कगवा बिन सूनी है अपनी अटरिया...


अला या बरावल बैनिहल अंता मुख़बिरी 
फ़हल ख़ुबूंमिल ग़ायबीन तुबशिशारेन...         
यानी... ऐ कांव-कान की रट लगाने वाले फ़क़ीर कौवे! आज तू किसी दोस्त से जुदा होने की ख़बर लाया है...या किसी बिछड़े दोस्त के मिलने की ख़ुशी दे रहा है... 

कौवे की आवाज़ आज भी बहुत भली लगती है...बिलकुल अपने बचपन की तरह... बचपन में देखा था-जब भी कौवा बोलता था...दादी जान कहती थीं कि आज ज़रूर कोई मेहमान आने वाला है...पूछने पर वो बतातीं थीं कि कौवा जब भी मुंडेर पर बोले तो समझ लो कि घर में कोई आने वाला है...दादी जान की इस बात पर भरोसा कर हम सोचने लगते कि ज़रूर ननिहाल से कोई आने वाला है...शाम को दादी जान कहतीं- देखो मैंने कहा था न कि कोई मेहमान आएगा...यह इत्तेफ़ाक़ ही था कि जिस दिन दादी जान ऐसा कहतीं कोई न कोई आ ही जाता...वैसे हमारे घर मेहमानों का आना-जाना रोज़ का ही था...दादा जान शहर की एक जानी-मानी हस्ती जो थे...लेकिन हमें तो अपने मामा का इंतज़ार रहता था...वैसे भी कहते हैं- चंदा मामा से प्यारा मेरा मामा...मामा कहा करते हैं कि 'मामा' में दो 'मा' होते हैं, इसलिए वो मां से दोगुना प्यार करते हैं अपने भांजी-भांजों से... यह सही भी है...हमें अपने ननिहाल से बहुत ही प्यार-दुलार मिला है...

कौआ...एक ऐसा स्याह परिंदा जिसने गीतों में अपनी जगह बनाई है...आज भी कौवे को बोलता देखते हैं तो दादी जान की बात याद आ जाती है...फ़र्क़ बस इतना है कि तब मामा का इंतज़ार होता था...और आज न जाने किसका इंतज़ार है...
सच!  कौवा भी किसी क़ासिद की तरह ही नज़र आता है, जब किसी का इंतज़ार होता है...
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नारी का मन...





फ़िरदौस ख़ान
एक नारी का मन प्रेमियों के बिना शायद स्थिर नहीं रह पाता...क्या यह सच है...? क्या नारी का मन सचमुच इतना चंचल होता है कि उसे स्थिर रखने के लिए एक पुरुष की ज़रूरत पड़ती है...  क्या नारी बंधन में ही सुख पाती है...बंधन भी ऐसा जिसमें वह ख़ुद अपनी मर्ज़ी से बंधती है...या फिर वह किसी पुरुष को बांधे रखना चाहती है...
       
प्रसिद्ध इतालवी लेखक रोबर्तो कलासो की किताब 'क भारतीय मानस और देवताओं की कहानियां' में अर्जुन के एक साल के अज्ञातवास का ज़िक्र करते हुए रोबर्तो कलासो लिखते हैं- "एक वर्ष कठिनाई भरा, संघर्ष पूर्ण, बुरी तरह थका देने वाला, लेकिन आवेगपूर्ण था. संध्या समय कन्याओं का एक छोटा समूह उन्हें घेरकर बैठ जाता और वह दैत्यों, राजाओं, राज कन्याओं और योद्धाओं की मनोरंजक कथाएं सुनाते. लड़कियां उन्हें सारा समय घेरे रहतीं और उनका नृत्य मुद्राओं तथा हाव-भाव का अनुसरण करतीं. दिन का समय प्राय: नृत्यशाला में बीतता था. विराट एक समृद्ध राज्य का राजा था, किंतु समस्याएं भी अनेक थीं. सबसे बड़ी समस्या तो बेटी उत्तरा स्वयं थी. अर्जुन ने मन ही मन प्रण किया कि वह उत्तरा को स्पर्श तक नहीं करेंगे, लेकिन न जाने क्या बात थी, दोनों का समय अधिकतर साथ-साथ ही बीतता था. अर्जुन ने अपने मन को बस इतना ही अधिकार दिया था कि वह उत्तरा को लेकर कल्पना का ताना-बाना बुन सकते थे. उत्तरा के लिए तो स्थिति और भी दारुण थी. अभी तक वह बहुत छोटी थी-किसी बच्ची जैसी, जो अपने अदृश्य  प्रेमी के घेरे से बाहर आ रही थी धीरे-धीरे. सर्वप्रथम उसे प्राप्त करने वालों में था सोम. फिर आया गंधर्व. तीसरे अदृश्य पति थे अग्नि और चौथा एक मनुष्य हो सकता था. एक नारी का मन प्रेमियों के बिना शायद स्थिर नहीं रह पाता. वह पहले सोम के साथ रहती रही, फिर गंधर्व और फिर अग्नि के साथ. अब एक मानव प्रेमी की प्रतीक्षा कर रही थी. वह कोई भी हो सकता था. उस मनुष्य की खोज अर्जुन में पूरी हो गई जो उत्तरा को नृत्य-संगीत की शिक्षा दे रहे थे. लेकिन अर्जुन के लिए इतना ही पर्याप्त था, इससे अधिक कुछ नहीं. वह उत्तरा की अति निकटता के बचकर चलते थे. उत्तरा ने दुख भरे स्वर में कहा, आप तो किसी गंधर्व से भी दुर्लभ हैं और देवताओं से भी अधिक अप्राप्य. आप भले ही मुझसे दूर-दूर रहें, मैं तो आप में समाई हूं...कहते-कहते वह रो पड़ी. इस रूदन में दुख नहीं, गहन आनंद की अनुभूति बोल रही थी. अर्जुन अब समझ सके कि उर्वशी ने उनसे कैसा भयानक प्रतिशोध लिया है. क्योंकि उन्होंने उर्वशी को अपनी मां समझते हुए ठुकरा दिया था. इसलिए उन्हें उत्तरा को भी अस्वीकार करना था, अपनी बेटी मानकर."  

बंधन...आख़िर बंधन ही होता है... भले वह प्रेम का ही क्यों न हो... मन तो चंचल है...और वो अरमानों के पंखों के साथ सपनों के आसमान में उड़ान भरने को आतुर रहता है...
क्या प्रेम सिर्फ़ एक बार ही होता है...या फिर बार-बार हो सकता है...उत्तरा ने कई बार प्रेम किया...अलग-अलग पुरुषों से...सभी के साथ वह संतुष्ट रही... क्या कोई महिला अपने प्रेमी या साथी के बिछड़ने पर उम्रभर उसका शोक मनाती रहे...या उसे भी नया प्रेमी या साथी तलाश लेना चाहिए...
अपने सहकर्मी पुरुष के एक सवाल के जवाब में एक लड़की ने जवाब दिया-मैं बॉय फ्रेंड नहीं पालती... एक दूसरी लड़की का कहना था कि बॉय फ्रेंड परेशानी का सबब बन जाते हैं...यानी रोक-टोक लगाना... इससे न मिलो, उससे बात न करो...ख़ुद भी कोई काम नहीं करके देंगे...और किसी दूसरे से काम कराने पर उसमें हज़ार ऐब निकाल देंगे... इसलिए बॉय फ्रेंड रखकर कौन मुसीबत मोल ले... एक और लड़की कहती है-जब तक किसी के साथ संबंध मधुर है, तब तक तो ठीक है...लेकिन जैसे ही रिश्ते में कटुता आने लगे तो बेहतर है कि ऐसे रिश्ते को तोड़ दिया जाए...

मेरी एक दोस्त की खाला को किसी लड़के से प्रेम हो गया... लड़के के घरवालों को रिश्ता मंज़ूर नहीं था...वजह लड़की उनकी ज़ात की नहीं थी... कुछ वक़्त बाद लड़के ने अपने घरवालों की पसंद से शादी कर ली, लेकिन खाला ने शादी नहीं की... उस लड़के का आज भरा पूरा परिवार है...बीवी है, बच्चे हैं... वह लड़का तो अपनी नई ज़िन्दगी में मस्त हो गया...लेकिन उम्र के आख़िरी पड़ाव में वो अकेले ही दिन गुज़ार रही हैं... आख़िर इस प्यार ने उन्हें क्या दिया...? अगर वह भी अपना नया साथी चुन लेतीं तो शायद आज उनकी ज़िन्दगी इतनी वीरान नहीं होती... आख़िर नारी का मन ऐसा क्यों होता है...?

क़रीब दो साल पहले मेरी दोस्त की शादी हुई है...उसे भी एक लड़के से प्रेम था...दोनों की ज़ात अलग थी... लड़के में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो समाज की ज़ात-बिरादरी की दीवार तोड़ कर उसे अपना पाता... मेरी दोस्त बहुत रोती थी, इसलिए कि उसे बुज़दिल लड़के से प्रेम हुआ...आख़िर वह रोती भी कितने दिन... उसने अपने घरवालों की मर्ज़ी से शादी कर ली...

सोचती हूं कि कौन सही है...? किसी के बिछड़ने पर उम्रभर उसके ग़म में डूबी रहने वाली खाला या नया साथी चुनकर ज़िन्दगी  के  रास्ते पर आगे बढ़ जाने वाली दोस्त... बेशक, दोस्त ही सही है...क्योंकि ज़िन्दगी तो एक बार ही मिलती है...फिर उसे किसी ऐसे व्यक्ति के लिए क्यों बर्बाद किया जाए, जो या तो तुम्हें छोड़कर चला गया है...या वो कभी तुम्हारा हो ही नहीं सकता...

तस्वीर : गूगल से साभार  
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ताल्लुक़ बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा...


फ़िरदौस ख़ान
माना ज़िन्दगी में प्रेम की भी अपनी अहमियत है...मगर प्रेम ही तो सबकुछ नहीं है...ज़िन्दगी बहुत ख़ूबसूरत है...और उससे भी ख़ूबसूरत होते हैं हमारे इंद्रधनुषी सपने...हमें अपनी भावनाएं ऐसे व्यक्ति से नहीं जोड़नी चाहिए, जो इस क़ाबिल ही हो... जिस तरह पूजा के फूलों को कूड़ेदान में नहीं फेंका जा सकता, उसी तरह अपने प्रेम और इससे जुडी कोमल भावनाओं को किसी दुष्ट प्रवृति के व्यक्ति पर न्योछावर नहीं किया जा सकता.

पिछले दिनों दो ऐसे हादसे हुए जो प्रेम, विश्वासघात और ख़ुदकुशी से जुड़े थे. दोनों ही हादसों में दो होनहार लड़कियों की ज़िन्दगी ख़त्म हो गई. दोनों ने ही अपने प्रेमियों के बर्ताव से आहत होकर मौत को गले लगा लिया. पहला मामला है जमशेदपुर की 22 वर्षीय  आदिवासी छात्रा मालिनी मुर्मू का, जिसने अपने प्रेमी के रवैये से आहत होकर ख़ुदकुशी कर ली. उसका बेंगलूर में ही रहने वाले उसके ब्वायफ्रेंड से हाल में कथित तौर पर कुछ मनमुटाव और कहासुनी हुई थी. इसके बाद लड़के ने फेसबुक में अपने वॉल पर एक संदेश में लिखा था- 'मैं आज बहुत आराम महसूस कर रहा हूं. मैंने अपनी गर्लफ्रेंड को छोड़ दिया है. अब मैं स्वतंत्र महसूस कर रहा हूं. स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं.'   मामले की जांच कर रहे अधिकारियों के मुताबिक़ सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर मालिनी  के ब्वॉयफ्रैंड ने उससे संबंध तोड़ लिए थे. इससे उसे गहरा आघात लगा और उसने क्लास में भी जाना छोड़ दिया. क्लास में उसे नहीं पाकर जब उसके दोस्त हॉस्टल के कमरा नंबर 421 में गए तो उसने दरवाज़ा नहीं खोला. गार्ड्स को बुलाकर दरवाज़ा तुड़वाया गया. कमरे के भीतर मालिनी का शव पंखे से झूलता मिला.

मालिनी ज़िन्दगी में एक बड़ा मुक़ाम हासिल करना चाहती थी. उसने साकची के राजेंद्र विद्यालय से दसवीं की पढ़ाई की थी. इसके बाद उसने उड़ीसा के आईटीई से बारहवीं पास की. वह आईआईएम बेंगलुरू में एमबीए प्रथम वर्ष की छात्रा थी. लैपटॉप में छोड़े अपने सुसाइड नोट में उसने लिखा है- उसने मुझे छोड़ दिया, इसलिए आत्महत्या कर रही हूं.

दूसरा मामला है  36 वर्षीय एयरफोर्स की पूर्व महिला फ्लाइंग ऑफिसर अंजलि गुप्ता का, जिसने अपने विवाहित प्रेमी  ग्रुप कैप्टन अमित गुप्ता के विश्वासघात से दुखी होकर कथित तौर पर ख़ुदकुशी कर ली थी.  अंजलि के परिजनों ने आरोप लगाया है कि अमित गुप्ता उसके साथ पिछले सात साल से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा था. दोनों की मुलाक़ात साल 2001  में कर्नाटक के बेलगांव में उस वक़्त हुई,  जब अंजलि ने बतौर फ्लाइंग ऑफिसर पहली पोस्टिंग ली थी. उस दौरान अमित वहां ग्रुप कैप्टन थे. अमित ने उसके साथ दोस्ती बढ़ाई, फिर शादी करने का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध भी बनाए. अमित ने अपनी पहली पत्नी से तलाक़ लेकर उससे शादी रचाने का वादा भी किया था, लेकिन शादी नहीं की.  शाहपुरा पुलिस को भोपाल के फॉच्यरून ग्लोरी निवासी अमित गुप्ता के मकान से अंजलि की लाश मिली थी. उसने दुपट्टे का फंदा बनाकर फांसी लगाई थी.

ये दोनों ही लड़कियां अति भावुक थीं. ख़ुदकुशी करते वक़्त इनकी मनोस्थिति क्या रही होगी, इसे समझा जा सकता है...लेकिन इन्होंने अपनी ज़िन्दगी ख़त्म करके अच्छा नहीं किया. अगर ये थोड़ा समझदारी और धैर्य से काम लेतीं तो आज ज़िंदा होतीं.  ऐसी कोई वजह नहीं थी कि इन्हें ज़िन्दगी में अच्छे लड़के नहीं मिलते. अगर इन्हें लग रहा था कि इनके प्रेमी इनके साथ धोखा कर रहे हैं, तो इन्हें अपने प्रेमियों को छोड़ देना चाहिए था.
   
बक़ौल साहिर लुधियानवी-
तार्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक़ बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन
उसे एक ख़ूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा... 


ज़िन्दगी चलते रहने का नाम है...और इसकी सार्थकता चलते रहने में ही है... किसी दुष्ट के लिए अपनी ज़िन्दगी क्यों बर्बाद की जाए... 
बहरहाल, इंसान को फ़ैसले लेते वक़्त दिल से ही नहीं दिमाग़ से भी काम लेना चाहिए...

आख़िर में 
सोशल नेटवर्किंग साइट फ़ेसबुक ऐसी प्रणाली लॉन्च कर रहा है, जिसकी मदद से लोग अपने ऐसे दोस्तों के बारे में रिपोर्ट कर सकते हैं जो उनकी नज़र में ख़ुदकुशी करने के बारे में सोच रहे हैं. यह सुविधा समैरिटन्स नाम की संस्था के साथ मिलकर शुरु की गई है. इस संस्था का कहना है कि प्रणाली के परीक्षण के दौरान कई लोगों ने इसका इस्तेमाल किया है. यह संस्था ऐसे लोगों को भावनात्मक समर्थन देती है, जो अवसाद या मुश्किल दौर से गुज़र रहे हों. इसमें ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो ख़ुदकुशी कर सकते हैं. अगर आप अपने किसी दोस्त को लेकर फ़िक्रमंद  हैं तो फ़ेसबुक पर अपनी चिंताओं के बारे में लिखते हुए एक फ़ॉर्म भर सकते हैं. यह फॉर्म साइट के मॉडरेटरों तक पहुंचा दिया जाता है. फ़ेसबुक के उस पेज का यूआरएल देना होगा, जहां ख़ुदकुशी करने बाबत संदेश लिखा हुआ है. इसके अलावा यूज़र का नाम और वो किस-किस नेटवर्क का सदस्य है...ये जानकारियां  भी देनी होंगी. ख़ुदकुशी संबंधी संदेशों के बारे में फ़ेसबुक की टीम को अलर्ट किया जाएगा.  

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हिन्दुस्तान का शहज़ादा


हिन्दुस्तान का शहज़ादा
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मेरी रूह महक रही है, तुम्हारी मुहब्बत से...

मेरे महबूब !
मुहब्बत के शहर की
ज़मीं का वो टुकड़ा
आज भी यादों की ख़ुशबू से महक रहा है
जहां
मैंने सुर्ख़ गुलाबों की
महकती पंखुड़ियों को
तुम्हारे क़दमों में बिछाया था...
तुमने कहा था-
यह फूल क़दमों में बिछाने के लिए नहीं
तुम्हारे बालों में सजाने के लिए हैं... 
फिर तुमने
मेरे खुले बालों में 
सुर्ख़ गुलाब लगाते हुए कहा था- 
आई लव यू ...
तब से मेरे बाल ही नहीं
मेरी रूह भी महक रही है
तुम्हारी मुहब्बत से...
-फ़िरदौस ख़ान
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