उस रोज़ हम भी महिला दिवस मनाएंगे...


आज महिला दिवस है... एक तरफ़ देशभर में कार्यक्रम होंगे और महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर लंबे-चौड़े भाषण दिए जाएंगे... और दूसरी तरफ़ महिला दिवस से अनजान करोड़ों ग़रीब महिलाएं हर रोज़ की तरह सूरज निकलने से पहले उठेंगी... घर का काम-काज करेंगी... दोपहर के लिए रोटी बांधेंगी और फिर मज़दूरी के लिए निकल पड़ेंगी... कोई अपने दूधमुंहे बच्चे को पीठ से बांधकर ईंटें, मिट्टी, रेत, क्रैसर ढोएगी, तो कोई सड़क पर ही अपने बच्चे को बिठाकर पत्थर तोड़ेगी... फिर शाम को दिहाड़ी के पैसों से आटा, दाल, सब्ज़ी ख़रीदेगी और घर जाकर चूल्हा-चौका संभाल लेगी... दिन-रात के चौबीस घंटों में से अट्ठारह घंटे उसे काम करना है... वो भी एक दिन, एक हफ़्ता, एक महीना या एक साल नहीं, बल्कि ज़िंदगी भर... यानी जब तक उसके जिस्म में जान है, उसे काम करना है...
बहुत क़रीब से देखा है, इन मेहनतकश महिलाओं को... जिस रोज़ ऐसी एक भी मेहनतकश महिला के लिए कुछ कर पाएंगे, यक़ीनन उस, रोज़ हम भी महिला दिवस मनाएंगे...

चित्र : गूगल से साभार
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भ्रष्ट कौन...?


हमारे मुल्क में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें दिन भर कड़ी मेहनत करने के बाद भी मुश्किल से दो वक़्त की रोटी नसीब हो पाती है... जिस दिन उन्हें काम नहीं मिलता, उस दिन उनके घर का चूल्हा भी नहीं जल पाता... ये लोग रोज़ कुंआ खोदते हैं और रोज़ पानी पीते हैं...

उम्मीदवार जब इन मेहनतकशों से अपने लिए मतदान के लिए कहते हैं, तो इनका जवाब होता है कि मतदान के लिए वे अपनी दिहाड़ी नहीं छोड़ सकते, क्योंकि अगर काम नहीं करेंगे, तो खाएंगे कहां से...?
इस पर उम्मीदवार इन लोगों से कहते हैं कि एक दिन की दिहाड़ी के पैसे हमसे ले लो और हमारे हक़ में मतदान कर दो... इस पर ये लोग (सभी नहीं) उम्मीदवार से दिहाड़ी के पैसे लेकर मतदान कर देते हैं...

हमारी नज़र में अपनी दिहाड़ी के पैसे लेकर मतदान करने वाले ये मज़दूर भ्रष्ट नहीं हैं... बल्कि भ्रष्ट वे लोग हैं, जो इनकी मजबूरी का फ़ायदा उठाते हैं... और सबसे ज़्यादा भ्रष्ट वह व्यवस्था है, जिसमें ग़रीब आदमी एक दिन काम न करे, तो उसे और उसके परिजनों को भरपेट खाना तक नसीब नहीं हो पाता है...

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