ज़िन्दगी में मुहब्बत का मौसम हो...


काश! कभी ऐसा हो...
ज़िन्दगी में
मुहब्बत का मौसम हो...

सुबहें
उम्मीद की किरनों से
रौशन हों...

दोपहरें
पलाश-वन सी
दहकी हों...

शामें
सुर्ख़ गुलाबों-सी
महकी हों...

और
रातें
मुहब्बत की चांदनी में
भीगी हों...

काश! कभी ऐसा हो...
ज़िन्दगी में
मुहब्बत का मौसम हो...
-फ़िरदौस ख़ान
  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS

तुम एक ख़्वाब लगते हो...


कभी
मैं सोचती
ज़ुल्फ़ों की घनी, महकी, नरम छांव में
तुम्हें बिठाकर
वो सभी जज़्बात से सराबोर अल्फाज़
जो मैंने बरसों से
अपने दिल की गहराइयों में
छुपाकर रखे
तुम्हारे सामने बिखेर दूं
और तुम
मेरे जज़्बात, मेरे अहसासात पढ़ लो
लेकिन
मेरा ज़हन
मेरा साथ नहीं देता
क्यूंकि
मेरी रूह, मेरे ख्यालात
कहते हैं-
कहीं ये एक ख़्वाब ही न हो
और
ये तसव्वुर करके
मेरा वजूद सहम जाता है
बस, ख़्वाब के टूटने के खौफ़ से
पता नहीं क्यूं
तुम एक ख़्वाब लगते हो
और मैं
उम्र की रहगुज़ारों में
भटकती रहती हूं
बस इक ख़्वाब को अपने हमराह लिए
जो मेरा अपना है...
-फ़िरदौस ख़ान

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS

मरने वाले के नाम की जगह मेरा नाम लिखा होगा...

नज़्म
जब कभी
अख़बार में पढ़ती हूं
खुदकुशी की कोई ख़बर
तो अकसर
यह सोचने लगती हूं
क्या कभी ऐसा होगा
मरने वाले के नाम की जगह
मेरा नाम लिखा होगा
और
मौत की वजह 'नामालूम' होगी
क्या कभी ऐसा होगा...?
-फ़िरदौस ख़ान
  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS

तब झूठा लगता है हर लफ़्ज़ मुहब्बत का...




हर रोज़ की तरह
जब
सुबह का सूरज
दस्तक देता है
ज़िन्दगी के
नए दिन की चौखट पर
और
फिर से शुरू होता है
तन्हाई का
एक और मुश्किल सफ़र...

जब
उम्र की तपती दोपहरी में
जिस्म तरसता है
ठंडी छांव को...

जब
सुरमई शाम को
बिखरते ख़्वाबों की किरचें
लहू-लुहान करती हैं
अरमानों के पांव को...

जब
लम्बी तन्हा रात में
अहसास सुलगते हैं
अंगारों से...

तब, वाक़ई
झूठा लगता है
हर लफ़्ज़ मुहब्बत का...
-फ़िरदौस ख़ान
  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS