ज़िन्दगी अमावस की स्याह रात है
ज़िन्दगी
अमावस की
स्याह रात है
जिसमें
रौशन हैं
उम्मीदों के
हज़ारों दीये...
दुख और तकलीफ़ों का अंधेरा
कितना ही घना
क्यूं न हो...
एक न एक दिन
सुख और खुशियों
के उजाले को
ज़िन्दगी के आंगन में
छा ही जाना होता है
बिल्कुल
पहले पहर की
उजली धूप की तरह...
फ़िरदौस ख़ान
अमावस की
स्याह रात है
जिसमें
रौशन हैं
उम्मीदों के
हज़ारों दीये...
दुख और तकलीफ़ों का अंधेरा
कितना ही घना
क्यूं न हो...
एक न एक दिन
सुख और खुशियों
के उजाले को
ज़िन्दगी के आंगन में
छा ही जाना होता है
बिल्कुल
पहले पहर की
उजली धूप की तरह...
फ़िरदौस ख़ान
27 अक्टूबर 2008 को 5:18 pm बजे
ज़िन्दगी अमावस की स्याह रात है
जिसमें
रौशन हैं
उम्मीदों के
हज़ारों दीये...
सुब्हान अल्लाह...ज़िन्दगी ऐसी ही होती है...
27 अक्टूबर 2008 को 5:41 pm बजे
जिसमें रौशन हैं उम्मीदों के हज़ारों दीये..
क्या बात है
बिल्कुल दुरुस्त फरमाया है आपने दरअसल ज़िन्दगी तो ऐसी ही है कि अगर दिन की खूबसूरत रौशनी है तो अमावस की रात भी है
अगर इस गुलिस्तान में खार है तो हजारो गुल भी है बस ज़रूरत है तो अपना नज़रिया बदलने की. दरअसल वो ही इन्सान कामयाब होता है जो मुसीबत में भी हौसला बलाए रखता है और स्याह से स्याह रात में भी उसे उम्मीद होती है की कुछ लम्हों के बाद आफ़ताब रोशन होगा
ज़रूर होगा.
आपके इस नज़रिए और एक अरसे के बाद दीपावली के मुबारक मौके पर अच्छी नज़्म के लिए शुक्रिया और दीपावली की मुबारकबाद कि
आपकी ज़िन्दगी में भी उजाला हो.
27 अक्टूबर 2008 को 5:52 pm बजे
बहुत सुंदर रचना।
27 अक्टूबर 2008 को 6:29 pm बजे
ज़िंदगी की अच्छी फिलॉस्फी है, जिसमें उम्मीद कायम रहती है।
27 अक्टूबर 2008 को 6:48 pm बजे
फिरदौसजी आप उर्दू के साथ अच्छी हिन्दी की भी जानकार हैं दिनकर जी ने रशिमरथी खंड काव्य में कहा है-
हार जीत क्या चीज वीरता की पहिचान समर है.
सच्चाई पर कभी हारकर भी न हारता नर है.
यदि विजय कहें तो विजय
प्राप्त हो जाती परतापी को भी.
सच है धन,दारा, जन
मिल जाते हैं पापी को भी.
उम्मीदों के हज़ारों दीये ही तो हमें ज़िन्दा रखते हैं.
कविता के धरातल पर आपकी मासूमियत इंसानियत का पैगाम देती है जिसकी ताब के हम कायल हैं जो पत्थरों को पिघलाने का हुनर रखती है.
अल्लाह ये तौफ़ीक आपको मुसल्सल अता करे. आमीन.
27 अक्टूबर 2008 को 7:10 pm बजे
उम्मीद का दिया जलाए रखें।
27 अक्टूबर 2008 को 7:33 pm बजे
आपकी नज़्म बहोत अच्छी लगी..बहोत बधाई इसकेलिए ..
मेरे और मेरे पुरे परिवार के तरफ़ से आपको तथा आपके पुरे परिवार को दिवाली की बहोत बहोत शुभकामनाएं
अर्श
27 अक्टूबर 2008 को 9:51 pm बजे
उम्मीदें तो बहुत है जिन्दगी में गर कोई समझे।
नहीं तो जिन्दगी बस मौत के साये में पलती है।।
दीपावली की शुभकामनाएँ।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
27 अक्टूबर 2008 को 10:14 pm बजे
बहुत ख़ूब!
28 अक्टूबर 2008 को 3:19 am बजे
हाँ, ज़िंदगी दर असल बहुत खूब सूरत है, निर्भर करता है कि हमारा नज़रिया क्या है। हमारे पास १०० में से ८० चीज़ें हों और २० नहीं तो हमें किसे देखना चाहिये? ८० कि २०? आशा की किरण दिखी कविता में...अच्छा लगा पढ़ कर..
29 अक्टूबर 2008 को 1:44 pm बजे
फिरदौस जी, दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। मैनें अपने ब्लॉग पर सभी के लिए शुभकामना पोस्ट छोड़ी थी शायद आपकी नजर नहीं गई, अन्यथा मुझे भी दीपावली की बधाई ज़रूर मिलती। बहरहाल आपकी ये रचना जिन्दगी की सकारात्मकता का अच्छा उदाहरण पेश करती है।
एक न एक दिन
सुख और खुशियों
के उजाले को
ज़िन्दगी के आंगन में
छा ही जाना होता है
बिल्कुल
पहले पहर की
उजली धूप की तरह...
बहुत खूबसूरत लाइनें हैं। बधाई।
30 अक्टूबर 2008 को 1:22 pm बजे
दुख और तकलीफ़ों का अंधेरा
कितना ही
घना क्यूं न हो...
एक न एक दिन
सुख और खुशियों
के उजाले को
ज़िन्दगी के आंगन में
छा ही जाना होता है
बिल्कुल
पहले पहर की
उजली धूप की तरह...
ज़िंदगी की अच्छी फिलॉस्फी है, उम्मीद का दिया जलाए रखें।