अच्छे लोग
कुछ अरसे बाद फिर उनका फ़ोन आया. उन्होंने हमसे एक दीनी विषय पर बात की, ख़ासकर इस्लाम के बारे में. साल में दो-तीन बार उनसे बात होती. हमारे काम का क्षेत्र एक था, लेकिन शहर अलग-अलग थे. एक बार उन्होंने हमें अपने घर आने का निमंत्रण दिया. हमने कहा कि इंशा अल्लाह. इस बात को भी कई साल गुज़र गए. एक बार उन्होंने फिर घर आने को कहा. हमने कहा कि उनके शहर में न जाने कब आना होगा. इस पर उन्होंने कहा कि वे अपनी ज़िन्दगी के आख़िरी वक़्त तक इंतज़ार करेंगे. उनके ये अल्फ़ाज़ दिल को छू गए. हमने सोचा कि जब भी उनके शहर में जाना होगा, तो उनके घर इंशा अल्लाह ज़रूर जाएंगे.
कुछ माह बाद वह वक़्त आ गया जब हम उनके शहर गए. पहली फ़ुर्सत मिलते ही हम उनके घर गए. हम उन्हें बरसों से जानते थे, लेकिन मुलाक़ात एक बार ही हो पाई है. घर पर उनकी पत्नी और बेटा था. उन्होंने बहुत ही अपनापन से हमारा स्वागत किया. हमने बहुत-सी बातें कीं. नाश्ता किया.
हमारे लिए वह एक बहुत ही ख़ूबसूरत और यादगार दिन था. गर्मियों का मौसम था. वह खिला और चमकदार सुनहरा दिन था. वाक़ई अच्छे लोगों से मिलना यादगार ही होता है. अच्छे लोग वक़्त को भी अच्छा बना देते हैं. उनकी ख़ासियत यह है कि वे एक नेक इंसान हैं. उन्होंने कभी किसी का बुरा नहीं किया होगा, ये हमारा यक़ीन हैं. अच्छाई और मेहनत की कमाई ही उनका सरमाया है.
-फ़िरदौस ख़ान
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