मुहब्बत और ईमान


मुहब्बत बिल्कुल ईमान की तरह हुआ करती हैं. जब बन्दा अपने ख़ुदा पर ईमान ले आता है, तो वे दर-दर भटकने से बच जाता है. इसी तरह जब इंसान को मुहब्बत हो जाती है, तो उसे अपने महबूब के दर के सिवा कोई और दर नज़र ही नहीं आता. 
फ़िरदौस ख़ान
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