वो चाहता है...मैं कोई गीत लिखूं


ज़िन्दगी का मौसम कभी एक जैसा नहीं रहता...पल-पल बदलता रहता है..फ़र्क बस इतना है कि कुछ लोगों की ज़िन्दगी में बहार का मौसम देर तक ठहरता है और उनके दामन को खुशियों से सराबोर कर देता है...लेकिन बहुत-से ऐसे लोग भी होते हैं, जिनकी ज़िन्दगी में बहार कभी आती ही नहीं... या यूं कहिये कि उनकी ज़िन्दगी में खिज़ा का मौसम आता है और फिर हमेशा के लिए ही ठहर जाता है...अलबत्ता, खिज़ा का भी अपना ही लुत्फ़ होता है...हमने अपनी एक नज़्म में खिज़ा के मौसम की ख़ूबसूरती को पेश किया था...बहरहाल आज हम एक फ़रमाइश पर अपनी एक पुरानी नज़्म पोस्ट कर रहे हैं...इस वादे के साथ के जल्द ही एक ताज़ा नज़्म पोस्ट करेंगे...

नज़्म
वो चाहता है
मैं कोई गीत लिखूं
मुहब्बत के मौसम का...

लेकिन
उसको कैसे बताऊं
क़ातिबे-तक़दीर ने
मेरे मुक़द्दर में
लिख डाली है
उम्रभर की खिज़ा...
-फ़िरदौस ख़ान
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6 Response to "वो चाहता है...मैं कोई गीत लिखूं"

  1. डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) says:
    4 नवंबर 2009 को 12:22 am बजे

    wat do I say now!!!!!!!!

    m speechless.......


    gr8 one......

  2. Mohammed Umar Kairanvi says:
    4 नवंबर 2009 को 12:32 am बजे

    ताजा नज्‍म का इन्‍तज़ार रहेगा,

  3. shyam gupta says:
    6 नवंबर 2009 को 3:07 pm बजे

    गीत हर मौसम , हर हाले दिल में लिखे जाते रहे हैं , लिखते रहिये , अच्छा लिखतीं हैं आप |

  4. shyam gupta says:
    6 नवंबर 2009 को 3:10 pm बजे

    यादों के ज़जीरे
    उग आये हैं
    दिल के समंदर में ,
    कश्ती कहाँ-कहाँ ले जाएँ हम .

  5. daanish says:
    12 नवंबर 2009 को 1:14 pm बजे

    bahut dino baad
    aapke blog par aana huaa
    sukhan mei taaz`gee ,
    lehje ki shiguft`gee ,
    aur
    asar mei sanjeed`gee....
    sb wahee....

  6. बेनामी Says:
    6 मार्च 2010 को 9:31 pm बजे

    लेकिन
    उसको कैसे बताऊं
    क़ातिबे-तक़दीर ने
    मेरे मुक़द्दर में
    लिख डाली है
    उम्रभर की खिज़ा...

    लाजवाब...बेमिसाल नज़्म....... लहजे की शगुफ्तगी और वही सबसे जुदा अंदाज़.......

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