मुहब्बत


ज़िंदगी में इंसान को वही मिलता है, जिसके वो क़ाबिल होता है... मुहब्बत का नूर भी हर किसी को नसीब नहीं होता... हमारे Sir कहते हैं कि जो शख़्स किसी इंसान से मुहब्बत नहीं कर सकता, वो ख़ुदा से भी मुहब्बत नहीं कर सकता...
हज़रत राबिया बसरी कहती हैं- इश्क़ का दरिया अज़ल से अबद तक गुज़रा, मगर ऐसा कोई न मिला, जो उसका एक घूंट भी पीता... आख़िर इश्क़ विसाले-हक़ हुआ...
बक़ौल निदा फ़ाज़ली-
हर एक शय हैं मोहब्बत के नूर से रौशन
ये रौशनी जो ना हो, ज़िन्दगी अधूरी हैं...
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3 Response to "मुहब्बत"

  1. Rajendra kumar says:
    10 जुलाई 2014 को 12:50 pm बजे

    आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.07.2014) को "कन्या-भ्रूण हत्या " (चर्चा अंक-1671)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

  2. Rewa Tibrewal says:
    11 जुलाई 2014 को 1:14 pm बजे

    wah bahut khoob

  3. dr.mahendrag says:
    12 जुलाई 2014 को 5:59 pm बजे

    अंदाज तो करिये ,मुहब्बत न होती तो ज़माने का क्या होता ? उम्दा प्रस्तुति

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