नज़रिया...
अकसर छोटी-छोटी चीज़ें ज़िंदगी का नज़रिया बदल देती हैं... हमारी मम्मा सब्ज़ी, फलों के छिलके और सूखी रोटी कभी कूड़ेदान में नहीं डालतीं... इन्हें वह दरवाज़े के बाहर सड़क पर एक तरफ़ रखवा देती हैं... जिसे गायें खा लेती हैं... हमारे इलाक़े में बहुत-से आवारा पशु हैं, जो भूख लगने पर अकसर कूड़ा-कर्कट खाते देखे जाते हैं... सब्ज़ियों, फलों के छिलकों और सूखी रोटी को देखते ही ये खाने के लिए आ जाते हैं...
मम्मा की देखा-देखी अब गली की और महिलाएं भी ऐसा करने लगी हैं... हमारे यहां कचरा उठाने वाला हर रोज़ नहीं आता... ऐसे में सब्ज़ियों और फलों के छिलके बाहर डालने से जहां आवारा पशुओं का कुछ भला हो जाता है, वहीं छिलकों से कूड़ेदान का कूड़ा भी सड़ता नहीं है...
अब तो गली के कोने पर बिजली के खंबे के पास एक जगह बन गई है, जहां कुछ लोग हरा चारा भी लाकर डाल देते हैं...
जो चीज़ें हमारे काम की नहीं होतीं, उन्हें कूड़ेदान में फेंकने की बजाय उनका किसी ऐसी जगह इस्तेमाल किया जा सकता है, जहां उनकी ज़रूरत हो...
27 दिसंबर 2013 को 1:41 am बजे
बहुत खूब लिखा आपने।
22 फ़रवरी 2014 को 9:28 pm बजे
अकसर छोटी-छोटी चीज़ें ज़िंदगी का नज़रिया बदल देती हैं...nice