किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए...
इबादत...सिर्फ़ नमाज़ पढ़ने या रोज़े रखने का ही नाम नहीं है...बल्कि इबादत का दायरा इससे भी कहीं ज़्यादा वसीह (फैला) है...किसी की आंख के आंसू अपने दामन में समेट लेना...किसी उदास चेहरे पर मुस्कराहट बनकर बिखर जाना...भी इबादत का ही एक हिस्सा है...
बक़ौल निदा फ़ाज़ली :
घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए...
बक़ौल निदा फ़ाज़ली :
घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए...
8 सितंबर 2009 को 2:47 pm बजे
वाह जी फिरदौस जी बहुत खूब बहुत ही अच्छे थॉट और साथ में निदा फाजली जी का शेर सोने पे सुहागा
8 सितंबर 2009 को 3:46 pm बजे
बिलकुल दुरुस्त फरमाया आपने.
दरअसल खुदा की इबादत किसी एक दायरे में नहीं है.
इंसानों को तकलीफ पंहुचाने से परहेज़, दूसरों की मदद करना, पाकीज़ा मोहब्बत भी तो एक तरीके की इबादत है.
8 सितंबर 2009 को 4:27 pm बजे
बिलकुल सही कहा आपने ..
8 सितंबर 2009 को 9:27 pm बजे
सही पूजा तो यही है !!