गुज़श्ता वक़्त की बात है. एक लड़की ने हमसे कहा कि उसका ध्यान नमाज़ में ज़रा भी नहीं लग पाता. नमाज़ पढ़ते वक़्त सौ ख़्याल आते हैं.
हमने कहा कि परेशान मत हो, नमाज़ में दिल लगने लगेगा.
इस वाक़िये के कुछ रोज़ बाद वो लड़की हमारे पास आई. वो बहुत ख़ुश थी. चहक रही थी, बात करते-करते कहीं खो जाती. उसे किसी से मुहब्बत हो गई थी.
हमने उससे पूछा- नमाज़ पढ़ते वक़्त अब तो सौ ख़्याल नहीं आते.
हमारी बात पर वो चौंक पड़ी और कहने लगी- नहीं, पर अब तो सिर्फ़ उसका चेहरा ही नज़र आता है.
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)