नगमें रफ़ाक़तों के सुनाती हैं बारिशें...
नगमें रफ़ाक़तों के सुनाती हैं बारिशें
बारिश में भीगती है कभी उसकी याद तो
इक आग-सी हवा में लगाती हैं बारिशें
मिस्ले-धनक जुदाई के ल्म्हाते-ज़िंदगी
रंगीन मेरे ख़्वाब बनाती हैं बारिशें
ख़ामोश घर की छत की मुंडेरों पे बैठकर
परदेसियों को आस बंधाती हैं बारिशें
जैसे बगैर रात के होती नहीं सहर
यूं साथ बादलों का निभाती हैं बारिशें
सहरा में खिल उठे कई महके हुए चमन
बंजर ज़मीं में फूल खिलाती हैं बारिशें
'फ़िरदौस' अब क़रीब मौसम बहार का
आ जाओ कब से तुमको बुलाती हैं बारिशें
-फ़िरदौस ख़ान
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