सांप्रदायिक सदभाव की अलख जगाती पुस्तक

मोहम्मद अफ़ज़ाल
प्रस्तुत पुस्तक ’गंगा जमुनी संस्कृति के अग्रदूत’ में लेखिका फ़िरदौस ख़ान का उद्देश्य हिन्दुस्तान की उस तहज़ीब को प्रकाश में लाना है, जिसकी बुनियाद पर भारतीय समाज परवान चढ़ा. किसी भी देश की आत्मा को अगर समझना है, तो उसके लिए उस देश के समाज और उसकी प्रवृत्ति का अध्ययन अति आवश्यक है. जिस समाज का आधार प्रेम हो, वहां मानवता है. और अहिंसा मानवता का प्रतीक है. सम्राट अशोक के हाथ में जब तक तलवार रही, वह क्रूर और ज़ालिम कहलाया. जब उसने अहिंसा का दामन थामा, तो वह एक महान सम्राट अशोक बन गया. संसार में अगर कहीं कोई ऐसा समाज है, जहां मानवता, प्रेम और अहिंसा जिसके आचरण में विद्यमान है, वह हमारा प्रिय देश हिन्दुस्तान ही है. इसका वातावरण, जलवायु और इसकी मिट्टी जिसकी ख़ुशबू इतनी लुभावनी और मनभावन है कि जब उसकी ख़ुशबू वातावरण में रच-बसकर संसार में फैली तो इसकी ठंडक और महक को अरब तक महसूस किया गया और संसार के लिए देश आकर्षण आ केंद्र बन गया.

कोई व्यक्ति मानवता, प्रेम और अहिंसा का पाठ पढ़ने के लिए इस देश की ओर आकर्षित हुआ, तो कोई ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए हाथ में कांसा-ए- गदाई (भिक्षा पात्र) के साथ इसकी संस्कृति को नये आयाम देने के लिए यहां आया. क्योंकि वे जानते थे कि जिस सम्मान और प्रेम की उन्हें तलाश है, वह इसी पवित्र धरती पर उन्हें मिल सकता है. कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने तलवार के बल पर इसकी सभ्यता और संस्कृति को तबाह करने की कोशिश की, तो किसी ने छल-कपट और बल के द्वारा इस समाज की एकता की जड़ें हिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन ऋषि-मुनियों और औलिया, पीर-फ़क़ीरों ने अपनी अमर वाणी द्वारा मानवता, प्रेम और अहिंसा के इस दीपक को कभी बुझने नहीं दिया. उन्होंने यह सिद्ध करके दिखाया कि किसी जलधारा, मज़हब और धर्मों के उदगम स्थान अलग-अलग हो सकते हैं. मार्ग की कठिनाइयों और बाधाओं को दूर करके निरंतर आगे बढ़ना उनके जीवन का प्रतीक है, लेकिन संगम ही उसको अमरता प्रदान करता है.

 ’गंगा जमुनी संस्कृति के अग्रदूत’ पुस्तक के नाम से ही यह ज्ञात हो जाता है कि इसमें ऐसी महान हस्तियों का बखान है, जिन्होंने संसार के किसी अन्य भूमि के टुकड़े पर जन्म लिया हो, लेकिन इस देश की माटी, संस्कृति के आकर्षण, मोह, ज्ञान और प्रेरणा से अपने आपको अछूता न रख सके तथा उनके क़दम बरबस इस धरती की ओर खींच लाए. कुछ ऐसे महापुरुष भी इस पुस्तक के केंद्र में हैं, जिनका जन्म इस धरती पर मुस्लिम परिवार में हुआ, लेकिन उनकी लेखनी और जीवन शैली पर हिन्दू देवी-देवताओं का राज था. रसखान मुस्लिम होते हुए भी दूसरे जन्म की कामना करते हैं. वह भी इस शर्त के साथ कि जन्म चाहे किसी भी रूप में हो, लेकिन जन्म स्थल ब्रज ही हो. सम्राट अकबर की पत्नी ताजबीबी भगवान श्रीकृष्ण की भक्त थीं, जिसे सम्राट अकबर ने भगवान श्रीकृष्ण का ऐसा चित्र भेंट किया, जिसकी क़ीमत चित्रकार को इतनी दी कि उसे जीवन में कोई और चित्र बनाने की आवश्यकता ही न पड़े. इसके अलावा संत लालदास, भक्त लतीफ़ शाह, पेमी, अब्दुल समद, संत वाजिंद, संत बाबा मलेक ऐसे नाम हैं, जिन्होंने हिन्दू और हिन्दुस्तान की संस्कृति की सेवा की. इसमें कोई शक नहीं कि अगर उन्होंने यह कार्य किसी मुस्लिम देश में किया होता, तो उन्हें मौत की नींद सुला दिया जाता. मगर हमारी संस्कृति की महान उपलब्धि यही है कि हिन्दू परिवार में जन्म लेकर इस्लाम और मुस्लिम परिवार में जन्म लेकर हिन्दू संस्कृति का बखान किया गया है अर्थात अभिव्यक्ति की आज़ादी भी हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है.

लेखिका फ़िरदौस ख़ान ने प्रस्तुत पुस्तक में 55 महान हस्तियों का बखान किया है. उनमें से कुछ ऐसे महापुरुष भी हैं, जिन्होंने न तो इस धरती पर जन्म लिया और न ही वे कभी इस धरती पर आकर बसे, लेकिन उन्होंने भी अत्यंत कठिन मार्ग पर चलकर जनमानस की सेवा की. अर्थात जन्म,  उदगम स्थान और मार्ग कोई भी हो दानवता रूपी क्रूर राक्षस को इस धरती से मिटाना उनका उद्देश्य रहा. संसार में जहां कहीं भी प्रेम, मानवता और भाईचारे का पाठ पढ़ाया जाता है, वहां भी भारतीय संस्कृति की ही आत्मा बसती है. लेखिका ने जिस सुंदर ढंग से 55 महान अनमोल मोतियों को पुस्तक रूपी अटूट माला में पिरो दिया, जिसका लाभ दिव्य दृष्टि रखने वाले पारखी पाठकजन अवश्य उठाएंगे.

लेखिका फ़िरदौस ख़ान का इस पुस्तक के लेखन का उद्देश्य मुस्लिम संत-फ़क़ीरों द्वारा जगाई गई प्रेम, अहिंसा और भाईचारे की अलख से जनमानस को अवगत कराना है. ये संत-फ़क़ीर बेशक राष्ट्रीय एकता का प्रतीक और गंगा-जमुनी तहज़ीब के स्तंभ हैं. अफ़सोस की बात तो यह है कि इनका ज़िक्र अकसर लोगों की ज़ुबान पर आता तो है,  लेकिन वो इसकी आत्मा से दूर और इसके अर्थ से आज तक नावाक़िफ़ रहे हैं. इस तहज़ीब को परवान चढ़ाने के लिए सिर्फ़ हाथ से हाथ मिलाना काफ़ी नहीं, बल्कि साथ-साथ चलकर ऐसे मधुर संगम को प्राप्त करना है, जहां केवल प्रेम, अहिंसा और मानवता का वास हो.
(लेखक मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय संयोजक हैं)


किताब का नाम : गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत
लेखिका : फ़िरदौस ख़ान
पेज : 172
क़ीमत : 200 रुपये

प्रकाशक
ज्ञान गंगा (प्रभात प्रकाशन समूह)
205 -सी, चावड़ी बाज़ार
दिल्ली-110006

प्रभात प्रकाशन
 4/19, आसफ़ अली रोड
दरियागंज
नई दिल्ली-110002
फ़ोन : 011 2328 9555

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