मिट्टी के कोरे कूंडे टंगे हैं...

गरमी से बेहाल
प्यासी चिड़ियों के लिए
घने दरख्तों की शाख़ों पर
ठंडे पानी से भरे
मिट्टी के कोरे कूंडे टंगे हैं...
किसी न ख़त्म होने वाले
सवाब की तरह...
-फ़िरदौस ख़ान
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15 Response to "मिट्टी के कोरे कूंडे टंगे हैं..."

  1. डॉ. मनोज मिश्र says:
    19 मई 2010 को 10:39 am बजे

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.

  2. Mithilesh dubey says:
    19 मई 2010 को 10:46 am बजे

    सच कहा आपने ।

  3. संगीता स्वरुप ( गीत ) says:
    19 मई 2010 को 11:23 am बजे

    संवेदनशील....सुन्दर अभिव्यक्ति

  4. Unknown says:
    19 मई 2010 को 12:06 pm बजे

    waah !

  5. kunwarji's says:
    19 मई 2010 को 12:49 pm बजे

    अनुपम....

    कुंवर जी,

  6. SANJEEV RANA says:
    19 मई 2010 को 1:06 pm बजे

    बहुत सुंदर विचार

  7. shikha varshney says:
    19 मई 2010 को 2:28 pm बजे

    बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति.

  8. संजय भास्‍कर says:
    19 मई 2010 को 2:49 pm बजे

    एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

  9. Udan Tashtari says:
    19 मई 2010 को 4:37 pm बजे

    शानदार अभिव्यक्ति!

  10. अमिताभ मीत says:
    19 मई 2010 को 6:53 pm बजे

    यक़ीनन ! बहुत ख़ूब !!

  11. संजय @ मो सम कौन... says:
    19 मई 2010 को 10:48 pm बजे

    सच में, यह सवाब ही तो है।

  12. कहत कबीरा-सुन भई साधो says:
    20 मई 2010 को 5:01 pm बजे

    अति उत्तम. आज इस तरह के लेखन की बहुत आवश्यकता है, जो अपनी परंपराओं और संस्कृति सर ओत-प्रोत हो.

  13. Akanksha Yadav says:
    21 मई 2010 को 11:44 am बजे

    विलक्षण...वाह !!

    ____________________________
    'शब्द-शिखर' पर- ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!

  14. सरफ़राज़ ख़ान says:
    24 मई 2010 को 7:38 pm बजे

    संवेदनशील....सुन्दर अभिव्यक्ति.....

  15. Unknown says:
    26 मई 2010 को 10:16 pm बजे

    अति उतम

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