हम बहुत शर्मिन्दा हैं...
ऐ हिन्द की देवी !
हम बहुत शर्मिन्दा हैं...
तेरे सच्चे सपूत होने का
दावा करने वाले ही बने हैं
तेरी संतान की ख़ून के प्यासे
वो गिद्धों की तरह
टूट पड़ते हैं
कभी किसी मासूम पर
फिर नोंच लेते हैं
उसकी बोटियां
उसके जिस्म ही नहीं
बल्कि
उसकी तक को कर देते हैं
लहूलुहान
जब
इतने पर भी नहीं थमता
दरिन्दगी का क़हर
तो
मासूमों को कर देते हैं
ज़िन्दा आग के हवाले
मासूमों की चीख़ों से
कांप उठता है
धरती का कलेजा
इंसानियत होती है शर्मसार
लेकिन
ऊंचा रहता है
उनके धर्म का झंडा...
-फ़िरदौस ख़ान
हम बहुत शर्मिन्दा हैं...
तेरे सच्चे सपूत होने का
दावा करने वाले ही बने हैं
तेरी संतान की ख़ून के प्यासे
वो गिद्धों की तरह
टूट पड़ते हैं
कभी किसी मासूम पर
फिर नोंच लेते हैं
उसकी बोटियां
उसके जिस्म ही नहीं
बल्कि
उसकी तक को कर देते हैं
लहूलुहान
जब
इतने पर भी नहीं थमता
दरिन्दगी का क़हर
तो
मासूमों को कर देते हैं
ज़िन्दा आग के हवाले
मासूमों की चीख़ों से
कांप उठता है
धरती का कलेजा
इंसानियत होती है शर्मसार
लेकिन
ऊंचा रहता है
उनके धर्म का झंडा...
-फ़िरदौस ख़ान
5 मई 2014 को 4:34 pm बजे
पास देस में छुरी धर जपत राम का नाम ।
जमुना गए जमुना दास, गंगा गंगा राम ।१४८७।
भावार्थ : -- पार्श्व देश में छुरी रखे हैं राम नाम क जाप किए जमुना आए जमुना दा गन्गा आए 'गंगाराम' ॥
सुभ अरु असुभ सलिल सब बहई । सुरसरि कोउ अपुनीत न कहई ॥
समर्थ कहुँ नहिं दोषु गोसाईं । रबि पावक सुरसरि की नाईं ॥
----- ॥ गोस्वामी तुलसी दास ॥ -----
अर्थात : -- गंगा जी के जल में शुभ अशुभ सभी कुछ बहता है । खल-भल सभी जन इसका नाम लेते हैं भलजन आदर के साथ, खलजन अनादर के साथ । रवि, अग्नि, और गंगा जी की भांति समर्थ का कुछ दोष नहीं होता ॥