इस देस को 'फ़िरदौस' जफ़ाएं नहीं आतीं


ख़ुशहाल घरों में यूं बलाएं नहीं आतीं
भारत में मेरे जंग की हवाएं नहीं आतीं

ग़ुरबत में ग़रीबों का ये क्या हाल हुआ है
लाचार के होंठों पे दुआएं नहीं आतीं

सरकार बनाने से क़बल खाते हैं क़समें
पर सबको पता, इनको वफ़ाएं नहीं आतीं

बादल तो गरजते हैं, मगर ये भी हक़ीक़त
आंगन में ग़रीबों के घटाएं नहीं आतीं

आज़ाद वतन है मेरा आज़ाद फ़िज़ाएं
पर फिर भी सुरीली-सी सदाएं नहीं आतीं

दुनिया को सिखानी है, यही एक रिवायत
इस देस को 'फ़िरदौस' जफ़ाएं नहीं आतीं
-फ़िरदौस ख़ान
शब्दार्थ = गुरबत - ग़रीबी, सदाएं - आवाज़ें
  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS

12 Response to "इस देस को 'फ़िरदौस' जफ़ाएं नहीं आतीं"

  1. Unknown says:
    14 अक्टूबर 2008 को 11:11 am बजे

    बहुत सुंदर.
    शायद 'नहीं' शब्द रह गया है दूसरी लाइन में - 'भारत में मेरे जंग की हवाएं नहीं आतीं'.

    @दुनिया को सिखानी है, यही एक रिवायत
    इस देस को 'फ़िरदौस' जफ़ाएं नहीं आतीं.
    यह तो बहुत ही खूबसूरत है.

  2. Vinay says:
    14 अक्टूबर 2008 को 12:21 pm बजे

    आपने तो इस ग़ज़ल से मेरा दिल जीत लिया!

  3. अमिताभ मीत says:
    14 अक्टूबर 2008 को 12:45 pm बजे

    गुरबत में ग़रीबों का ये क्या हाल हुआ है
    लाचार के होंठों पे दुआएं नहीं आतीं

    बादल तो गरजते हैं, मगर ये भी हक़ीक़त
    आंगन में ग़रीबों के घटाएं नहीं आतीं

    बहुत ख़ूब.

  4. Dr. Nazar Mahmood says:
    14 अक्टूबर 2008 को 12:59 pm बजे

    good effort

  5. श्यामल सुमन says:
    14 अक्टूबर 2008 को 2:05 pm बजे

    फिरदौस जी,

    गुरबत में ग़रीबों का ये क्या हाल हुआ है
    लाचार के होंठों पे दुआएं नहीं आतीं

    बहुत सुन्दर। मनमोहक पंक्तियाँ। बधाई। किसी ने कहा है कि-

    बादलों के दर्मियां न जाने क्या साजिश हुई।
    मेरा घर मिट्टी का था मेरे घर बारिश हुई।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

  6. दीपक कुमार भानरे says:
    14 अक्टूबर 2008 को 3:12 pm बजे

    सरकार बनाने से क़बल खाते हैं क़समें
    पर सबको पता, इनको वफ़ाएं नहीं आतीं
    फिरदोश जी सुंदर अभिव्यक्ति .

  7. रंजना says:
    14 अक्टूबर 2008 को 7:08 pm बजे

    सरकार बनाने से क़बल खाते हैं क़समें
    पर सबको पता, इनको वफ़ाएं नहीं आतीं

    बादल तो गरजते हैं, मगर ये भी हक़ीक़त
    आंगन में ग़रीबों के घटाएं नहीं आतीं

    bahut sundar,lajawaab gazal hai aapki.

  8. Dr. Ashok Kumar Mishra says:
    15 अक्टूबर 2008 को 1:22 am बजे

    फ़िरदौस जी,
    आपकी गजल का मतला बहुत शानदार है-
    दुनिया को सिखानी है, यही एक रिवायत
    इस देस को 'फ़िरदौस' जफ़ाएं नहीं आती

  9. हिन्दीवाणी says:
    15 अक्टूबर 2008 को 1:55 am बजे

    फिरदौस, दिल को छू गई आपकी यह ग़ज़ल। बस कलम यूं ही चलती रहे। जफाएं करेंगे...

  10. बेनामी Says:
    16 अक्टूबर 2008 को 11:21 am बजे

    बादल तो गरजते हैं, मगर ये भी हक़ीक़त
    आंगन में ग़रीबों के घटाएं नहीं आतीं

    बेहतरीन...

  11. "अर्श" says:
    27 अक्टूबर 2008 को 7:42 pm बजे

    बादल तो गरजते हैं, मगर ये भी हक़ीक़त
    आंगन में ग़रीबों के घटाएं नहीं आतीं
    मैंने आपकी गज़लें पढ़ी बहोत मज़ा आया .
    काफी सुकून मिला ऐसे मौसम में.
    आपका मेरे ब्लॉग में भी हार्दिक स्वागत है.
    अर्श

  12. Puja Upadhyay says:
    31 अक्टूबर 2008 को 12:36 am बजे

    aakhiri sher ne dil jeet liya...lajawab gazal hai

एक टिप्पणी भेजें