बारिश...

मेरे महबूब !
ये बारिश का मौसम
ये मिट्टी की सौंधी महक
ये रिमझिम बूंदों का रक़्स
ये बौछारें, ये फुहारें
ये बारिश में भीगना
कितना अच्छा लगता है...
मानो
हिज्र का मौसम बीत गया है...
-फ़िरदौस ख़ान

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मुहब्बत के रंग

आज फ़िज़ा में मुहब्बत के रंग बिखरे हैं... दिल ख़ुशी से झूम रहा है...नाच रहा है... ऐसे ही तो लम्हे हुआ करते हैं, जब बेख़ुदी में ख़ुदा को पा लेने की तमन्ना अंगड़ाइयां लेने लगती है...
अमीर ख़ुसरो साहब का कलाम याद आ गया-
मोहे अपने ही रंग में रंग दे
तू तो साहिब मेरा महबूब-ए-इलाही
हमारी चुनरिया पिया की पयरिया वो तो दोनों बसंती रंग दे
जो तो मांगे रंग की रंगाई मोरा जोबन गिरबी रख ले
आन परी दरबार तिहारे
मोरी लाज शर्म सब ले
मोहे अपने ही रंग में रंग दे...
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ज़ियारत-गाह

मेरे महबूब !
हर वो मुल्क
हर वो शहर
हर वो जगह
मेरे लिए ज़ियारत-गाह है
जहां तुमने क़दम रखे
क्योंकि
उस ज़मीन का
हर ज़र्रा
मेरे लिए क़ाबिले-एहतराम है...
-फ़िरदौस ख़ान

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क़ातिल उधर भी हैं, क़ातिल इधर भी हैं...

ये देखकर बहुत दुख होता है कि धर्म के नाम पर, मज़हब के नाम पर आज बेगुनाहों का ख़ून बहाया जा रहा है... ऐसी ख़बरे देख-सुन कर तकलीफ़ होती है...

क़ातिल उधर भी हैं
क़ातिल इधर भी हैं...

वो धर्म के नाम पर
हत्या करते हैं
ये भी मज़हब के नाम पर
क़त्ल करते हैं
क़ातिल उधर भी हैं
क़ातिल इधर भी हैं...

उन्हें मानवता से
कोई सरोकार नहीं है
इन्हें भी इंसानियत से
कोई सरोकार नहीं है
क़ातिल उधर भी हैं
क़ातिल इधर भी हैं...

निर्दोषों का रक्त बहाकर
उनके मुख चमकते हैं
बेगुनाहों का ख़ून बहाकर
इनके चेहरे भी दमकते हैं
क़ातिल उधर भी हैं
क़ातिल इधर भी हैं...

मानवता के शव पर
वे अपना ध्यज लहराते हैं
इंसानियत की लाश पर
ये भी अपना परचम फहराते हैं...
क़ातिल उधर भी हैं
क़ातिल इधर भी हैं...
-फ़िरदौस ख़ान

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डायरी लिखनी चाहिए

हमें डायरी लिखने की आदत है... स्कूल के वक़्त से ही डायरी लिख रहे हैं... कुछ साल पहले अंतर्जाल पर भी बलॊग लिखना शुरू किया... शुरुआत हिंदी से की थी... बाद में उर्दू, पंजाबी और अंग्रेज़ी में भी बलॊग लिखने लगे... डायरी लिखना ही नहीं, पढ़ना भी बहुत अच्छा लगता है... अकसर अपनी पुरानी डायरियां पढ़ने बैठ जाते हैं... दरअसल, डायरी ज़िंदगी की एक किताब ही हुआ करती है, जिसके औराक़ (पन्नों) पर हमारी यादें दर्ज होती हैं... वो यादें, जो हमारे माज़ी का अहम हिस्सा हैं...

इन दिनों डायरी लेखन ख़ूब हो रहा है. डायरी, आत्मकथा का ही एक रूप है. फ़र्क़ बस ये है कि आत्मकथा में पूरी ज़िन्दगी का ज़िक्र होता है और ज़िन्दगी के ख़ास वाक़ियात ही इसमें शामिल किए जाते हैं, जबकि डायरी में रोज़मर्रा की उन सभी बातों को शामिल किया जाता है, जिससे लेखक मुतासिर होता है. डायरी में अपनी ज़ाती बातें होती हैं, समाज और देश-दुनिया से जुड़े क़िस्से हुआ करते है. डायरी लेखन जज़्बात से सराबोर होता है, क्योंकि इसे अमूमन रोज़ ही लिखा जाता है. इसलिए उससे जुड़ी तमाम बातें ज़ेहन में ताज़ा रहती हैं. डायरी लिखना अपने आप में ही बहुत ख़ूबसूरत अहसास है. डायरी एक बेहद क़रीबी दोस्त की तरह है, क्योंकि इंसान जो बातें किसी और से नहीं कह पाता, उसे डायरी में लिख लेता है. हमारे मुल्क में भी डायरी लेखन एक जानी-पहचानी विधा बन चुकी है. इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए साहित्य जगत ने भी इसे क़ुबूल कर लिया है. बलॊग ने आज इसे घर-घर पहुंचा दिया है. उन्होंने कहा कि डायरी का ज़िक्र तेरह साल की एनी फ्रेंक के बिना अधूरा है. नीदरलैंड पर नाज़ी क़ब्ज़े के दौरान दो साल उसके परिवार ने छिपकर ज़िन्दगी गुज़ारी. बाद में नाज़ियों ने उन्हें पकड़ लिया और शिविर में भेज दिया, जहां उसकी मां की मौत हो गई. बाद में टायफ़ाइड की वजह से ऐनी और उसकी बहन ने भी दम तोड़ दिया. इस दौरान एनी ने अपनी ज़िन्दगी के अनुभवों को डायरी में लिखा था. जब रूसियों ने उस इलाक़े को आज़ाद करवाया, तब एनी की डायरी मिली. परिवार के ऑटो फ्रैंक ने ’द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल’ नाम से इसे शाया कराया.  दुनियाभर की अनेक भाषाओं इसका में अनुवाद हो चुका है. और ये दुनिया की सबसे ज़्यादा लोकप्रिय डायरी में शुमार की जाती है.
डायरी लिखनी चाहिए... डायरी में लिखी गईं ख़ूबसूरत बातें ताज़ा फूलों की तरह होती हैं... जो ख़ुशी देती हैं... हम बरसों से डायरी लिख रहे हैं...

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