो साल की सज़ा मिलने के बाद 23 मार्च 2023 से उनकी लोकसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी. इस पर उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का रुख़ किया. अदालत ने 4 अगस्त को उन्हें दोषी ठहराए जाने के फ़ैसले पर रोक लगा दी. इसके बाद 7 अगस्त को लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता बहाल कर दी.

राहुल गांधी एक नेता हैं, जो पार्टी संगठन को मज़बूत करने के लिए, पार्टी को हुकूमत में लाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उन्हें वह कामयाबी नहीं मिल पा रही है, जो उन्हें मिलनी चाहिए या ये कहें कि जिसके वे हक़दार हैं. शायद वे सियासत के लिए बने ही नहीं हैं. उन्हें तो सियासत में धकेला गया है. 

बहरहाल वे तमाम अफ़वाहों और अपने ख़िलाफ़ रची जाने वाली तमाम साज़िशों से अकेले ही जूझ रहे है और मुस्कराकर उनका सामना कर रहे हैं.
(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में सम्पादक हैं) 

अख़बारों पर एक नज़र 
 दैनिक हमारा मेट्रो (दिल्ली संस्करण)  
19 जून 2024
दैनिक हमारा मेट्रो (राष्ट्रीय संस्करण)  
19 जून 2024
दैनिक जनवाणी  
19 जून 2024
दैनिक ख़बर मंत्र  
19 जून 2024



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पापा !

पापा !
सरकारे-दो आलम
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदक़े में
आप पर हमेशा
अल्लाह की रहमत बरसती रहे
और
अज़ल से अबद तक
उसकी रहमत के साये में रहें, आमीन...
-फ़िरदौस ख़ान
Happy Father's day
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सुनने की फ़ुर्सत हो, तो आवाज़ है पत्थरों में...


फ़िरदौस ख़ान
ये कहानी है दिल्ली के ’शहज़ादे’ और हिसार की ’शहज़ादी’ की, उनकी मुहब्बत की.
गूजरी महल की तामीर का तसव्वुर सुलतान फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने अपनी महबूबा के रहने के लिए किया था. शायद यह किसी भी महबूब का अपनी महबूबा को परिस्तान में बसाने का ख़्वाब ही हो सकता था और जब गूजरी महल की तामीर की गई होगी. तब इसकी बनावट, इसकी नक्क़ाशी और इसकी ख़ूबसूरती को देखकर ख़ुद भी  इस पर मोहित हुए बिना न रह सका होगा.
हरियाणा के हिसार क़िले में स्थित गूजरी महल आज भी सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक और गूजरी की अमर प्रेमकथा की गवाही दे रहा है. गूजरी महल भले ही आगरा के ताजमहल जैसी भव्य इमारत न हो, लेकिन दोनों की पृष्ठभूमि प्रेम पर आधारित है. ताजमहल मुग़ल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज़ की याद में 1631 में बनवाना शुरू किया था, जो 22 साल बाद बनकर तैयार हो सका. हिसार का गूजरी महल 1354 में फ़िरोज़शाह तुग़लक ने अपनी प्रेमिका गूजरी के प्रेम में बनवाना शुरू किया, जो महज़ दो साल में बनकर तैयार हो गया. गूजरी महल में काला पत्थर इस्तेमाल किया गया है, जबकि ताजमहल बेशक़ीमती सफ़ेद संगमरमर से बनाया गया है. इन दोनों ऐतिहासिक इमारतों में एक और बड़ी असमानता यह है कि ताजमहल शाहजहां ने मुमताज़ की याद में बनवाया था. ताज एक मक़बरा है, जबकि गूजरी महल फ़िरोज़शाह तुग़लक ने गूजरी के रहने के लिए बनवाया था, जो महल ही है.
गूजरी महल की स्थापना के लिए बादशाह फ़िरोज़शाह तुग़लक ने क़िला बनवाया. यमुना नदी से हिसार तक नहर लाया और एक नगर बसाया. क़िले में आज भी दीवान-ए-आम, बारादरी और गूजरी महल मौजूद हैं. दीवान-ए-आम के पूर्वी हिस्से में स्थित कोठी फ़िरोज़शाह तुग़लक का महल बताई जाती है. इस इमारत का निचला हिस्सा अब भी महल-सा दिखता है. फ़िरोज़शाह तुग़लक के महल की बंगल में लाट की मस्जिद है. अस्सी फ़ीट लंबे और 29 फ़ीट चौड़े इस दीवान-ए-आम में सुल्तान कचहरी लगाता था. गूजरी महल के खंडहर इस बात की निशानदेही करते हैं कि कभी यह विशाल और भव्य इमारत रही होगी.
सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक और गूजरी की प्रेमगाथा बड़ी रोचक है. हिसार जनपद के ग्रामीण इस प्रेमकथा को इकतारे पर सुनते नहीं थकते. यह प्रेम कहानी लोकगीतों में मुखरित हुई है. फ़िरोज़शाह तुग़लक दिल्ली का सम्राट बनने से पहले शहज़ादा फ़िरोज़ मलिक के नाम से जाने जाते थे. शहज़ादा अकसर हिसार इलाक़े के जंगल में शिकार खेलने आते थे. उस वक्त यहां गूजर जाति के लोग रहते थे. दुधारू पशु पालन ही उनका मुख्य व्यवसाय था. उस काल में हिसार क्षेत्र की भूमि रेतीली और ऊबड़-खाबड़ थी. चारों तरफ़ घना जंगल था. गूजरों की कच्ची बस्ती के समीप पीर का डेरा था. आने-जाने वाले यात्री और भूले-भटके मुसाफ़िरों की यह शरणस्थली थी. इस डेरे पर एक गूजरी दूध देने आती थी. डेरे के कुएं से ही आबादी के लोग पानी लेते थे. डेरा इस आबादी का सांस्कृतिक केंद्र था.
एक दिन शहज़ादा फ़िरोज़ शिकार खेलते-खेलते अपने घोड़े के साथ यहां आ पहुंचा. उसने गूजर कन्या को डेरे से बाहर निकलते देखा तो उस पर मोहित हो गया. गूजर कन्या भी शहज़ादा फ़िरोज़ से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. अब तो फ़िरोज़ का शिकार के बहाने डेरे पर आना एक सिलसिला बन गया. फिरोज़ ने गूजरी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा तो उस गूजर कन्या ने विवाह की मंजरी तो दे दी, लेकिन दिल्ली जाने से यह कहकर इंकार कर दिया कि वह अपने बूढ़े माता-पिता को छोड़कर नहीं जा सकती. फ़िरोज़ ने गूजरी को यह कहकर मना लिया कि वह उसे दिल्ली नहीं ले जाएगा.
1309 में दयालपुल में जन्मा फ़िरोज़ 23 मार्च 1351 को दिल्ली का सम्राट बना. फ़िरोज़ की मां हिन्दू थी और पिता तुर्क मुसलमान था. सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक ने इस देश पर साढ़े 37 साल शासन किया. उसने लगभग पूरे उत्तर भारत में कलात्मक भवनों, किलों, शहरों और नहरों का जाल बिछाने में ख्याति हासिल की. उसने लोगों के लिए अनेक कल्याणकारी काम किए. उसके दरबार में साहित्यकार, कलाकार और विद्वान सम्मान पाते थे.
दिल्ली का सम्राट बनते ही फ़िरोज़शाह तुग़लक ने महल हिसार इलांके में महल बनवाने की योजना बनाई. महल क़िले में होना चाहिए, जहां सुविधा के सब सामान मौजूद हों. यह सोचकर उसने क़िला बनवाने का फ़ैसला किया. बादशाह ने ख़ुद ही करनाल में यमुना नदी से हिसार के क़िले तक नहरी मार्ग की घोड़े पर चढ़कर निशानदेही की थी. दूसरी नहर सतलुज नदी से हिमालय की उपत्यका से क़िले में लाई गई थी. तब जाकर कहीं अमीर उमराओं ने हिसार में बसना शुरू किया था.
किवदंती है कि गूजरी दिल्ली आई थी, लेकिन कुछ दिनों बाद अपने घर लौट आई. दिल्ली के कोटला फिरोज़शाह में गाईड एक भूल-भूलैया के पास गूजरी रानी के ठिकाने का भी ज़िक्र करते हैं. तभी हिसार के गूजरी महल में अद्भुत भूल-भूलैया आज भी देखी जा सकती है.
क़ाबिले-गौर है कि हिसार को फ़िरोज़शाह तुग़लक के वक्त से हिसार कहा जाने लगा, क्योंकि उसने यहां हिसार-ए-फिरोज़ा नामक क़िला बनवाया था. 'हिसार' फ़ारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है 'क़िला'. इससे पहले इस जगह को 'इसुयार' कहा जाता था. अब गूजरी महल खंडहर हो चुका है. इसके बारे में अब शायद यही कहा जा सकता है-
सुनने की फ़ुर्सत हो तो आवाज़ है पत्थरों में
उजड़ी हुई बस्तियों में आबादियां बोलती हैं...

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माँ, तुझे सलाम…

 

उसने कभी मां को नहीं देखा था. उसने ज़मीन पर मां की तस्वीर बनाई और उसकी गोद में सो गई.
इराक़ी यतीमख़ाने में एक मासूम यतीम बच्ची की तस्वीर.

माँ, तुझे सलाम…
फ़िरदौस ख़ान 
दुनिया के सभी मज़हबों में माँ को बहुत अहमियत दी गई है, क्योंकि माँ के दम से ही तो हमारा वजूद है. ख़ुदा ने जब कायनात की तामीर कर इंसान को ज़मीं पर बसाने का तसव्वुर किया होगा, तो यक़ीनन उस वक़्त मां का अक्स भी उसके ज़ेहन में उभर आया होगा. जिस तरह सूरज से यह कायनात रौशन है. ठीक उसी तरह माँ से इंसान की ज़िन्दगी में उजाला बिखरा हुआ है. तपती-झुलसा देने वाली गर्मी में दरख़्त की शीतल छांव है माँ, तो बर्फ़ीली सर्दियों में गुनगुनी धूप का अहसास है मां. एक ऐसी दुआ है मां, जो अपने बच्चों को हर मुसीबत से बचाती है. मां, जिसकी कोख से इंसानियत जनमी. जिसके आंचल में कायनात समा जाए. जिसकी छुअन से दुख-दर्द दूर हो जाएं. जिसके होठों पर दुआएं हों. जिसके दिल में ममता हो और आंखों में औलाद के लिए इंद्रधनुषी सपने सजे हों. ऐसी ही होती है माँ. बिल्कुल ईश्वर के प्रतिरूप जैसी. ख़ुदा के बाद माँ ही इंसान के सबसे ज़्यादा क़रीब होती है.

इसीलिए सभी नस्लों में माँ को बहुत अहमियत दी गई है. इस्लाम में माँ का दर्जा बहुत ऊंचा है. क़ुरआन करीम की सूरह अल अहक़ाफ़ में अल्लाह तआला फ़रमाता है कि हमने इंसान को अपने मां-बाप के साथ अच्छा बर्ताव करने की ताकीद की है. उसकी माँ ने उसे तकलीफ़ के साथ उठाए रखा और उसे तकलीफ़ के साथ जन्म भी दिया. उसके गर्भ में पलने और दूध छुड़ाने में तीस माह लग गए. अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि माँ के क़दमों के नीचे जन्नत है. आप सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने एक हदीस में इरशाद फ़रमाया है कि मैं वसीयत करता हूं कि इंसान को माँ के बारे में कि वह उसके साथ नेक बर्ताव करे. 
एक अन्य हदीस के मुताबिक़ एक शख़्स अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और सवाल किया कि ऐ अल्लाह के नबी! मेरे अच्छे बर्ताव का सबसे ज़्यादा हक़दार कौन है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारा वालिद. फिर तुम्हारे क़रीबी रिश्तेदार." 

यानी इस्लाम में माँ को पिता से तीन गुना ज़्यादा अहमियत दी गई है. इस्लाम में जन्म देने वाली माँ के साथ-साथ दूध पिलाने और परवरिश करने वाली माँ को भी ऊंचा दर्जा दिया गया है. इस्लाम में इबादत के साथ ही अपनी माँ के साथ नेक बर्ताव करने और उसकी ख़िदमत करने का भी हुक्म दिया गया है. कहा जाता है कि जब तक माँ अपने बच्चों को दूध नहीं बख़्शती, तब तक उनके गुनाह भी माफ़ नहीं होते.

यहूदियों में भी माँ को सम्मान की नज़र से देखा जाता है. उनकी दीनी मान्यता के मुताबिक़ कुल 55 पैग़म्बर हुए हैं, जिनमें सात महिलाएं थीं. ईसाइयों में भी माँ को उच्च स्थान हासिल है. इस मज़हब में यीशु की माँ मदर मैरी को बहुत बड़ा रुतबा हासिल है. गिरजाघरों में ईसा मसीह के अलावा मदर मैरी की प्रतिमाएं भी विराजमान रहती हैं. यूरोपीय देशों में मदरिंग संडे मनाया जाता है. दुनिया के अन्य देशों में भी मदर डे यानी मातृ दिवस मनाने की परम्परा है. भारत में मई के दूसरे रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है. चीन में दार्शनिक मेंग जाई की माँ के जन्मदिन को मातृ दिवस के तौर पर मनाया जाता है, तो इज़राईल में हेनेरिता जोल के जन्मदिवस को मातृ दिवस के रूप में मनाकर माँ के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है. हेनेरिता ने जर्मन नाज़ियों से यहूदियों की रक्षा की थी. अमेरिका में मई के दूसरे रविवार को मदर डे मनाया जाता है. इस दिन मदर डे के लिए संघर्ष करने वाली अन्ना जार्विस को अपनी मुहिम में कामयाबी मिली थी. इंडोनेशिया में 22 दिसम्बर को मातृ दिवस मनाया जाता है. भारत में भी मदर डे पर उत्साह देखा जाता है. नेपाल में वैशाख के कृष्ण पक्ष में माता तीर्थ उत्सव मनाया जाता है.

भारत में माँ को शक्ति का रूप माना गया है. हिन्दू धर्म में देवियों को माँ कहकर पुकारा जाता है. धन की देवी लक्ष्मी, ज्ञान की देवी सरस्वती और शक्ति की देवी दुर्गा को माना जाता है. नवरात्रों में माँ के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना का विधान है. वेदों में माँ को पूजनीय कहा गया है. महर्षि मनु कहते हैं कि दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्या होता है, सौ आचार्यों के बराबर एक पिता होता है और एक हज़ार पिताओं से अधिक गौरवपूर्ण माँ होती है. तैतृयोपनिशद्‌ में कहा गया है-मातृ देवो भव:. इसी तरह जब यक्ष ने युधिष्ठर से सवाल किया कि भूमि से भारी कौन है तो उन्होंने जवाब दिया कि माता गुरुतरा भूमे: यानी मां इस भूमि से भी कहीं अधिक भारी होती है. रामायण में राम कहते हैं कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी यानी जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है. बौद्ध धर्म में महात्मा बुद्ध के स्त्री रूप में देवी तारा की महिमा का गुणगान किया जाता है.

माँ बच्चे को नौ माह अपनी कोख में रखती है. प्रसव पीड़ा सहकर उसे इस संसार में लाती है. सारी-सारी रात जागकर उसे सुख की नींद सुलाती है. हम अनेक जनम लेकर भी माँ की कृतज्ञता प्रकट नहीं कर सकते. माँ की ममता असीम है, अनंत है और अपरंपार है. माँ और उसके बच्चों का रिश्ता अटूट है. माँ बच्चे की पहली गुरु होती है. उसकी छांव तले पलकर ही बच्चा एक ताक़तवर इंसान बनता है. हर व्यक्ति अपनी माँ से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है. वो कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए, लेकिन अपनी माँ के लिए वो हमेशा उसका छोटा-सा बच्चा ही रहता है. माँ अपना सर्वस्व अपने बच्चों पर न्यौछावर करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है. माँ बनकर ही हर महिला ख़ुद को पूर्ण मानती है.

कहते हैं कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम बहुत तेज़ घुड़सवारी किया करते थे. एक दिन अल्लाह ने उनसे फ़रमाया कि अब ध्यान से घुड़सवारी किया करो. जब उन्होंने इसकी वजह पूछी तो जवाब मिला कि अब तुम्हारे लिए दुआ मांगने वाली तुम्हारी माँ ज़िन्दा नहीं है. जब तक वो ज़िन्दा रहीं उनकी दुआएं तुम्हें बचाती रहीं, मगर उन दुआओं का साया तुम्हारे सर से उठ चुका है. सच, माँ इस दुनिया में बच्चों के लिए ईश्वर का ही प्रतिरूप है, जिसकी दुआएं उसे हर बला से महफ़ूज़ रखती हैं. माँ को लाखों सलाम. दुनिया की सभी माओं को समर्पित हमारा एक शेअर पेश है- 
क़दमों को माँ के इश्क़ ने सर पे उठा लिया
साअत सईद दोश पे फ़िरदौस आ गई

(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में सम्पादक हैं)
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फ़िरदौस ख़ान को मिला बेस्ट वालंटियर अवॉर्ड

 

स्टार न्यूज़ एजेंसी  
जल संरक्षण के लिए समर्पित विश्व विख्यात संस्था ‘ड्रॉप डेड फ़ाउंडेशन’ ने फ़िरदौस ख़ान को उनके पानी बचाने के लिए किये जा रहे उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित किया है. संस्था ने उन्हें साल 2023-2024 के बेस्ट वालंटियर अवॉर्ड से नवाज़ा है. 

ग़ौरतलब है कि सुप्रसिद्ध साहित्यकार, चित्रकार, कार्टूनिस्ट और पर्यावरणविद आबिद सुरती ने साल 2007 में मुम्बई में ड्रॉप डेड फ़ाउंडेशन की शुरुआत की थी. इसकी टैगलाइन है- सेव एवरी ड्रॉप ऑर ड्रॉप डेड. इसका मक़सद जल संरक्षण को बढ़ावा देना है. इस मुहिम को देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में सराहा जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र भी इसे तवज्जो दे रहा है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के पूर्व कार्यकारी निदेशक एरिक सोल्हेम ने भी कई बार इसकी तारीफ़ की है. 

मार्च 2008 में फ़िल्म निर्माता शेखर कपूर जल संरक्षण पर फ़िल्म बना रहे थे. उन्होंने अपनी वेबसाइट पर इस मुहिम की ख़ूब तारीफ़ की थी. सुप्रसिद्ध अभिनेता शाहरुख़ ख़ान ने भी इसे सराहा है. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने भी जल संरक्षण की इस मुहिम की सराहना करते हुए इसकी टीम को मुबारकबाद दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मुहिम की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए इस पर ‘वाटर वारियर’ नामक फ़िल्म बनवाई है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी इससे बहुत मुतासिर हैं. उन्होंने आबिद सुरती साहब को दिल्ली बुलाया और उनके वॉटर मॉडल को अपने राज्य में लागू करने का फ़ैसला किया. देश की राजधानी दिल्ली भी जल संकट से जूझ रही है.
  
फ़िरदौस ख़ान कहती हैं कि ज़मीन का दो तिहाई हिस्सा पानी से घिरा हुआ है, लेकिन इसमें से पीने लायक़ पानी बहुत कम यानी सिर्फ़ ढाई फ़ीसद है. इस पानी का भी दो तिहाई हिस्सा बर्फ़ के रूप में है. दुनियाभर में जितना पानी है, उसका महज़ 0.08 फ़ीसद हिस्सा ही इंसानों के लिए मुहैया है. इंसानों की ख़ामियों की वजह से ये पानी भी लगातार दूषित होता जा रहा है. कारख़ानों और नालों की गंदगी नदियों के पानी को ज़हरीला बना रही है. पहाड़ों में मुसलसल खनन होने और जंगलों को काटने की वजह से बारिश पर असर पड़ रहा है. जब हम पानी पैदा नहीं कर सकते, तो फिर हमें इसे बर्बाद करने का क्या हक़ है?

वे कहती हैं कि जो रब से मुहब्बत करता है, वह उसकी क़ुदरत के ज़र्रे-ज़र्रे से भी मुहब्बत करता है. और जिस चीज़ से मुहब्बत की जाती है, तो उसकी हिफ़ाज़त करना भी लाज़िमी हो जाता है. वैसे भी पानी की हर बूंद अनमोल है. पानी के बिना ज़िन्दगी का तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता. हर जानदार चीज़ को पानी की ज़रूरत होती है. इसलिए पानी को फ़िज़ूल न बहायें, क्योंकि इससे कितने ही लोगों के गले तर हो सकते हैं.

वे बताती हैं कि हमारे देश की ज़्यादातर आबादी धार्मिक है. इसलिए जल संरक्षण का संदेश देने के लिए विभिन्न धर्मों के पोस्टर बनवाए गये हैं. हर धार्मिक स्थल पर रोज़ाना सैकड़ों से लेकर हज़ारों लोग आते हैं. वे इन संदेशों को बार-बार देखेंगे, तो इस पर विचार करेंगे और पानी बचाने पर ध्यान देंगे. मुम्बई के बाद दिल्ली और उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थलों पर भी जल संरक्षण का संदेश छपे पोस्टर लगाए जा रहे हैं. इस मुहिम को भरपूर जनसमर्थन मिल रहा है. आबिद सुरती साहब चाहते हैं कि ये मुहिम दुनिया के हर कोने तक पहुंचे. वे लोगों से अपील करती हैं कि वे इस मुहिम में बढ़ चढ़कर शिरकत करें, ताकि आने वाली पीढ़ियों को जल संकट से न जूझना पड़े.

***
दिल्ली से प्रकाशित दैनिक मयूर संवाद  
2 मई 2024
        

दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हमारा मैट्रो   
2 मई 2024

दिल्ली से प्रकाशित दैनिक क़लम की दुनिया   
2 मई 2024




दैनिक स्वदेश लखनऊ संस्करण 
2 मई 2024



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मई दिवस और पापा

कल मज़दूर दिवस है. पहली मई के दिन पापा सुबह-सवेरे तैयार होकर मई दिवस के कार्यक्रमों में जाते थे. पापा ठेकेदार थे. लोगों के घर बनाते थे. छोटी-बड़ी इमारतें बनाते थे. उनके पास हमेशा कमज़ोर और बूढ़े मिस्त्री-मज़दूर हुआ करते थे. हमने पापा से पूछा कि लोग ताक़तवर और जवानों को रखना पसंद करते हैं, फिर आप कमज़ोर और बूढ़े लोगों को काम पर क्यों रखते हैं. पापा जवाब देते कि इसीलिए तो इन्हें रखता हूं, क्योंकि सबको जवान और ताक़तवर मिस्त्री-मज़दूर चाहिए. ऐसे में कमज़ोर और बूढ़े लोग कहां जाएंगे. अगर इन्हें काम नहीं मिलेगा, तो इनका और इनके परिवार का क्या होगा.

हमें अपने पापा पर फ़ख़्र है. उन्होंने कभी किसी का शोषण नहीं किया. किसी से तयशुदा घंटों से ज़्यादा काम नहीं करवाया, बल्कि कभी-कभार वक़्त से पहले ही उन्हें छोड़ दिया करते थे. अगर कोई मज़दूर भूखा होता, तो उसे अपना खाना खिला दिया करते थे. फिर ख़ुद शाम को जल्दी आकर खाना खाते. पापा ने न कभी कमीशन लिया और न ही किसी से एक पैसा ज़्यादा लिया. इसीलिए हमेशा नुक़सान में रहते. अपने बच्चों के लिए न तो दौलत जोड़ पाए और न ही कोई जायदाद नहीं बना पाए.

हमें इस बात पर फ़ख़्र है कि पापा ने हलाल की कमाई से अपने बच्चों की परवरिश की.
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)

मेहनतकशों को मज़दूर दिवस की मुबारकबाद 
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मज़दूर दिवस


कल मज़दूर दिवस है... यानी हमारा दिन... हम भी तो मज़दूर ही हैं... हमें अपने मज़दूर होने पर फ़ख़्र है... हमारे काम के घंटे तय नहीं हैं.... सुबह से लेकर देर रात तक कितने ही काम करने पड़ते हैं... यह बात अलग है कि हमारा काम लिखने-पढ़ने का है... इसके अलावा हम घर का काम भी कर लेते हैं... घर की साफ़-सफ़ाई, कपड़े-बर्तन धोना, खाना बनाना जैसे काम भी अकसर करने पड़ते हैं... किसी का ख़ून चूसकर अपनी तिजोरियां भरकर 'अमीर’ कहलाने से कहीं बेहतर है 'मज़दूर’ हो जाना...

सभी मेहनतकशों से कहना चाहेंगे कि अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाते रहना.. हक़ सिर्फ़ मांगने से नहीं मिलता, उसे हासिल किया जाता है... मेहनत कभी ज़ाया नहीं जाती...
बक़ौल साहिर लुधियानवी-
वो सुबह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से, जब रात का आंचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर झलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नगमे गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी...
-फ़िरदौस ख़ान 



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उस रोज़ हम भी महिला दिवस मनाएंगे...


कल महिला दिवस है... एक तरफ़ देशभर में कार्यक्रम होंगे और महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर लंबे-चौड़े भाषण दिए जाएंगे... और दूसरी तरफ़ महिला दिवस से अनजान करोड़ों ग़रीब महिलाएं हर रोज़ की तरह सूरज निकलने से पहले उठेंगी... घर का काम-काज करेंगी... दोपहर के लिए रोटी बांधेंगी और फिर मज़दूरी के लिए निकल पड़ेंगी... कोई अपने दूधमुंहे बच्चे को पीठ से बांधकर ईंटें, मिट्टी, रेत, क्रैसर ढोएगी, तो कोई सड़क पर ही अपने बच्चे को बिठाकर पत्थर तोड़ेगी... फिर शाम को दिहाड़ी के पैसों से आटा, दाल, सब्ज़ी ख़रीदेगी और घर जाकर चूल्हा-चौका संभाल लेगी... दिन-रात के चौबीस घंटों में से अट्ठारह घंटे उसे काम करना है... वो भी एक दिन, एक हफ़्ता, एक महीना या एक साल नहीं, बल्कि ज़िंदगी भर... यानी जब तक उसके जिस्म में जान है, उसे काम करना है...
बहुत क़रीब से देखा है, इन मेहनतकश महिलाओं को... जिस रोज़ ऐसी एक भी मेहनतकश महिला के लिए कुछ कर पाएंगे, यक़ीनन उस, रोज़ हम भी महिला दिवस मनाएंगे...

चित्र : गूगल से साभार
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