तेरा दिल तो है सनम आशना, तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में...

इश्क़, इबादत और शायरी में बहुत गहरा रिश्ता है... इश्क़-ए-मजाज़ी हो तो ज़िन्दगी ख़ूबसूरत हो जाती है...और अगर रूह इश्क़-ए-हक़ीक़ी में डूबी हो तो आख़िरत तक संवर जाती है... शायरों ने इश्क़ और इबादत के बारे में बहुत कुछ कहा है... हज़रत राबिया बसरी फ़रमाती हैं- इश्क़ का दरिया अज़ल से अबद तक गुज़रा, मगर ऐसा कोई न मिला जो उसका एक घूंट भी पीता. आख़िर इश्क़ विसाले-हक़ हुआ...

इसी तरह अल्लामा मुहम्मद इक़बाल साहब ने कहा है-
मैं जो सर-ब-सज्दा कभी हुआ तो ज़मीं से आने लगी सदा
तेरा दिल तो है सनम-आशना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में
और
अज़ान अज़ल से तेरे इश्क़ का तराना बनी
नमाज़ उसके नज़ारे का इक बहाना बनी
अदा-ए-दीदे-सरापा नयाज़ है तेरी
किसी को देखते रहना नमाज़ है तेरी

कलाम
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुन्तज़र, नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं तेरी जबीन-ए-नियाज़ में

तरब आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरूद क्या के छिपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ओ-साज़ में

तू बचा बचा के न रख इसे तेरा आईना है वो आईना
कि शिकस्ता हो तो अज़ीज़तर है निगाह-ए-आईना-साज़ में

दम-ए-तौफ़ कर मक-ए-शम्मा न ये कहा के वो अस्र-ए-कोहन
न तेरी हिकायत-ए-सोज़ में न मेरी हदीस-ए-गुदाज़ में

न कहीं जहां में अमां मिली, जो अमां मिली तो कहां मिली
मेरे जुर्म-ए-ख़ानाख़राब को तेरे उफ़्वे-ए-बंदा-नवाज़ में

न वो इश्क़ में रहीं गर्मियां न वो हुस्न में रहीं शोख़ियां
न वो ग़ज़नवी में तड़प रही न वो ख़म है ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ में

मैं जो सर-ब-सज्दा कभी हुआ तो ज़मीं से आने लगी सदा
तेरा दिल तो है सनम-आशना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में...

अल्लामा मुहम्मद इक़बाल साहब के कलाम को जब  ख़ूबसूरत अबरार उल हक़ की दिलकश आवाज़ मिल जाए तो फिर कहने ही किया...लगता है जैसे किसी जिस्म को रूह मिल गई हो...कलाम सुनिए

अबरार उल हक़
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अम्मी बहुत याद आती हैं


इंसान की असल ज़िन्दगी वही हुआ करती है, जो वो इबादत में गुज़ारता है, मुहब्बत में गुज़ारता है, ख़िदमत-ए-ख़ल्क में गुज़ारता है. 
बचपन से देखा, अम्मी आधी रात में उठ जातीं और फिर तहज्जुद की नमाज़ पढ़तीं. नमाज़ के बाद तिलावत करतीं, तस्बीह पढ़तीं. इसी तरह उन्हें सुबह हो जाती. हमने भी अपनी अम्मी की देखादेखी तहज्जुद पढ़नी शुरू की. जब तहज्जुद में नमाज़ के लिए ख़ड़े होते हैं, तो अम्मी का ख़्याल आ जाता है कि वो अब अल्लाह के घर नमाज़ पढ़ रही होंगी. मां बच्चे के लिए पहला दर्स होती है, उस्ताद होती है. हमने भी अपनी अम्मी से ही शुरुआती तालीम ली. ज़िन्दगी के हर मुक़ाम पर अम्मी हमेशा साथ रहीं. इम्हितान होते, तो अम्मी इतनी फ़िक्र करतीं, मानो उनके इम्तिहान हों. जब नतीजा आता, तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं होता.
सच, किसी भी इंसान की ज़िन्दगी में मां का जो मु़क़ाम होता है, वो कभी किसी और का नहीं हो सकता. मां दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत औरत होती है. मां से अच्छा खाना कोई बना ही नहीं सकता. मां से ज़्यादा ख़्याल भी कोई नहीं रख सकता. हर बेटी की तरह हम भी हमेशा अपनी अम्मी जैसा ही बनना चाहते हैं. अम्मी की हर बात अच्छी लगती.
आज अम्मी की सालगिरह है. आज वो हयात होतीं, तो हम उनके साथ सालगिरह मनाते. अल्लाह अपने महबूब हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदकक़े में, पंजतन पाक के सदक़े में हमारी अम्मी की मग़फ़िरत करे, उन्हें जन्नतुल फ़िरदौस में आला मुक़ाम अता करे, आमीन.
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)

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भीड़ में भी तन्हा हैं राहुल गांधी


जन्मदिन 19 जून पर विशेष
भीड़ में भी तन्हा हैं राहुल गांधी 
-फ़िरदौस ख़ान
राहुल गांधी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. वे देश और राज्यों में सबसे लम्बे अरसे तक हुकूमत करने वाली कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं. हाल के लोकसभा चुनाव में उन्होंने उत्तर प्रदेश के रायबरेली और केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र से लाखों मतों से जीत हासिल कर इतिहास रचा है. उन्होंने अपने पुराने लोकसभा क्षेत्र वायनाड छोड़कर रायबरेली से सांसद रहने का फ़ैसला किया है. बहरहाल, उनकी ज़िन्दगी कोई आसान नहीं है. इसमें जितने फूल हैं, उससे कहीं ज़्यादा ख़ार हैं जिनकी चुभन उन्हें हमेशा महसूस होती रहती है.
 


राहुल गांधी एक ऐसे ख़ानदान के वारिस हैं, जिसने देश के लिए अपनी जानें तक क़ुर्बान कर दीं. उनके भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में लाखों-करोड़ों चाहने वाले हैं. लेकिन इस सबके बावजूद वे अकेले खड़े नज़र आते हैं. उनके चारों तरफ़ एक ऐसा अनदेखा दायरा है, जिससे वे चाहकर भी बाहर नहीं आ पाते. एक ऐसी दीवार है, जिसे वे तोड़ नहीं पा रहे हैं. वे अपने आसपास बने ख़ोल में घुटन तो महसूस करते हैं, लेकिन उससे निकलने की कोई राह, कोई तरकीब उन्हें नज़र नहीं आती.  

बचपन से ही उन्हें ऐसा माहौल मिला, जहां अपने-पराये और दोस्त-दुश्मन की पहचान करना बड़ा मुश्किल हो गया था. उनकी दादी इंदिरा गांधी और उनके पिता राजीव गांधी का बेरहमी से क़त्ल कर दिया गया. इन हादसों ने उन्हें वह दर्द दिया, जिसकी ज़रा-सी भी याद उनकी आंखें भिगो देती है. उन्होंने कहा था-  "उनकी दादी को उन सुरक्षा गार्डों ने मारा, जिनके साथ वे बैडमिंटन खेला करते थे."
वैसे राहुल गांधी के दुश्मनों की भी कोई कमी नहीं है. कभी उन्हें जान से मार देने की धमकियां मिलती हैं, तो कभी उनकी गाड़ी पर पत्थर फेंके जाते हैं. अप्रैल 2018 में उनका जहाज़ क्रैश होते-होते बचा. कर्नाटक के हुबली में उड़ान के दौरान 41 हज़ार फुट की ऊंचाई पर जहाज़ में तकनीकी ख़राबी आ गई और वह आठ हज़ार फ़ुट तक नीचे आ गया. उस वक़्त उन्हें लगा कि जहाज़ गिर जाएगा और उनकी जान नहीं बचेगी. लेकिन न जाने किनकी दुआएं ढाल बनकर खड़ी हो गईं और हादसा टल गया. कांग्रेस ने राहुल गांधी के ख़िलाफ़ साज़िश रचने का इल्ज़ाम लगाया था. 
  
किसी अनहोनी की आशंका की वजह से ही राहुल गांधी हमेशा सुरक्षाकर्मियों से घिरे रहे हैं, इसलिए उन्हें वह ज़िन्दगी नहीं मिल पाई, जिसे कोई आम इंसान जीता है. बचपन में भी उन्हें गार्डन के एक कोने से दूसरे कोने तक जाने की इजाज़त नहीं थी. खेलते वक़्त भी सुरक्षाकर्मी किसी साये की तरह उनके साथ ही रहा करते थे. वे अपनी ज़िन्दगी जीना चाहते थे, एक आम इंसान की ज़िन्दगी. राहुल गांधी ने एक बार कहा था- "अमेरिका में पढ़ाई के बाद मैंने जोखिम उठाया और अपने सुरक्षा गार्डो से निजात पा ली, ताकि इंग्लैंड में आम ज़िन्दगी जी सकूं." लेकिन ऐसा ज़्यादा वक़्त तक नहीं हो पाया और वे फिर से सुरक्षाकर्मियों के घेरे में क़ैद होकर रह गए. 

हर वक़्त कड़ी सुरक्षा में रहना, किसी भी इंसान को असहज कर देगा, लेकिन उन्होंने इसी माहौल में जीने की आदत डाल ली. ख़ौफ़ के साये में रहने के बावजूद उनका दिल मुहब्बत से सराबोर है. वे एक ऐसे शख़्स हैं, जो अपने दुश्मनों के लिए भी दिल में नफ़रत नहीं रखते. वे कहते हैं- “मेरे पिता ने मुझे सिखाया कि नफ़रत पालने वालों के लिए यह जेल होती है. मैं उनका आभार जताता हूं कि उन्होंने मुझे सभी को प्यार और सम्मान करना सिखाया.” अपने पिता की सीख को उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में ढाला. इसीलिए उन्होंने अपने पिता के क़ातिलों तक को माफ़ कर दिया. उनका कहना है- "वजह जो भी हो, मुझे किसी भी तरह की हिंसा पसंद नहीं है. मुझे पता है कि दूसरी तरफ़ होने का मतलब क्या होता है. ऐसे में जब मैं हिंसा देखता हूं चाहे वो किसी के भी साथ हो रही हो, मुझे पता होता है कि इसके पीछे एक इंसान, उसका परिवार और रोते हुए बच्चे हैं. मैं ये समझने के लिए काफ़ी दर्द से होकर गुज़रा हूं. मुझे सच में किसी से नफ़रत करना बेहद मुश्किल लगता है." 

उन्होंने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (लिट्टे) के प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण का ज़िक्र करते हुए कहा था- "मुझे याद है जब मैंने टीवी पर प्रभाकरण के मुर्दा जिस्म को ज़मीन पर पड़ा देखा. ये देखकर मेरे मन में दो जज़्बे पैदा हुए. पहला ये कि ये लोग इनकी लाश का इस तरह अपमान क्यों कर रहे हैं और दूसरा मुझे प्रभाकरण और उनके परिवार के लिए बुरा महसूस हुआ."

राहुल गांधी एक ऐसी शख़्सियत के मालिक हैं, जिनसे कोई भी मुतासिर हुए बिना नहीं रह सकता. देश के प्रभावशाली राज घराने से होने के बावजूद उनमें ज़र्रा भर भी ग़ुरूर नहीं है. उनकी भाषा में मिठास और अपनापन है, जो सभी को अपनी तरफ़ आकर्षित करता है. वे विनम्र इतने हैं कि अपने विरोधियों के साथ भी सम्मान से पेश आते हैं, भले ही उनके विरोधी उनके लिए कितनी ही तल्ख़ भाषा का इस्तेमाल क्यों न करते रहें. किसी भी हाल में वे अपनी तहज़ीब से पीछे नहीं हटते. उनके कट्टर विरोधी भी कहते हैं कि राहुल गांधी का विरोध करना उनकी पार्टी की नीति का एक अहम हिस्सा है, लेकिन ज़ाती तौर पर वे राहुल गांधी को बहुत पसंद करते हैं. वे ख़ुशमिज़ाज, ईमानदार, मेहनती, क्षमाशील और सकारात्मक सोच वाले हैं. बुज़ुर्ग उन्हें स्नेह करते हैं, उनके सर पर शफ़क़त का हाथ रखते हैं, उन्हें दुआएं देते हैं. वे युवाओं के चहेते हैं. राहुल गांधी अपने विरोधियों का नाम भी सम्मान के साथ लेते हैं, उनके नाम के साथ जी लगाते हैं. सच है कि संस्कार विरासत में मिलते हैं, संस्कार घर से मिला करते हैं. अपने से बड़ों के लिए उनके दिल में सम्मान है, तो बच्चों के लिए प्यार-दुलार है. वे इंसानियत को सर्वोपरि मानते हैं. अपने पिता की ही तरह अपने कट्टर विरोधियों की मदद करने में भी पीछे नहीं रहते.

राहुल गांधी छल और फ़रेब की राजनीति नहीं करते. वे कहते हैं- ''मैं गांधीजी की सोच से राजनीति करता हूं. अगर कोई मुझसे कहे कि आप झूठ बोल कर राजनीति करो, तो मैं यह नहीं कर सकता. मेरे अंदर ये है ही नहीं. इससे मुझे नुक़सान भी होता है. मैं झूठे वादे नहीं करता."  वे ये भी कहते हैं- “सत्ता और सच्चाई में फ़र्क़ होता है. ज़रूरी नहीं है, जिसके पास सत्ता है उसके पास सच्चाई है.”
 
वे कहते हैं- "जब भी मैं किसी देशवासी से मिलता हूं. मुझे सिर्फ़ उसकी भारतीयता दिखाई देती है. मेरे लिए उसकी यही पहचान है. अपने देशवासियों के बीच न मुझे धर्म, ना वर्ग, ना कोई और अंतर दिखता है."  

कहते हैं कि सच के रास्ते में मुश्किले ज़्यादा आती हैं और राहुल गांधी को भी बेहिसाब मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. बचपन से ही उनके विरोधियों ने उनके ख़िलाफ़ साज़िशें रचनी शुरू कर दी थीं. उन पर लगातार ज़ाती हमले किए जाते हैं. इस बात को राहुल गांधी भी बख़ूबी समझते हैं, तभी तो एक बार विदेश जाने से पहले उन्होंने एक्स पर अपने विरोधियों को सम्बोधित करते हुए लिखा था- "कुछ दिन के लिए देश से बाहर रहूंगा. भारतीय जनता पार्टी की सोशल मीडिया ट्रोल आर्मी के दोस्तों, ज़्यादा परेशान मत होना. मैं जल्द ही वापस लौटूंगा."

राहुल गांधी पर हर तरफ़ से हमले होते ही रहते हैं. उनके खिलाफ़ देशभर में इतने मामले दर्ज हैं कि वे आए दिन किसी न किसी अदालत में पेश होते रहते हैं. मोदी सरनेम वाले मामले में सूरत की अदालत से दो साल की सज़ा मिलने के बाद 23 मार्च 2023 से उनकी लोकसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी. इस पर उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का रुख़ किया. अदालत ने 4 अगस्त को उन्हें दोषी ठहराए जाने के फ़ैसले पर रोक लगा दी. इसके बाद 7 अगस्त को लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता बहाल कर दी.

राहुल गांधी एक नेता हैं, जो पार्टी संगठन को मज़बूत करने के लिए, पार्टी को हुकूमत में लाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उन्हें वह कामयाबी नहीं मिल पा रही है, जो उन्हें मिलनी चाहिए या ये कहें कि जिसके वे हक़दार हैं. शायद वे सियासत के लिए बने ही नहीं हैं. उन्हें तो सियासत में धकेला गया है. 

बहरहाल वे तमाम अफ़वाहों और अपने ख़िलाफ़ रची जाने वाली तमाम साज़िशों से अकेले ही जूझ रहे है और मुस्कराकर उनका सामना कर रहे हैं.
(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में सम्पादक हैं) 

अख़बारों पर एक नज़र 
 दैनिक हमारा मेट्रो (दिल्ली संस्करण)  
19 जून 2024
दैनिक हमारा मेट्रो (राष्ट्रीय संस्करण)  
19 जून 2024
दैनिक जनवाणी  
19 जून 2024
दैनिक ख़बर मंत्र  
19 जून 2024



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सरकारे-दो आलम
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदक़े में
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और
अज़ल से अबद तक
उसकी रहमत के साये में रहें, आमीन...
-फ़िरदौस ख़ान
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