अल्लाह अल्लाह वाली अप्पी...
मासूम बच्चे फ़रिश्ता सिफ़्त हुआ करते हैं... कई बार बच्चे ऐसी बातें कह जाते हैं, जिसकी तरफ़ कभी हमारा ख़्याल ही नहीं जाता... हमारी बिटिया (भतीजी) फ़लक हमें 'अल्लाह अल्लाह वाली अप्पी' कहती है... हमारी छोटी बहन यानी अपनी छोटी फूफी को छोटी अप्पी कहकर बुलाती है... अपनी मां को अम्मी कहती है... और अपनी दादी जान यानी हमारी अम्मी को 'अल्लाह अल्लाह वाली अम्मी' कहती है...
एक रोज़ हमने अपनी भाभी से पूछा कि फ़लक हमें 'अल्लाह अल्लाह वाली अप्पी' और अम्मी को 'अल्लाह अल्लाह वाली' अम्मी क्यों कहती है... उन्होंने बताया कि वो हम दोनों को इबादत करते हुए देखती है, इसलिए ऐसा कहती है... जब उसने थोड़ा-थोड़ा बोलना सीखा, तो अकसर कहती- अप्पी और अम्मी दोनों-दोनों अल्लाह अल्लाह कल लई (कर रही) हैं... फ़ोन पर बात होती है, तो सबसे पहले अपनी तोतली ज़ुबान में पूछती है- अप्पी ! अल्लाह अल्लाह कल ली ?
अपनी बिटिया का दिया ये लक़ब 'अल्लाह अल्लाह वाली अप्पी' हमें बहुत अज़ीज़ है... अल्लाह हमें अल्लाह वाली ही बनाए, आमीन
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)
9 सितंबर 2015 को 1:29 pm बजे
वाह ! फलक की नजरें बहुत जहीन हैं