अम्मी बहुत याद आती हैं


इंसान की असल ज़िन्दगी वही हुआ करती है, जो वो इबादत में गुज़ारता है, मुहब्बत में गुज़ारता है, ख़िदमत-ए-ख़ल्क में गुज़ारता है. 
बचपन से देखा, अम्मी आधी रात में उठ जातीं और फिर तहज्जुद की नमाज़ पढ़तीं. नमाज़ के बाद तिलावत करतीं, तस्बीह पढ़तीं. इसी तरह उन्हें सुबह हो जाती. हमने भी अपनी अम्मी की देखादेखी तहज्जुद पढ़नी शुरू की. जब तहज्जुद में नमाज़ के लिए ख़ड़े होते हैं, तो अम्मी का ख़्याल आ जाता है कि वो अब अल्लाह के घर नमाज़ पढ़ रही होंगी. मां बच्चे के लिए पहला दर्स होती है, उस्ताद होती है. हमने भी अपनी अम्मी से ही शुरुआती तालीम ली. ज़िन्दगी के हर मुक़ाम पर अम्मी हमेशा साथ रहीं. इम्हितान होते, तो अम्मी इतनी फ़िक्र करतीं, मानो उनके इम्तिहान हों. जब नतीजा आता, तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं होता.
सच, किसी भी इंसान की ज़िन्दगी में मां का जो मु़क़ाम होता है, वो कभी किसी और का नहीं हो सकता. मां दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत औरत होती है. मां से अच्छा खाना कोई बना ही नहीं सकता. मां से ज़्यादा ख़्याल भी कोई नहीं रख सकता. हर बेटी की तरह हम भी हमेशा अपनी अम्मी जैसा ही बनना चाहते हैं. अम्मी की हर बात अच्छी लगती.
आज अम्मी की सालगिरह है. आज वो हयात होतीं, तो हम उनके साथ सालगिरह मनाते. अल्लाह अपने महबूब हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदकक़े में, पंजतन पाक के सदक़े में हमारी अम्मी की मग़फ़िरत करे, उन्हें जन्नतुल फ़िरदौस में आला मुक़ाम अता करे, आमीन.
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)

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