संगीत...
संगीत प्रकृति के कण-कण में बसा है... चिड़ियों की चहचहाहट, नदियों का कल-कल करता जल, झरनों की झर-झर, हवा की सांय-सांय और रिमझिम बूंदों की टिप-टिप... सभी में संगीत मौजूद है... हिन्दुस्तानी संस्कृति और संगीत का चोली-दामन का साथ है... घर में कोई मंगल कार्य हो या कोई त्योहार, कोई भी गीत-संगीत के बिना मुकम्मल ही नहीं होता...
यह हमारी ख़ुश नसीबी है कि हमें हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत ग्रहण करने का मौक़ा मिला... कई साल हमने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की साधना की है... संगीत की देवी सरस्वती की वन्दना से सुर साधना का सफ़र शुरू हुआ और इस दौरान कई संगीत के कार्यक्रमों में जाने का मौक़ा मिला... कई सम्मान भी मिले..., लेकिन सबसे बड़ा सम्मान यही था कि हमें हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को क़रीब से जानने, समझने और सीखने का मौक़ा मिला...
हिन्दुस्तान में आज भी पारंपरिक कलाओं में गुरु-शिष्य की परंपरा क़ायम है... हमें भी एक ऐसे गुरु मिले, जिस पर किसी भी शिष्य को नाज़ होगा...
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काको लागूं पायं।
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविन्द दियो बताय।।
हमारे गुरु का संगीत के लिए कितना समर्पण भाव है, इसके बारे में अगली पोस्ट में लिखेंगे...
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