क़ातिल उधर भी हैं, क़ातिल इधर भी हैं...

ये देखकर बहुत दुख होता है कि धर्म के नाम पर, मज़हब के नाम पर आज बेगुनाहों का ख़ून बहाया जा रहा है... ऐसी ख़बरे देख-सुन कर तकलीफ़ होती है...

क़ातिल उधर भी हैं
क़ातिल इधर भी हैं...

वो धर्म के नाम पर
हत्या करते हैं
ये भी मज़हब के नाम पर
क़त्ल करते हैं
क़ातिल उधर भी हैं
क़ातिल इधर भी हैं...

उन्हें मानवता से
कोई सरोकार नहीं है
इन्हें भी इंसानियत से
कोई सरोकार नहीं है
क़ातिल उधर भी हैं
क़ातिल इधर भी हैं...

निर्दोषों का रक्त बहाकर
उनके मुख चमकते हैं
बेगुनाहों का ख़ून बहाकर
इनके चेहरे भी दमकते हैं
क़ातिल उधर भी हैं
क़ातिल इधर भी हैं...

मानवता के शव पर
वे अपना ध्यज लहराते हैं
इंसानियत की लाश पर
ये भी अपना परचम फहराते हैं...
क़ातिल उधर भी हैं
क़ातिल इधर भी हैं...
-फ़िरदौस ख़ान

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