न मुंह छुपा के जिओ...
लोग दो तरह के हुआ करते हैं... पहली तरह के लिए लोग परबत की तरह मज़बूत होते हैं... वो बड़ी से बड़ी मुसीबत का मुक़ाबला दिलेरी के साथ करते हैं...
दूसरी तरह के लोग बहुत कमज़ोर होते हैं... वो ज़रा ज़रा सी बात पर मुंह छुपा के बैठ जाते हैं...
ऐसे लोगों के लिए सिर्फ़ यही कहना चाहेंगे कि मुंह छुपाना बुज़दिली है...
बक़ौल साहिर लुधियानवी-
ना मुंह छुपा के जिओ, और ना सर झुका के जिओ
ग़मों का दौर भी आए, तो मुस्कुरा के जिओ
घटा में छुप के सितारें, फ़ना नहीं होते
अंधेरी रात के दिल में, दिये जला के जिओ
न जाने कौन सा पल मौत की अमानत हो
हर एक पल की ख़ुशी को गले लगा के जिओ
ये ज़िन्दगी किसी मंज़िल पे रुक नहीं सकती
हर एक मक़ाम से आगे क़दम बढ़ा के जिओ...
10 सितंबर 2015 को 10:54 am बजे
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.09.2015) को "सिर्फ कथनी ही नही, करनी भी "(चर्चा अंक-2095) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
12 सितंबर 2015 को 1:55 am बजे
beautiful