नये रास्ते...
हमेशा एक ही रास्ते पर चलना कितना उबाऊ लगता है... और रास्ते बदल-बदल कर चलना कितना भला लगता है... अब समझ में आया कि पापा हमेशा रास्ते बदल-बदल कर क्यों चला करते थे... हम जब भी पापा के साथ कहीं जाते, तो देखते कि हम जिस रास्ते से जाते थे, उस रास्ते से वापस कभी नहीं आते थे... इसलिए हमें रास्ते याद नहीं रहा करते थे... हमने पापा से पूछा कि वे जिस रास्ते से जाते हैं, उस रास्ते से वापस क्यों नहीं आते, तो वे कहते कि एक ही रास्ते पर चलना बहुत उबाऊ लगता है... पापा को बहुत से रास्ते मालूम थे... हमें यह सोचकर ही बहुत गर्व महसूस होता था कि पापा को कितने सारे रास्ते मालूम हैं... हमारे भाई सनव्वर को भी यही आदत है... हम सनव्वर के साथ एक कॊम्पलैक्स गए... वह हमें जिस रास्ते से लेकर गया, उस रास्ते से हम पहले कभी नहीं गए थे... वापसी पर तो रास्ता और भी भला लगा... सनव्वर को भी पापा की ही तरह बहुत से रास्ते मालूम हैं... सच ! कितना भला लगता है हमेशा नये-नये रास्तों से आना-जाना...
25 फ़रवरी 2014 को 4:08 pm बजे
यह एक अंतरतम प्रसंग है जो मेरी माताश्री ने एक दिन सुनाया था
उन्होंने कहा : -- जब हम अपनी किसी सखी के विवाह उत्सव में सम्मिलित होते तब दुल्हे से पूछते 'जिस रस्ते तुम आए हो उस रस्ते से और कौन कौन आया है ?' दुल्हा यदि बुद्धिमान होता तो सही उत्तर देता, मूर्ख होता तो कहता 'ये गड़ेरिया ये बाराती वो चौकी दार, सब उसी रस्ते से आए हैं..,
इस प्रश्न का सही उत्तर था : -- मेरे भाई-बहिन आए हैं.....
26 फ़रवरी 2014 को 9:11 am बजे
आज 26/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
26 फ़रवरी 2014 को 12:53 pm बजे
नए नए रास्तों से जुडी पुरानी सी यादें ...