आग का दरिया...

तुम कहते हो-
तुम्हारी हर इक  तहरीर
आग का दरिया लगती है
जिसके हरेक लफ़्ज़ में
न जाने कौन-सी
आग समाई है...
जिसे पढ़ते-पढ़ते
मैं
उसी आग के दरिया में
डूबता चला जाता हूं...

ये कौन-सी आग है
जो मेरी रूह तक को
खु़द में
समेट लेना चाहती है
और
मैं भी ताउम्र
इस आग में
डूबे रहना चाहता हूं...

लेकिन
तुम ये नहीं जानते
मैं लफ़्ज़ लिखती ही नहीं
इन्हें जीती भी हूं...
मेरी ज़िंदगी खु़द
आग का दरिया
बनकर रह गई है...
जिसकी वजह
तुम ही तो हो...
-फ़िरदौस ख़ान

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