तीज-त्यौहारों से बहुत सी ख़ूबसूरत यादें वाबस्ता हुआ करती हैं... शिवरात्रि भी एक ऐसा ही त्यौहार है... बहुत साल पहले हमने भी अपनी सहेली की मां के लिए बेल पत्र तोड़े थे... घर के पास वाले पार्क में बेल के कई दरख़्त थे... हम सुबह सवेरे अपनी सहेली के साथ पार्क जाते और बेल के बहुत से पत्ते तोड़ते... उसी से हमें पता चला कि शिवजी की पूजा के लिए किस तरह के बेल पत्र तोड़े जाते हैं... कोई भी पता खंडित नहीं होना चाहिए...
बेल के दरख़्त फलों से लदे हुए हैं... हमें बेल बहुत पसंद है... बेल के शर्बत के तो कहने ही क्या... रूहअफ़्ज़ा के अलावा बेल का शर्बत ही हमें सबसे ज़्यादा भाता है... गर्मियों में बेल का शर्बत ख़ूब बिकता है...
आज शिवभक्त शिवालय पर अर्पण के लिए बेल पत्र तोड़ रहे हैं... आज महाशिवरात्रि पर बेल के दरख़्त को देखकर बीते दिन याद आ गए...
अपना एक शेअर याद आ गया-
कोई सहरा भी नहीं, कोई समंदर भी नहीं
अश्क आंखों में हैं वीरान शिवालों की तरह...
मुहम्मद अल्लामा इक़बाल साहब ने भी क्या ख़ूब कहा है-
सूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बस्ती
आ एक नया शिवाला इस देश में बना दें...
बहरहाल, आप सभी को महाशिवरात्रि की मंगलकामनाएं...