वक़्त...

वक़्त से बड़ा कोई मरहम नहीं... और वक़्त से बड़ा कोई ज़ालिम भी नहीं है... क्योंकि परेशानी का वक़्त कटता नहीं और हसीन लम्हे बहुत जल्दी बीत जाया करते हैं... मुहब्बतें और रफ़ाक़तें भी गुज़रते वक़्त के साथ-साथ माज़ी का भूला-बिसरा क़िस्सा और यादें बनकर ही रह जाती हैं...
एक शायर ने कहा है-
हम अपनी कहानी किससे कहें, खु़द हमको झूठी लगती है
वो कौन था, जिसको चाहा था, ऐ उम्रे-गुरेज़ां भूल गए...
 
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