मेरी रूह महक रही है, तुम्हारी मुहब्बत से...

मेरे महबूब !
मुहब्बत के शहर की
ज़मीं का वो टुकड़ा
आज भी यादों की ख़ुशबू से महक रहा है
जहां
मैंने सुर्ख़ गुलाबों की
महकती पंखुड़ियों को
तुम्हारे क़दमों में बिछाया था...
तुमने कहा था-
यह फूल क़दमों में बिछाने के लिए नहीं
तुम्हारे बालों में सजाने के लिए हैं... 
फिर तुमने
मेरे खुले बालों में 
सुर्ख़ गुलाब लगाते हुए कहा था- 
आई लव यू ...
तब से मेरे बाल ही नहीं
मेरी रूह भी महक रही है
तुम्हारी मुहब्बत से...
-फ़िरदौस ख़ान
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