किसी को देखते रहना नमाज़ है तेरी...


रमज़ान का मुबारक महीना आ चुका है...दिन रोज़े में और रात ज़िक्रे-इलाही में गुज़र रही है...यानि फ़िज़ां इबादत की खुशबू से महक रही है... इन दिनों मेल और एसएमएस भी ऐसे ही मिल रहे हैं..
मसलन...
मुबारक हो आपको एक महीना रहमत का
चार हफ़्ते बरकत के
30 दिन मग़फ़िरत के
720 घंटे पाकीज़गी के
43200 मिनट हिदायत के
2592000 सेकेंड नूर के...

दूसरा संदेश
इबादत के बदले फ़िरदौस (स्वर्ग) मिले
यह मुझे मंज़ूर नहीं
बेलोस इबादत करता हूं
मैं कोई मज़दूर नहीं...

बेशक ख़ुदा की इबादत से बढ़कर कुछ नहीं...और आशिक़ (बंदा) अपने महबूब (ख़ुदा) से इबादत का सिला नहीं चाहता...यही तो है बन्दगी, इबादत और मुहब्बत है, जिसमें पाने की नहीं, फ़क़्त ख़ुद को फ़ना करने की हसरत होती है, ...अपने महबूब के लिए...

शायरों ने मोहब्बत को इबादत से जुदा नहीं माना है...
बक़ौल अल्लामा मुहम्मद इक़बाल साहब-
अज़ान अज़ल से तेरे इश्क़ का तराना बनी
नमाज़ उसके नज़ारे का इक बहाना बनी
अदा-ए-दीदे-सरापा नयाज़ है तेरी
किसी को देखते रहना नमाज़ है तेरी......
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5 Response to "किसी को देखते रहना नमाज़ है तेरी..."

  1. Fauziya Reyaz says:
    7 सितंबर 2009 को 8:25 am बजे

    bahut khoob kya baat hai....

  2. निर्मला कपिला says:
    7 सितंबर 2009 को 8:40 am बजे

    बेशक ख़ुदा की इबादत से बढ़कर कुछ नहीं...और आशिक़ (बंदा) अपने महबूब (ख़ुदा) से इबादत का सिला नहीं चाहता...यही तो है बन्दगी, इबादत और मोहब्बत...जिसमें पाने की नहीं, फ़क़्त ख़ुद को फ़ना करने की हसरत होती है...अपने महबूब के लिए..
    बहुत खूबसूरत एहसास है येही सची बन्दगी है वर्ना लोग मतलव के लिये ही भगवान को याद करते हैं बहुत बहुत मुबारक हो इस शुभ अवसर पर्

  3. अफ़लातून says:
    7 सितंबर 2009 को 11:07 am बजे

    आपकी रूहानियत से ओतप्रोत भावना अत्यन्त प्रभावी हैं ।

  4. बेनामी Says:
    7 सितंबर 2009 को 1:41 pm बजे

    सुंदर विचार।
    वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

  5. Unknown says:
    7 सितंबर 2009 को 3:28 pm बजे

    अपने महबूब के लिए...
    फ़क़्त ख़ुद को फ़ना करना...
    अदा-ए-दीदे-सरापा नयाज़ है तेरी
    किसी को देखते रहना नमाज़ है तेरी...
    वल्लाह.... क्या बात है.
    आप जिस सादगी और खूबसूरती से चंद अल्फाजों में गहरे जज़्बात को बयाँ कर देती हैं वो काबिल-ए-तारीफ़ है.

    इबादत के बदले फ़िरदौस (स्वर्ग) मिले
    यह मुझे मंज़ूर नहीं........
    यह भी मुमकिन है कुछ लोग फिरदौस के लिए इबादत करते हों?

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