इंतज़ार


हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम मिस्र के बाशिन्दों को काहिनों के ज़ुल्म से निजात दिलाने की मुहिम में जुटे हैं. वे मिस्र के बाशिन्दों को ख़ुशहाल ज़िन्दगी देने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. अपना घरबार छोड़कर मिस्र के गोशे-गोशे की ख़ाक छान रहे हैं.

और बानो ज़ुलैख़ा अपने यूसुफ़ के इंतज़ार में पलकें बिछाये बैठी हैं. उन्हें यक़ीन है कि कभी न कभी ये हिज्र का मौसम ज़रूर बीतेगा और उन्हें अपने यूसुफ़ का क़ुर्ब हासिल होगा.


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अल्लाह तुम्हें अर्श पे मारूफ़ करेगा


अल्लाह तुम्हें अर्श पे मारूफ़ करेगा 
करते रहो ज़मीन पे गुमनाम इबादत

करते नहीं ख़्याल ग़रीबो यतीम का 
हो जाएगी हर किस्म की नाकाम इबादत
-फ़िरदौस ख़ान 
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ख़त


मेरे महबूब !
मेरी ज़िन्दगी
वो गुमशुदा ख़त है
जिसका पता तुम हो...
-फ़िरदौस ख़ान 
 

Mere Mahboob !
Meri Zindagi 
Wo Gumshuda Khat Hai
Jiska Pataa TUM ho...
-Firdaus Khan


Photo Curtesy by Google
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रंग-बिरंगी कढ़ाई वाले रुमाल...


फ़िरदौस ख़ान
तुम्हें मालूम है न. कुछ काम हमें कितना सुकून देते हैं. जैसे सफ़ेद रुमालों पर रंग-बिरंगे रेशम से बेल-बूटे टांकना. स्कूल के दिनों में बहुत रुमालों पर एक से एक ख़ूबसूरत फूल काढ़े हैं. लाल, गुलाबी, पीले, नीले और कई शेड वाले गुलाब, चम्पा और न जाने कौन-कौन से फूल. कुछ फूलों के आकार पेंसिल से बनाए, तो कुछ दादी जान के फ़र्मों से. पहले फ़र्मों पर हल्की-सी रौशनाई लगाई, फिर उसे रुमाल के एक कोने पर छाप दिया. उसके बाद रुमाल को फ़्रेम पर कसकर रेशम से फूल काढ़े, पत्तियां हरे रंगों से, कलियां हल्के रंगों से और फूल गहरे रंगों से. एक रुमाल की कढ़ाई में कई-कई दिन लग जाते थे, क्योंकि सुबह स्कूल जाना. ढेर सारा होमवर्क करना. खेलना भी तो ज़रूरी होता था. रात में रुमाल याद आते थे. देर तक जागने पर दादी जान कहती थीं- सुबह कौन-सा इम्तिहान है. यह काम कल कर लेना. और न चाहते हुए भी हमें कढ़ाई छोड़नी पड़ती.

रेशम ख़रीदने के लिए पापा के साथ बाज़ार जाया करते थे. दुकान पर जब बहुत से प्यारे-प्यारे रंग देख कर समझ नहीं पाते थे कि कौन-से रंग का रेशम ख़रीदें और कौन-सा छोड़े. सभी तो एक से बढ़कर एक हुआ करते थे. तब पापा कहते- बबीता सभी ले लो. बचपन में पापा हमें बबीता ही कहा करते थे. वे बाद में फ़िरदौस कहने लगे, क्योंकि हमें लोग फ़िरदौस नाम से ही जानते हैं, जो हमारा असली नाम है. वैसे भी हमारे कई नाम रहे हैं. इस बारे में फिर कभी बात करेंगे. बहरहाल, हम ढेर सारे रेशम ख़रीदकर घर आते. हां, रास्ते में पापा हमें आईसक्रीम, छोले, समौसे और भी न जाने क्या-क्या खिलाते थे. पापा के साथ खायी सभी चीज़ें हम आज भी खाते हैं, पर वह मज़ा नहीं आता, जो पापा के साथ आया करता था.

पापा के साथ ख़रीदे गए रेशम आज भी एक डिब्बे में रखे हुए हैं. जब भी इन्हें देखते हैं, तो पापा बहुत याद आते हैं. हमने कितने ही रुमाल काढ़े, अपनी टीचर को दिए, अम्मी को दिए. अम्मी के पास कभी रुमाल टिके ही नहीं, क्योंकि जो भी रुमाल देखता मांग लेता. अम्मी कभी मना ही नहीं कर पाती थीं, लेकिन हमें हमेशा इस बात का अफ़सोस रहा कि हमने कभी तुम्हें रुमाल नहीं दिया, क्योंकि हमारी एक सहेली ने कहा था-रुमाल देने से रिश्ता टूट जाता है. यह बात कितनी सच है, हम नहीं जानते, लेकिन तुम्हारे मामले में कोई रिस्क लेना नहीम चाहते थे. देखो, हमने तुम्हें कोई रुमाल नहीं दिया. फिर भी तुम कितने दूर हो. मन के सबसे क़रीब होकर भी दूर, बहुत दूर.

अब हम एक रुमाल काढ़ना चाहते हैं, तुम्हारे लि, रंग-बिरंगे रेशम से. क्योंकि हम जान गए हैं कि रिश्ते तो क़िस्मत से बनते और बिखरते हैं. फिर क्यों हम तुम्हें उस रुमाल से महरूम रखें, जो तुम हमेशा से चाहते हो.

दैनिक अमृत विचार 



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इक राह तो वो होगी, तुम तक जो पहुंचती है...


मेरे महबूब !
मुझे हर उस शय से मुहब्बत है, जो तुम से वाबस्ता है. हमेशा से मुझे सफ़ेद रंग अच्छा लगता है. बाद में जाना कि ऐसा क्यों था. तुम्हें जब भी देखा सफ़ेद दूधिया लिबास में देखा. लोगों के हुजूम में तुम्हें देखकर ऐसा लगता है, जैसे चांद ख़ुद ज़मीं पर उतर आया हो. सच तुम इस ज़मीं का चांद ही तो हो, जिससे मेरी ज़िन्दगी में उजाला बिखरा है.
जब तुम परदेस में होते हो तो अपना देस भी बेगाना लगने लगता है. हर पल तुम्हारे लौटने का इंतज़ार रहता है. कभी ऐसा भी होता है कि परदेस ही अपना सा लगने लगता है, क्योंकि तुम वहां जो हो. सच मुहब्बत भी क्या शय है, जो ख़ुदा के क़रीब पहुंचा देती है. जबसे तुम्हें चाहा है, तब से ख़ुदा को पहचाना है. हर वक़्त तुम्हीं को क़रीब पाया है. सावन में जब आसमां पर काली घटाएं छा जातीं हैं और फिर बारिश की बूंदें प्यासी धरती की प्यास बुझाती हैं. जाड़ो में कोहरे से घिरी सुबह क्यारियों में महकते गुलाब फ़िज़ां में भीनी-भीनी ख़ुशबू बिखेर देते हैं. और गर्मियों की तपती दोपहरों और सुलगती रातों में भी हर सिम्त तुम ही तुम नज़र आते हो.
तुम्हारे बग़ैर कुछ भी अच्छा नहीं लगता.
ख़्वाजा मुहम्मद ख़ां ताहिर साहब ने सच ही तो कहा है-
फिर ज़ुलैख़ा न नींद भर सोई
जबसे यूसुफ़ को ख़्वाब में देखा...
मुझे वो सड़क भी बेहद अज़ीज़ है, जो तुम्हारे शहर तक जाती है. वैसे मैं जहां रहती हूं, वहां से कई सड़कें तुम्हारे शहर तक जाती हैं. पर आज तक ये नहीं समझ पाई कि मैं किस राह पर अपना क़दम रखूं कि तुम तक पहुंच जाऊं, लेकिन दिल को एक तसल्ली ज़रूर है कि इन अनजान राहों में इक राह तो वो होगी, तुम तक जो पहुंचती है...  
-फ़िरदौस ख़ान

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मुहब्बत



जब इंसान को किसी से मुहब्बत हो जाया करती है, तो फिर उसका वजूद, उसका अपना नहीं रह जाता. दिल उसका होता है, लेकिन धड़कनें किसी और की. जिस्म अपना होता है, लेकिन रूह किसी और की, क्योंकि उसकी अपनी रूह तो अपने महबूब की चाह में भटकती फिरा करती है.

बक़ौल बुल्ले शाह-
रांझा रांझा करदी हुण मैं आपे रांझा होई
सद्दी मैनूं धीदो रांझा हीर न आखो कोई
रांझा मैं विच, मैं रांझे विच ग़ैर ख़िआल न कोई
मैं नाहीं ओह आप है अपणी आप करे दिलजोई
जो कुछ साडे अन्दर वस्से जात असाडी सोई
जिस दे नाल मैं न्योंह लगाया ओही जैसी होई
चिट्टी चादर लाह सुट कुडिये, पहन फ़कीरां दी लोई
चिट्टी चादर दाग लगेसी, लोई दाग न कोई
तख़्त हज़ारे लै चल बुल्ल्हिआ, स्याली मिले न ढोई
रांझा रांझा करदी हुण मैं आपे रांझा होई...

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हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता...


संगीत दिलो-दिमाग़ को बहुत सुकून देता है. अगर भक्ति संगीत की बात की जाए, तो यह रूह की गहराई तक में उतर जाता है. हमारी पसंद के बहुत से भक्ति गीत हैं, जिन्हें सुनते हुए हम उम्र बिता सकते हैं. ऐसा ही एक गीत है- मंगल भवन अमंगल हारी. साल 1975 में आई फ़िल्म 'गीत गाता चल' में इसे सचिन पर फ़िल्माया गया था.
इस गीत को जब भी सुनते हैं, एक अजीब-सा सुकून मिलता है. 

मंगल भवन अमंगल हारी
द्रवहु सुदसरथ अचर बिहारी
राम सिया राम सिया राम जय जय राम-2
हो, होइहै वही जो राम रचि राखा
को करि तर्क बढ़ाये साखा
हो, धीरज धरम मित्र अरु नारी
आपद काल परखिये चारी
हो, जेहिके जेहि पर सत्य सनेहू
सो तेहि मिलय न कछु सन्देहू
हो, जाकी रही भावना जैसी
रघु मूरति देखी तिन तैसी
रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन न जाई
राम सिया राम सिया राम जय जय राम
हो, हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता
कहहि सुनहि बहुविधि सब संता
राम सिया राम सिया राम जय जय राम...
बहरहाल, हम यह गीत सुनते हैं...
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