भ्रष्ट कौन...?
हमारे मुल्क में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें दिन भर कड़ी मेहनत करने के बाद भी मुश्किल से दो वक़्त की रोटी नसीब हो पाती है... जिस दिन उन्हें काम नहीं मिलता, उस दिन उनके घर का चूल्हा भी नहीं जल पाता... ये लोग रोज़ कुंआ खोदते हैं और रोज़ पानी पीते हैं...
उम्मीदवार जब इन मेहनतकशों से अपने लिए मतदान के लिए कहते हैं, तो इनका जवाब होता है कि मतदान के लिए वे अपनी दिहाड़ी नहीं छोड़ सकते, क्योंकि अगर काम नहीं करेंगे, तो खाएंगे कहां से...?
इस पर उम्मीदवार इन लोगों से कहते हैं कि एक दिन की दिहाड़ी के पैसे हमसे ले लो और हमारे हक़ में मतदान कर दो... इस पर ये लोग (सभी नहीं) उम्मीदवार से दिहाड़ी के पैसे लेकर मतदान कर देते हैं...
हमारी नज़र में अपनी दिहाड़ी के पैसे लेकर मतदान करने वाले ये मज़दूर भ्रष्ट नहीं हैं... बल्कि भ्रष्ट वे लोग हैं, जो इनकी मजबूरी का फ़ायदा उठाते हैं... और सबसे ज़्यादा भ्रष्ट वह व्यवस्था है, जिसमें ग़रीब आदमी एक दिन काम न करे, तो उसे और उसके परिजनों को भरपेट खाना तक नसीब नहीं हो पाता है...
7 मार्च 2014 को 3:44 pm बजे
सियासत के पैरोकारों की मनमानी यूं ही चलती रही, तो एक दिन ये कोख में पड़ी जान से भी बोट निकाल लेंगे.....