आंच न आए नाम पे तेरे...
-फ़िरदौस ख़ान
आकर्षण और मुहब्बत में बहुत फ़र्क़ हुआ करता है... आकर्षण उस ओस के क़तरे की तरह है, जो ज़रा-सी धूप की तपिश से फ़ना हो जाता है, जबकि मुहब्बत यही तपिश पाकर दहकने लगते है... इसी तरह हवस और मुहब्बत में भी ज़मीन और आसमान का फ़र्क़ है... हवस ज़िन्दगी तबाह करती है, जबकि मुहब्बत ज़िन्दगी को रौशन किया करती है...
अमूमन लोग आकर्षण को मुहब्बत समझकर हवस के रास्ते पर चल पड़ते हैं, जिसका नतीजा सिर्फ़ तबाही और बर्बादी ही हुआ करता है... बानगी देखें-
महिला पुलिस थाने पहुंच जाती है और इल्ज़ाम लगाती है कि उसके प्रेमी ने उसे प्रेमजाल में फंसाकर उसकी ज़िन्दगी तबाह कर दी. उसके प्रेमी ने शादी का वादा करके उससे ताल्लुक़ात बनाए और अब उसका दिल भर गया, तो शादी से मुकर रहा है. उसका प्रेमी पहले से शादीशुदा है, उसका अपना परिवार है, बच्चे हैं. इस मामले में महिला ही नहीं, बल्कि उसके प्रेमी का भी सुख-चैन छिन गया. ग़लती दोनों की है. अगर प्रेमी ने महिला को पहले ही अपने परिवार के बारे में सबकुछ बता दिया था, तो महिला की ग़लती ज़्यादा है, क्योंकि इस तरह के मामलों में सबसे ज़्यादा नुक़सान महिलाओं का ही होता है.
तस्वीर का दूसरा रुख़ भी देखें. किसी होटल में लड़की की लाश पड़ी है. लड़की ने ख़ुदकशी की है या उसका क़त्ल किया गया है. दोनों ही मामलों में लड़की की ज़िन्दगी ख़त्म हो गई. लड़की को किसी से प्रेम हुआ. दोनों ने क़समें-वादे किए. लड़की प्रेमी से मिलने होटल पहुंच गई. लड़के ने उससे ताल्लुक़ात बनाए और जब दिल भर गया, तो उसे अपने दोस्तों के हवाले करके चला गया. बाद में लड़की ने ख़ुदकशी कर ली या फिर वहशी दरिन्दों ने उसका क़त्ल कर दिया. इस मामले में क़ुसूरवार दोनों ही हैं, लेकिन ग़लती लड़की की ज़्यादा है, क्योंकि इस तरह के मामलों में सबसे ज़्यादा नुक़सान लड़कियों का ही होता है.
इन दोनों ही मामलों में मुहब्बत कहीं नज़र नहीं आती... अगर मुहब्बत होती, तो न महिला प्रेमी के ख़िलाफ़ पुलिस थाने पहुंचती और न ही लड़का अपनी प्रेमिका को अपने दोस्तों के हवाले करता...
मुहब्बत तो सिर्फ़ देना ही जानती है... हम तो ये मानते हैं... बाक़ी सबके अपने-अपने ख़्याल हैं...
फ़िल्मी गीतकार इंदीवर साहब ने भी क्या ख़ूब कहा है-
आंच न आए नाम पे तेरे
ख़ाक भले ही जीवन हो
अपने जहां में आग लग लें
तेरा जहां जो रौशन हो
तेरे लिए दिल तोड़ लें हम
घर क्या जग भी छोड़ दें हम...
तस्वीर : गूगल से साभार
6 नवंबर 2014 को 11:43 am बजे
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.11.2014) को "पैगाम सद्भाव का" (चर्चा अंक-1790)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
7 नवंबर 2014 को 11:51 am बजे
Bilkul sahi kaha aapne...ladkiyo ko ab dimag se kaam lena chahiye. Mohhabt ka matlab bhi samjhna chahiye
7 नवंबर 2014 को 2:29 pm बजे
सुन्दर सटीक रचना
7 नवंबर 2014 को 10:58 pm बजे
Hum bhi aapke khyaal se itefaak rakhte hain... Sunder prastuti !!
8 नवंबर 2014 को 12:58 pm बजे
सहमत हूँ आपसे दोनों ही मामलों में मुहब्बत कहीं नज़र नहीं आती... मुहब्बत में अहसास का होना लाज़िमी है...