इस प्यार ने क्या कुछ बदला है...

सच!
आज पहली बार
सुबह सूरज निकला तो
कितना भला लगा
सूरज की सुनहरी किरनों ने
चूम लिया बदन मेरा
तुम थे कोसों दूर
पर यूं लगा
जैसे
यह प्यार भरा पैगाम
तुमने ही भेजा है
इस प्यार ने क्या कुछ बदला है
कि अब तो
हर शय निखरी-निखरी लगती है...
-फ़िरदौस ख़ान
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ब्लॉगवाणी और ब्लॉगर साथियों, हम आपके शुक्रगुज़ार हैं...

पिछले दिनों ब्लॉग जगत में जो कुछ हुआ... और उस वक़्त जिन ब्लॉगर साथियों ने हमें अपना समर्थन दिया... उसके लिए हम सभी ब्लॉगर साथियों के तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हैं...
साथ ही हम ब्लॉगवाणी का भी आभार व्यक्त करते हैं...


हमारे लिए सभी ब्लॉगर आदरणीय और सम्माननीय हैं... इसलिए समझ नहीं आ रहा था कि किसका नाम पहले लिखें... जिनका नाम बाद में आता, शायद हम उनके साथ नाइंसाफ़ी करते, बस इसी को मद्देनज़र रखते हुए हमने किसी भी साथी का नाम नहीं लिखा है...


कुछ साथियों ने सही कहा है कि 'कुछ' (इस्लाम के ठेकेदार, नफ़रत को बढ़ावा देने वाले) ब्लॉगों को ब्लॉगवाणी से हटाने से समस्या का समाधान नहीं होगा...
हर कोई अपनी 'मानसिकता' और अपने 'संस्कारों' का ही प्रदर्शन करता है...
'दिन' को किसी के 'रात' कह देने से उजाला कम तो नहीं हो जाता...
फ़िरदौसी ने सच ही कहा है-
सच पर चलने वालों का हर क़दम शैतान के सीने पर होता है...


जिन लोगों का मक़सद सिर्फ़ नफ़रत की आग फैलाना होता है... शायद वो नहीं जानते कि एक न एक दिन ये आग उनका घर भी फूंक सकती है... देश में हुए कुछ दंगे इसी बात का सबूत हैं...

हम 'वसुधैव कुटुम्बकम्' में यक़ीन रखते हैं... इसलिए हमने हमेशा इंसानियत की बात की है और हमेशा करते रहेंगे...

क्योंकि-
मुझे तालीम दी है मेरी फ़ितरत ने ये बचपन से
कोई रोये तो आंसू पोंछ देना अपने दामन से...

जय हिन्द

वन्दे मातरम्
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रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे...




 ग़ज़ल
रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे
याद उस शख़्स की हर रोज़ रुलाती है मुझे

ख़्वाब जब सच के समन्दर में बिखर जाते हैं
उम्र तपते हुए सहरा में सजाती है मुझे

ज़िन्दगी एक जज़ीरा है तमन्नाओं का
धूप उल्फ़त की यही बात बताती है मुझे

हर तरफ़ मेरे मसाइल के शरार बरपा हैं
जुस्तजू अब्र की हर लम्हा बुलाती है मुझे

मैं संवरने की तमन्ना में बिखरती ही गई
आंधियां बनके हवा ऐसे सताती है मुझे

जब से क़िस्मत का मेरी रूठ गया है सूरज
तीरगी वक़्त की हर रोज़ डराती है मुझे

आलमे-हिज्र में 'फ़िरदौस' खो गई होती
चांदनी रोज़ रफ़ाक़त की बचाती है मुझे
-फ़िरदौस ख़ान
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ब्लॉगवाणी से अनुरोध : असामाजिक तत्वों का बहिष्कार करे...

बस एक लफ़्ज़-ए-सदाक़त ज़बां से क्या निकला

हर एक हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है...

कुछ असामाजिक तत्व (इस्लाम के ठेकेदार ब्लोगर) जो ब्लॉगवाणी  के सदस्य भी हैं... बेहद बेहूदा कमेन्ट कर रहे हैं... अब अति हो चुकी है...इसलिए ही हमें यह सब लिखने पर मजबूर होना पड़ा...
ब्लॉगवाणी से हमारा अनुरोध है कि ऐसे तत्वों को बाहर का रास्ता दिखाए...

साथ ही अपने भाइयों और बहनों से अनुरोध है कि वो भी वो इन ग़द्दार और असभ्य लोगों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं...
ये लोग एक तरफ़ तो ख़ुद तो दूसरे धर्मों की पवित्र किताबों और देवी-देवताओं के बारे में अपमानजनक लेख और टिप्पणियां लिख रहे हैं और दूसरी तरफ़ चैन-अमन की बात करने वाले लोगों के ख़िलाफ़ एकजुट होकर बेहूदा टिप्पणियां कर रहे हैं... हालत यह है कि ये लोग मेल के ज़रिये भी धमका रहे हैं...

इनका मक़सद सिर्फ़ धार्मिक भावनाएं भड़काकर देश के चैन-अमन के माहौल को ख़राब करना और नफ़रत फैलाना ही है...
ये लोग अपने गिरेबान में नहीं झांकते... जबकि यहां तो टॉयलेट में जाने से संबंधित आयतें भी हैं...
ये बहुसंख्यक वर्ग की महानता है कि वो इस तरह की बातों को बीच में नहीं लाते...
नफ़रत, नफ़रत को बढ़ाती है... और प्रेम, सिर्फ़ प्रेम का माहौल ही पैदा करता है...
हमें इस नफ़रत की आग को फैलने से रोकना है...
इसलिए ज़रूरी है कि ऐसे ब्लोगों का बहिष्कार किया जाए...
इसमें ब्लॉगवाणी भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर इस पुनीत कार्य का हिस्सा बने...
हमारा अपने देश और समाज के प्रति जो नैतिक दायित्व है... आओ सब मिलकर उसका पालन करें...
देश और समाज को तोड़ने की गद्दारों की किसी भी साजिश को कामयाब न होने दें...
जय हिंद
वन्दे मातरम्...

@महफूज़ साहब...

इस मुल्क को... इस दुनिया को आप जैसे क़ाबिल लोगों की ज़रूरत है...
आपने सही कहा है...आपका लेवल कि इन लोगों को कोई जवाब दिया जाए...
वैसे भी ये लोग 'इंसान' तो हैं नहीं... (इन लोगों ने बाकायदा ऐलान कर रखा है कि हम इंसान तो हैं, लेकिन मुसलमान नहीं...)
जो लोग इंसान नहीं होते, उन्हें क्या कहा जाता है...बताने की ज़रूरत नहीं... ये पब्लिक है सब जानती है...
 वैसे भी ये लोग जिस एजेंडे को लेकर चल रहे हैं... एक न एक दिन इस मुल्क का क़ानून इन्हें ख़ुद सबक़ सिखा देगा...

@ भाइयों और बहनों
हमें भाइयों और बहनों का स्नेह और समर्थन मिल रहा है... हम उनका आभार जताकर उनके स्नेह को कम नहीं आंकना चाहते हैं... बस, यही कहना चाहेंगे कि आपकी दुआओं (स्नेह) से हमारी राहें रौशन हैं...
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मौसम दहक रहा है...

मौसम दहक रहा है...

आसमान से
आग बरसाती
सूरज की तेज़ किरणें...

बदन को
और झुलसाते
लू के गरम झोंके...

गुलमोहर की
शाखों पर दहकते
फूलों के सुर्ख़ गुच्छे...

सूनी गलियों में
बंजारन ख्वाहिशों-सी
भटकती आवारा दोपहरें...

दूधिया चांदनी में
मोगरा-सी महकती
सुलगती रातें...
मौसम दहक रहा है...
-फ़िरदौस ख़ान
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यही मुहब्बत है...

कड़ी धूप थी
आसमान से
शोले बरस रहे थे...
उसने कहा-
कितनी प्यारी खिली चांदनी है...
मैंने कहा-
बिल्कुल.
क्यूंकि
मुहब्बत में दिल की सुनी जाती है, ज़ेहन की नहीं
यही मुहब्बत है, मुहब्बत की रिवायत है...
-फ़िरदौस ख़ान
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