हमें आंधियों से निस्बत है...


आंधियों का मौसम शुरू हो चुका है. हमें आंधियां बहुत पसंद हैं. हमें आंधियों से निस्बत है. ये इस बात की अलामत हैं कि हमारा पसंदीदा माह यानी माहे-जून आने वाला है. माहे-जून में गर्मी अपने शबाब पर हुआ करती है. आलम ये कि दिन के पहले पहर से ही लू चलने लगती है. गरम हवाओं की वजह से सड़कें भी सुनसान हो जाती हैं. धूल भरी आंधियां भी ऐसे चलती हैं, मानो सबकुछ उड़ा कर ले जाना चाहती हैं. दहकती दोपहरें भी अलसाई-सी लगती हैं. बचपन में इस मौसम में दिल नहीं लगता था. दादी जान कहा करती थीं कि ये हवायें मन को अपने साथ बहा ले जाती हैं. इसलिए मन उड़ा-उड़ा रहता है. और कहीं भी मन नहीं लगता. तब से दादी जान की बात मान ली कि इस मौसम में ऐसा ही होता है. फिर भी हमें जून बहुत अच्छा लगता है. इस मौसम से मुहब्बत हो गई. दहकती दोपहरें, गरम हवायें, धूल भरी आंधियां. और किसी की राह तकती एक वीरान सड़क. वाक़ई, सबकुछ बहुत अच्छा लगता है. बहुत ही अच्छा. जैसे इस मौसम से जनमों-जनमों का नाता हो. एक ख़ास बात यह है कि जून की शुरुआत ही हमारी सालगिरह यानी एक जून से होती है. अम्मी की सालगिरह भी 27 जून को है, पर एक अगस्त को उनका साथ छूट गया. लेकिन वो हममें हमेशा ज़िन्दा रहेंगी.  और फिर उनकी सालगिरह भी तो इसी माह में है, जिनके क़दमों में हम अपनी अक़ीदत के फूल चढ़ाते हैं.
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)
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