कामयाब ज़िन्दगी


एक कामयाब ज़िन्दगी क्या होती है... इस पर  सबका अपना-अपना नज़रिया है... किसी के लिए ऐशो-आराम की ज़िन्दगी ही कामयाब ज़िन्दगी है... किसी के दौलत और शोहरत हासिल करना ही कामयाबी की निशानी है...
दरअसल, इंसान अपनी ज़िन्दगी से जो चाहता है, और उसे वो मिल जाए, तो यही उसके लिए कामयाब ज़िन्दगी है...
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देव की जान


बचपन में दादी जान से कहानी सुना करते थे कि एक देव की जान एक तोते में क़ैद थी... सोचते थे, ऐसा कैसे हो सकता है... लेकिन अब समझ में आया कि ऐसा बिल्कुल हो सकता है... सच ! कहानियां कितनी सच्ची हुआ करती हैं... बस, वक़्त से साथ उनके किरदार बदल जाया करते हैं...
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औरत का सम्मान


पापा ने हमें शहज़ादी की तरह पाला... हमारी हर छोटी-बड़ी ख़्वाहिश पूरी की... भाई भी हमारा बहुत ख़्याल रखते हैं... हमारी बात उनके लिए हुक्म होती है...
और वो... उन्होंने हमें अहसास दिलाया कि हम उनके लिए कितने ख़ास हैं...
पापा, भाई और ’उनकी’ नज़र में औरत का दर्जा मर्द से कमतर नहीं है... इन सबका मानना है कि औरत भी मर्द की तरह ही इंसान है...
ये हमारी ख़ुशनसीबी है कि हमें अच्छे और सच्चे लोग मिले... दुनिया के उन सब मर्दों को हमारा सलाम, जो औरतों को भी अपनी ही तरह इंसान समझते हैं.
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स्वरोज़गार


कहते हैं- दूसरे के सिंहासन से अपनी चटाई अच्छी... क्योंकि किसी की जी हुज़ूरी तो नहीं करनी पड़ती...
आज के युवा अपने स्वरोज़गार को तरजीह दे रहे हैं... वाक़ई यह अच्छी बात है... अपना ख़ुद का काम ही ज़्यादा अच्छा होता है, भले ही परचून की दुकान क्यों न हो...  नौकरी में लगी बंधी तनख़्वाह तो होती है, लेकिन इसकी अपनी परेशानियां हैं... नौकरी प्राइवेट हो, तो और भी मुसीबत... हमेशा एक ही बात याद रखनी होती है- बॊस इस ऒलवेज़ राइट... न जॊब की गारंटी होती है, न काम का वाजिब मेहनताना, न पर्याप्त छुट्टियां...

अपने काम में जो मज़ा है, वो किसी की नौकरी में कहां... स्वरोज़गार अपनाओ और ख़ुश रहो ... :)
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कल भी पूरे चांद की रात थी


फ़िरदौस ख़ान
कल भी पूरे चांद की रात थी... हमेशा की तरह ख़ूबसूरत... इठलाती हुई... अंगनाई में खिले सफ़ेद फूल अपनी भीनी-भीनी महक से माहौल को और रूमानी बना रहे थे... नींद आंखों से कोसों दूर थी... पिछले कई दिन से वह दिल्ली से बाहर हैं... रात भर चांद आसमान में मुस्कराता रहा... उसकी दूधिया चांदनी अंगनाई में बिखरी हुई थी... शाख़ें हवा से झूम रही थीं... गर्मी के मौसम के बावजूद हवा में ठंडक थी... बादलों के दूधिया टुकड़े आसमान में कहीं-कहीं तैर रहे थे... लेकिन जिन्हें दिल ढूंढ रहा था, बस वही नहीं थे...


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पंजाबी की किताबें...


बात बहुत पुरानी है... हमारा बीए का तीसरा साल था... हमने पंजाबी विषय लिया हुआ था...  पंजाबी की किता्बें मिल नहीं रही थीं... हम शहर की सबसे पुरानी दुकान पर गए, जिसके बारे में कहा जाता था कि वहां सब किताबें मिल जाती हैं... लेकिन हमें वहां भी किताबें नहीं मिलीं... पूरे शहर में पंजाबी के पांच ही स्टुडेंट्स थे, बाक़ी चार के पास किताबें थीं, जो बाहर से मंगवाई गई थीं...
हम बहुत परेशान थे कि क्या करें... हमारे एक पारिवारिक मित्र ने हमसे परेशानी की वजह पूछी, तो हमने उन्हें बताया कि हमें पंजाबी की किताबें नहीं मिल रही हैं... उन्होंने कहा कि तुम प्रकाशक का पता देना... हमने अगले दिन हमने उन्हें प्रकाशक का पता दे दिया... दो-तीन दिन बाद हमने उन्हें फ़ोन किया, तो उन्होंने कहा कि तुमने काम बता दिया है, इसलिए अब ये तुम्हारा नहीं, मेरा काम है... अब दोबारा इसका ज़िक्र मत करना... बात हफ़्ते (शनिवार) की थी... पीर (सोमवार) के रोज़ शाम को वो हमारे घर आए और हमें किताबें दे दीं... उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री के दौरे की वजह से उन्हें छुट्टी नहीं मिल रही थी... इसलिए इतवार को वे पंजाब से हमारे लिए किताबें लेकर आए...
वाक़ई, ऐसे लोग भी होते हैं इस दुनिया में... हम जब भी पंजाबी की कोई किताब देखते हैं, तो वो मोहतरम याद आ जाते हैं... शुक्रिया मेरे मोहसिन...
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)

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किताबों से रिश्ता...


किताबों से हमारा रिश्ता बहुत पुराना है या यूं कहें कि बचपन से ही किताबों से हमारी दोस्ती रही है... हमने अब तक कितनी किताबें पढ़ी हैं, यह ठीक से याद नहीं... लेकिन इतना ज़रूर याद है कि हमने अपनी ज़िन्दगी का बहुत ख़ूबसूरत वक़्त किताबों के बीच ही गुज़ारा है... और अब भी गुज़ार रहे हैं... आज हम अपनी पढ़ी किताबों की पहली फ़ेहरिस्त लिख रहे हैं...
Romeo Juliet : William Shakespeare
Hamlet : William Shakespeare
Julius Caesar : William Shakespeare
Doctor Faustus : Christopher Marlowe
Adam Bede : George Eliot
Far From the Madding Crowd : Thomas Hardy
Saint Joan : George Bernard Shaw
Mother : Maxim Gorky
Joseph Andrews : Henry Fielding
The Best Short Stories of O. Henry

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किताबें...


फ़िरदौस ख़ान
बचपन से ही हमें किताबें पढ़ने का शौक़ रहा है. घर में अम्मी को किताबें पढ़ते हुए देखते थे. उनकी देखादेखी हमें भी किताबें पढ़ने का शौक़ हो गया. पहले कॊमिक्स और कहानियों की किताबें पढ़ा करते थे. लोककथाएं हमें बहुत पसंद थीं, आज भी हैं. किताबों से हमें बहुत मुहब्बत है. अपने दोस्तों को भी उनकी सालगिरह पर किताबें ही देते हैं, लेकिन जिनका किताबों से कोई सरोकार नहीं यानी उन्हें किताबें पसंद नहीं, तो उनके लिए कोई दूसरा तोहफ़ा ख़रीदने में हमें काफ़ी सोचना पड़ता है... ख़ैर पसंद अपनी-अपनी.

दूरदर्शन में हमारे साथ एक बंगाली प्रोड्यूसर भी थे. उनसे बंगाली तहज़ीब को क़रीब से जानने का मौक़ा मिला. वैसे भी हम बांग्ला साहित्य पढ़ते रहे हैं. वहां के लोगों की एक बात हमें बेहद पसंद है और उनके इस जज़्बे की हम दिल से क़द्र करते हैं. बंगाल में लोग शादी-ब्याह में भी तोहफ़े के तौर पर किताबें भी देते हैं.

जब भी प्रगति मैदान में लगे मेले में जाने का मौक़ा मिलता है, तो हम उर्दू, अरबी, पंजाबी और हिन्दी की बहुत-सी किताबें ख़रीदते हैं. यह देखकर अच्छा लगता है कि किताबों के क़द्रदानों की आज भी कोई कमी नहीं है. जब भी घर जाना होता है, तो हमारी यही कोशिश रहती है कि अम्मी और बहन-भाइयों के लिए उनकी पसंद की कोई न कोई किताब लेकर जाएं. अम्मी को उर्दू और अरबी की किताबें पसंद हैं. भाई को पत्रकारिता, पशु-पक्षियों और बाग़वानी की. हमारे घर पर एक अच्छी-ख़ासी लाइब्रेरी है. यहां भी हमारे पास किताबों का एक ज़ख़ीरा है.

किताबों की अपनी ही एक दुनिया है. कहते हैं किताबों से अच्छा कोई दोस्त नहीं होता. कॉलेज के वक़्त हर महीने आठ से दस किताबें पढ़ लेते थे. लाइब्रेरी में उर्दू और पंजाबी की किताबें पढ़ने वाले हम अकेले थे. उर्दू या पंजाबी का कोई बुज़ुर्ग पाठक कभी साल-दो-साल में ही वहां आता था. कई बार लाइब्रेरी के लोग किताबों को तरतीब से लगाने के लिए हमारी मदद लेते थे, तो कभी फटी-पुरानी या कभी-कभी नई किताबों के नाम, लेखक और प्रकाशक के नाम हिन्दी में लिखने में. हमें यह सब काम करना बहुत अच्छा लगता था.

किताबों से मुताल्लिक़ एक ख़ास बात. कुछ लोगों की आदत में शुमार होता है कि वो अच्छी किताब देखते ही आपसे मांग लेंगे. आपने एक बार किताब दे दी तो फिर मजाल है कि वो आपको वापस मिल जाए. किताबों के पन्ने मोड़ने, पैन से लाइनें खींचकर किताबों की अच्छी सूरत को बिगाड़ने में भी लोगों को बहुत मज़ा आता है. हमारे पास नामी कहानीकारों की कहानियों का एक संग्रह था. एक रोज़ हम उसे अपने साथ दफ़्तर ले गए. एक लड़की ने हमसे मांग लिया. कई महीने गुज़र गए, लेकिन उसने वापस नहीं किया. हमने पूछा तो कहने लगी-वक़्त ही नहीं मिला. ख़ैर क़रीब दो साल बाद हमारा उसके घर जाना हुआ, तो उसने उसे लौटा दिया. लेकिन उसे वापस पाकर हमें बेहद दुख हुआ. तक़रीबन हर सफ़े पर पैन से लाइनें खींची हुईं थीं. कवर पेज भी बेहद अजनबी लगा. जब भी उस किताब को देखते, तो बुरा लगता. छोटे भाई ने हमारी सालगिरह पर नई किताब लाकर दी और उस किताब को अलमारी से हटा दिया. ऐसे कितने ही क़िस्से हैं अपनी प्यारी किताबों से जुदा होने के...

रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की जद्दोजहद में लोग किताबें पढ़ने के शौक़ को क़ायम नहीं रख पाते. जो लोग किताबें पढ़ने के शौक़ीन हैं, उनसे यही गुज़ारिश है कि वो इसे पूरा ज़रूर करें. ख़ैर, हमारा काम तो किताबों से ही जुड़ा है. किताबों की समीक्षा लिखते हैं, इस वजह से भी आए दिन कोई न कोई किताब मिलती ही रहती है और वक़्त निकालकर उसे पढ़ना भी होता है...

अलबत्ता, जांनिसार अख़्तर साहब का एक शेअर याद आता है-
ये इल्म का सौदा, ये रिसालें, ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं...
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जो दूसरों के लिए जीते हैं


कुछ लोग ऐसे हुआ करते हैं, जो अपने दुख-सुख की परवाह किए बग़ैर दूसरों के लिए जीते हैं, उनके दुख-सुख में शामिल होते हैं... ऐसे लोगों की भी कोई कमी नहीं जो सिर्फ़ अपने लिए ही जीते हैं, उनके लिए सिर्फ़ अपने दुख-सुख ही मायने रखते हैं... वो हर वक़्त सिर्फ़ अपने दुखों की ही बात करते हैं...
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सच क्या है


सच क्या है... सच की तलाश में उम्र बीत जाया करती है... सच को जान लेना कोई आसान काम नहीं है... सबके अपने-अपने सच हुआ करते हैं... जैसे आज का दिन किसी शख़्स की ज़िन्दगी का अब तक का सबसे ख़ूबसूरत दिन है... ये उसका सच है... और आज ही का दिन किसी दूसरे शख़्स की ज़िन्दगी का अब तक का सबसे तकलीफ़देह दिन है... ये उसका सच है... इसलिए सबको अपने-अपने सच के साथ जीने का पूरा हक़ है...
हम जो जीते हैं, महसूस करते हैं, वही लिखते हैं... हम नहीं कहते कि आप इसे universal truth यानी सार्वभौमिक सच मानें...
बेहतर यही है कि आप अपने सच के साथ जियें और दूसरों को उनके सच के साथ जीने दें...

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जब हरि था तो मैं नहीं अब हरि है मैं नाहि


इंसान में जब तक अहंकार है, ’मैं’ है, वो ख़ुदा को क्या, किसी अच्छे इंसान तक को मुतासिर नहीं कर पाएगा...
मैं यानी मेरा मज़हब सबसे बड़ा, मेरी ज़ात सबसे ऊंची, मैं ही सच्चा, मैं ही सबसे अच्छा, मैं ही सही... यानी जब तक मैं-मैं की रट लगी रहती है, तब तक इंसान न कुछ देख पाता है, न सुन पाता है और न ही समझ पाता है... उसकी अक़्ल पर अहंकार की धूल जमी रहती है...
जिस दिन इंसान ने ’मैं’ यानी अपने अहंकार का त्याग कर दिया, तभी वह सही मायने में इंसान कहलाने लायक़ है...
कबीर चचा कह गए हैं-
जब हरि था तो मैं नहीं अब हरि है मैं नाहि
प्रेम गलि अति सांकरी ता में दो न समाये

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जादूगरनियां


क़िस्से-कहानियों में सुना है कि बंगाल में जादूगरनियां रहा करती हैं... उन्हें कोई परदेसी भा जाता है, तो उसे अपने पास क़ैद कर लेती हैं... इसलिए पहले ज़माने में जब कोई मर्द बंगाल जाता था, तो उसकी महबूबा ये सोच-सोचकर हल्कान हो जाती थे कि कहीं कोई जादूगरनी उसके पिया को क़ैद न कर ले...
न जाने क्यूं आज बंगाल की जादूगरनियों की बहुत-सी कहानियां याद आ गईं...


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मेरे ख़ुदा


मेरे ख़ुदा
मेरे प्यारे ख़ुदा
मेरे महबूब के ख़ुदा
मैं तुझ पर क्यों न क़ुर्बान जाऊं
तू उनका ख़ुदा है
जिनके नाम का मैं कलमा पढ़ती हूं
तू मेरा भी तो ख़ुदा है
मेरे महबूब के प्यारे ख़ुदा...
-फ़िरदौस ख़ान
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मुहब्बत का नाम


इंसान के कई नाम हुआ करते हैं... कुछ नाम आम होते हैं और कुछ पोशीदा होते हैं... मसलन वो नाम जो किसी इंसान की पैदाइश पर रखा जाता है... ये वो नाम हुआ करता है, जो उसके दस्तावेज़ों में दर्ज होता है... इसे असली नाम कहा जाता है... एक घर का नाम हुआ करता है, जिस नाम से घर के फ़र्द और बाहर के लोग पुकारते हैं... ये दोनों ही आम नाम हुआ करते हैं...
एक नाम ऐसा भी हुआ करता है, जो सबसे प्यारा होता है... ये वो नाम हुआ करता है, जिस नाम से महबूब मुख़ातिब होता है... ये नाम पोशीदा रहता है, जो एक कहता है और दूसरा सुनता है...
सच कितना प्यारा होता है, ये मुहब्बत का ये नाम... 
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