फ़िरदौस ख़ानहिन्दुस्तान में आज जब मुट्ठीभर ख़ुदग़र्ज़ लोग मज़हब, जात, भाषा और प्रांत के नाम पर देश को बांटने की कोशिश कर रहे हैं, तो ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के संदेश बेहद प्रासंगिक हो जाते हैं. उन्होंने हमेशा देश की एकता और अखंडता को क़ायम रखने पर ज़ोर दिया. बक़ौल जवाहरलाल नेहरू,हिंदुस्तानी ज़िंदगी में कितनी विविधता है और उसमें अलग-अलग कितने वर्ग, क़ौमें और पंथ हैं तथा संस्कृति विकास की कितनी अलग-अलग सीढ़ियां हैं, फिर भी समझता हूं कि उसकी आत्मा एक है. भारत में अनेक प्रकार के लोग रहते हैं. उनमें एकता भी है, लेकिन अनेकता बहुत है. आप असम से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक जाइए. आप कितना अंतर पाएंगे, भाषा में, खाने-पीने में, कप़डे-लत्ते पहनने में और सब बातों में, उसी के साथ आप संस्कृति की एक पक्की एकता भी पाएंगे, जो प्राचीन समय से चली आती है. भारत की जो असली संस्कृति है, वह दिमाग़ की है या मन की है, आध्यात्मिक है. इस वक़्त देश में जो सबसे ज़रूरी बुनियादी चीज़ है और जिसे हर कोई बुनियादी मानता है, वह है भारत की एकता.
हिन्द पॉकेट बुक्स ने हाल में जवाहरलाल नेहरू की सूक्तियों की किताब प्रकाशित की है, जिसका नाम है जवाहरलाल नेहरू की सूक्तियां. किताब के संपादक राजवीर सिंह दार्शनिक ने विभिन्न मुद्दों पर जवाहरलाल नेहरू की सूक्तियों को शामिल किया है. गंगा के बारे में जवाहर लाल नेहरू कहते हैं-गंगा तो भारत की प्राचीन सभ्यता की प्रतीक रही है, निशान रही है, सदा बदलती, सदा बहती, फिर वही गंगा की गंगा. मैंने सुबह की रौशनी में गंगा को मुस्कराते, उछलते-कूदते देखा है. और देखा है शाम के साये में उदास, काली-सी चादर ओढ़े हुए. यही गंगा मेरे लिए निशानी है भारत की प्राचीनता की, यादगार की, जो बहती आई है वर्तमान तक और बहती चली जा रही है भविष्य के महासागर की ओर.
पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर, 1889 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था. देशभर में जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिन 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है. नेहरू बच्चों से बेहद प्यार करते थे और यही वजह थी कि उन्हें प्यार से चाचा नेहरू बुलाया जाता है. वह पंडित मोतीलाल नेहरू और स्वरूप रानी के इकलौते बेटे थे. उनसे छोटी उनकी दो बहनें थीं. उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित बाद में संयुक्तराष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं. उनकी शुरुआती तालीम घर पर ही हुई. उन्होंने 14 साल की उम्र तक घर पर ही कई अंग्रेज़ शिक्षकों से तालीम हासिल की. आगे की शिक्षा के लिए 1905 में जवाहरलाल नेहरू को इंग्लैंड के हैरो स्कूल में दाख़िल करवा दिया गया. इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वह कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज गए, जहां से उन्होंने प्रकृति विज्ञान में स्नातक उपाधि प्राप्त की. 1912 में उन्होंने लंदन के इनर टेंपल से वकालत की डिग्री हासिल की और उसी साल भारत लौट आए. उन्होंने इलाहाबाद में वकालत शुरू कर दी, लेकिन वकालत में उनकी ख़ास दिलचस्पी नहीं थी. भारतीय राजनीति में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी और वह सियासी कार्यक्रमों में शिरकत करने लगे. उन्होंने 1912 में बांकीपुर (बिहार) में होने वाले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया लिया.8 फ़रवरी, 1916 को कमला कौल से उनका विवाह हो गया. 19 नवंबर, 1917 को उनके यहां बेटी का जन्म हुआ, जिसका नाम इंदिरा प्रियदर्शिनी रखा गया, जो बाद में भारत की प्रधानमंत्री बनीं. इसके बाद उनके यहां एक बेटे का जन्म हुआ,लेकिन जल्द ही उसकी मौत हो गई.
पंडित जवाहरलाल नेहरू 1916 के लखनऊ अधिवेशन में महात्मा गांधी के संपर्क में आए. 1921 के असहयोग आंदोलन में तो महात्मा गांधी के बेहद क़रीब में आ गए और गांधी जी की मौत तक यह नज़दीकी क़ायम रही. वह महात्मा गांधी के कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़े, चाहे असहयोग आंदोलन हो या फिर नमक सत्याग्रह या फिर 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन. उन्होंने गांधी जी के हर आंदोलन में बढ़-चढ़कर शिरकत की. नेहरू की विश्व के बारे में जानकारी से गांधी जी काफ़ी प्रभावित थे और इसलिए आज़ादी के बाद वह उन्हें प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते थे. 1931 में पिता की मौत के बाद जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस की केंद्रीय परिषद में शामिल हो गए और महात्मा के अंतरंग बन गए. हालांकि 1942 तक गांधी जी ने अधिकारिक रूप से उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था, लेकिन 1930 के दशक के मध्य में ही देश को गांधी जी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में नेहरू दिखाई देने लगे थे. जब 15 अगस्त, 1947 को देश आज़ाद हुआ तो वह आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बन गए. जवाहरलाल नेहरू ने देश के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए. उन्होंने औद्योगीकरण को महत्व देते हुए भारी उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया. उन्होंने विज्ञान के विकास के लिए 1947 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस की स्थापना की. देश के विभिन्न भागों में स्थापित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अनेक केंद्र इस क्षेत्र में उनकी दूरदर्शिता के प्रतीक हैं. खेलों में भी नेहरू की रुचि थी. उन्होंने खेलों को शारीरिक और मानसिक विकास के लिए ज़रूरी बताया. उन्होंने 1951 दिल्ली में प्रथम एशियाई खेलों का आयोजन करवाया. 1955 में उन्हें देश की सर्वोच्च उपाधि भारत रत्न से नवाज़ा गया. मगर देश को बहुत दिनों तक उनका साथ नहीं मिला. दिल का दौरा प़डने से 27 मई, 1964 में उनकी मौत हो गई. वह देश से बेहद प्यार करते थे. इसलिए उनकी वसीयत भी यही थी-मेरी भस्म उन खेत-खलिहानों में बिखेर दी जाए, जहां भारत के किसान अपना ख़ून-पसीना बहाते हैं, ताकि भस्म भारत माता की धूल और मिट्टी में मिलकर उसमें विलीन हो जाए.
पंडित जवाहरलाल नेहरू एक महान राजनीतिज्ञ ही नहीं, बल्कि विख्यात लेखक भी थे. उनकी आत्मकथा दुनिया भर में सराही गई. उनकी अन्य रचनाओं में भारत और विश्व, सोवियत रूस, विश्व इतिहास की एक झलक, भारत की एकता और स्वतंत्रता और उसके बाद आदि शामिल हैं. वह भारतीय भाषाओं को काफ़ी महत्व देते थे. वह चाहते थे कि हिंदुस्तानी जब कहीं भी एक-दूसरे से मिले तो अपनी ही भाषा में बातचीत करें. उन्होंने कहा था-मेरे विचार में हम भारतवासियों के लिए एक विदेशी भाषा को अपनी सरकारी भाषा के रूप में स्वीकारना सरासर अशोभनीय होगा. मैं आपको कह सकता हूं कि बहुत बार जब हम लोग विदेशों में जाते हैं, और हमें अपने ही देशवासियों से अंग्रेज़ी में बातचीत करनी पड़ती है तो मुझे कितना बुरा लगता है. लोगों को बहुत ताज्जुब होता है, और वे हमसे पूछते हैं कि हमारी कोई भाषा नहीं है? हमें विदेशी भाषा में क्यों बोलना पड़ता हैं?
वह कहते हैं-यूरोप और दूसरे देशों के लोग मानते हैं कि भारत में सैक़डों भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन उनकी यह धारणा ग़लत है. भारत की भाषाएं दो परिवारों में बांटी जा सकती हैं-पहला परिवार द्रव़िड भाषा का है, जिसमें तमिल, तेलुगू,कन्ऩड और मलयालम हैं और दूसरी भारतीय आर्य जाति की भाषा है, जो मूलरूप से संस्कृत है. हिंदी, बांग्ला, गुजराती और मराठी संस्कृत से निकली हैं. हां,बोलियां सैकड़ों हो सकती हैं. वह मानते थे कि किसी क़ौम के विकास और उसके बच्चों की शिक्षा का एकमात्र साधन उसकी अपनी भाषा ही है. भारत में आज हरेक चीज़ उलट- पुलट हो रही है और हम आपस में भी अंग्रेजी बहुत ज़्यादा प्रयोग कर रहे हैं. तुम्हें (इंदिरा प्रियदर्शिनी) अंग्रजी में लिखना मेरे लिए कितनी भद्दी बात है. फिर भी मैं ऐसा कर रहा हूं. लेकिन मुझे विश्वास है कि हम लोग जल्दी ही इस आदत से छुटकारा पा लेंगे.
वह एक ज़िंदादिल इंसान थे. उनका कहना था-हमें पूरा यक़ीन है कि सफलता हमारा इंतज़ार कर रही है और कभी न कभी हम उसे ज़रूर प्राप्त कर लेंगे. यदि पार करने के लिए ये रुकावटें न होतीं और जीतने के लिए ये लड़ाइयां न होतीं,तो जीवन नीरस और बेरंग हो जाता. जब हम ज़िंदगी में वर्तमान काल में जहां कि इतनी कशमकश है और हल करने के लिए इतने मसले हैं, एक जीती-जागती क़डी न क़ायम कर सकें, तब तक हम ज़िंदगी को ज़िंदगी नहीं कह सकते. असल में मेरी दिलचस्पी इस दुनिया में और इस ज़िंदगी में है, किसी दूसरी दुनिया या आने वाली ज़िंदगी में नहीं. आत्मा जैसी कोई चीज़ है भी या नहीं, मैं नहीं जानता. ज़िंदगी में चाहे जितनी बुराइयां हों, आनंद और सौंदर्य भी है और हम सदा प्रकृति की मोहिनी वनभूमि में सैर कर सकते हैं.
बहरहाल, आकर्षक कवर वाली यह किताब पाठकों ख़ासकर चाचा नेहरू के प्रशंसकों और राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों को बहुत पसंद आएगी. किताब में एकाध जगह दोहराव है, जो पाठकों को कुछ अखर सकता है. फिर भी इसमें कोई शक नहीं कि यह किताब संग्रहणीय है.
(स्टार न्यूज़ एजेंसी)
समीक्ष्य कृति : जवाहरलाल नेहरू की सूक्तियां
संपादक : राजवीर सिंह दार्शनिक
प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स
क़ीमत : 110 रुपये