ईमान...
-फ़िरदौस ख़ान
हमारी एक आशनाई हैं... उन्हें बात-बात पर क़सम खाने की आदत है... हर बात पर कहती हैं कि अगर वे झूठ बोलें, तो उन्हें मरते वक़्त ईमान नसीब न हो... ’ईमान से’ तो उनका तकिया कलाम है...
हमने उनसे कई बार कहा कि इस तरह बात-बात पर क़सम न खाया करें... जिसे आपकी बात पर यक़ीन करना होगा, वो बिना क़सम के भी कर लेगा और जिसे यक़ीन नहीं करना होगा, वो यक़ीन नहीं करेगा, भले ही आप कितनी ही क़सम क्यों न खाएं... लेकिन उन्होंने अपनी आदत नहीं छोड़ी...
कुछ रोज़ पहले जब वह हमसे बात करते हुए क़सम खाने लगीं, तो हमने उनसे पूछा कि ईमान क्या है?
वह सकपका गईं और कहने लगीं कि ईमान, ईमान होता है... और क्या होता है...
हमने कहा कि ये बात तो हम भी जानते हैं कि ईमान, ईमान होता है, जैसे सूरज, सूरज होता है, पर आख़िर ईमान होता क्या है?
अब उन्हें ग़ुस्सा आ गया और कहने लगीं कि उन्हें नहीं पता कि ईमान क्या होता है... बस उन्होंने बचपन से सुना है कि ईमान होता है...
हमने कहा कि जब आपको ये ही नहीं पता कि ईमान होता क्या है, तो आप यूं ही ईमान की क़सम खाती रहती हैं...
हमने यही सवाल एक और शख़्स से किया तो, उन्होंने जवाब दिया कि जिसका ईमान कमज़ोर होता है, वही ऐसे सवाल करता है...
बहरहाल, जब तक इंसान को ये ही नहीं पता होगा कि ईमान आख़िर है क्या, तो वो ईमान की क्या ख़ाक हिफ़ाज़त करेगा...
26 अक्टूबर 2015 को 2:50 pm बजे
वाह..यह भी खूब रही..