उमरपुरा के सिख भाइयों ने बनवाई मस्जिद
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*डॉ. फ़िरदौस ख़ान *
हमारे प्यारे हिन्दुस्तान की सौंधी मिट्टी में आज भी मुहब्बत की महक बरक़रार
है. इसलिए यहां के बाशिन्दे वक़्त-दर-वक़्त इंसानियत, प्रेम और भाई...
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10 अक्टूबर 2008 को 11:28 am बजे
बिल्कुल सही कहा आपने...थोड़े से लफ्जों में जीवन की सच्चाई...
नीरज
10 अक्टूबर 2008 को 11:34 am बजे
आपने कम लफ्ज़ों ज़िन्दगी की हक़ीक़त बयां कर दी...बहुत ख़ूब...
10 अक्टूबर 2008 को 12:00 pm बजे
क्या बात है फिरदौस जी । बढिया लिखा है
10 अक्टूबर 2008 को 12:13 pm बजे
कम लफ्जों में बहुत कुछ कह दिया आपने....
10 अक्टूबर 2008 को 12:15 pm बजे
नहीं बदलता
रोज़ी-रोटी के लिए
काम में जुटे रहने का सिलसिला...
" han jeevna ka sach yhee hai, jiske liye din raat inssan sochta or kerta hai'
regards
10 अक्टूबर 2008 को 1:12 pm बजे
असलह के बल पर ताक़त का मुज़ाहिरा...
हमारे ब्लॉग पर देखें...आपसे ही प्रेरणा ली है...
10 अक्टूबर 2008 को 2:57 pm बजे
'दाल रोटी न हो तो जग सूना
जीते मरते हैं दाल-रोटी से।'
10 अक्टूबर 2008 को 4:04 pm बजे
क्या बात है!! वाह!
11 अक्टूबर 2008 को 1:48 am बजे
sach kaha aapney. vastav mein yahi jindagi hai.