ज़िन्दगी के आंगन में
मुहब्बत की चांदनी बिखरी है
हसरतों की क्यारी में
सतरंगी ख़्वाबों के फूल खिले हैं
ख़्वाहिशों के बिस्तर पर
सुलगते अहसास की चादर है
इंतज़ार की चौखट पर
बेचैन निगाहों के पर्दे हैं
माज़ी के जज़ीरे पर
यादों की पुरवाई है
फिर भी
ज़िन्दगी के आंगन में
मुहब्बत की चांदनी बिखरी है...
-फ़िरदौस ख़ान
7 मार्च 2010 को 10:26 pm बजे
"शब्दों का चयन खूबसूरत है........"
प्रणव सक्सैना
amitraghat.blogspot.com
7 मार्च 2010 को 10:40 pm बजे
Ek achi nazm.
8 मार्च 2010 को 12:08 am बजे
ज़िन्दगी के आंगन में
मुहब्बत की चांदनी बिखरी है...
......ख्वाहिशों के बिस्तर.........
........................बेचैन निगाहों के पर्दे .........
क्या कहें......बस बहुत खूब...हमेशा की तरह
8 मार्च 2010 को 12:03 pm बजे
माजी के जज़ीरे पर
यादों की पूर्वाई है ....
बहुत नाज़ुक, बहुत खूबसूरत ख्याल है ....
8 मार्च 2010 को 12:04 pm बजे
bahut hi sundar bhav.