वक़्त का दरिया
वक़्त कभी किसी के लिए नहीं ठहरता... कुछ साल ऐसे हुआ करते हैं, जो यादों के माज़ी को ख़ूबसूरत यादें देकर जाते हैं और कुछ साल अपने में दर्द समेटे होते हैं... ये साल भी जा रहा है, माज़ी को कई ख़ूबसूरत यादों की सौग़ात सौंपकर... कुछ लम्हे मुहब्बत से सराबोर हैं, तो कुछ लम्हों में दर्द समाया है...
अब बस इतना करना है कि ख़ूशनुमा लम्हों को यादों के संदूक़ में क़रीने से सहेज कर रख देना है, अहसास के मख़मली रुमाल में लपेट कर... और दर्द में भीगे लम्हों को किसी ऐसी जगह दफ़न कर देना है, जहां से कभी किसी का गुज़र तक न हो...
मुहब्बत के कुछ लम्हे अपने साथ भी रखने हैं... जिन्हें वक़्त के दरिया में बहते रहना है, ताकि ये जहां-जहां से गुज़रें.... उस धरती की फ़िज़ा को मुहब्बत से महकाते रहें...
30 दिसंबर 2015 को 7:17 pm बजे
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-12-2015 को चर्चा मंच पर अलविदा - 2015 { चर्चा - 2207 } में दिया जाएगा । नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ
धन्यवाद
31 दिसंबर 2015 को 10:08 pm बजे
बेहतरीन और उम्दा प्रस्तुति....आपको सपरिवार नववर्ष की शुभकामनाएं...HAPPY NEW YEAR 2016...
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1 जनवरी 2016 को 12:10 am बजे
सही कहा। सुंदर क्षणों को संजोना बुरी यादों को दफ्न करना यही सच्चा संकल्प है।