फूल और नारियल...
फ़िरदौस ख़ान
औरंगज़ेब रोड का नाम बदलने की ख़बर पर बरसों पुराना एक वाक़िया याद आ गया... बात उस वक़्त की है, जब हम बारहवीं क्लास में थे... स्कूल में आने के बाद हमें पता कि आज म्यूज़िक टीचर की सालगिरह है... हम बाहर जाकर कुछ ख़रीद नहीं सकते थे, इसलिए हम माली के पास गए और उससे कहा कि आज हमारे टीचर की सालगिरह है, क्या हमें कुछ फूल मिल सकते हैं... उसने हमें फूल लेने की इजाज़त दे दी... हमने फूल लिए और अपने टीचर को सालगिरह की मुबारकबाद थी... टीचर ने फूल हारमोनियम पर रख दिए और कहने लगे कि आज तुम सबको एक ग़ज़ल सुनाता हूं... वो ग़ज़ल गाने लगे... साथ में हमारी सहेलियां भी थीं... उनके ग़ज़ल पूरी करते ही हमारी एक सखी ने हमारे दिए फूल उठाए और टीचर को देते हुए मुबारकबाद देने लगी... वो सखी की इस हरकत पर मुस्करा दिए और कहने लगे कि आज तुम्हें हरिद्वार का एक क़िस्सा सुनाता हूं...
हुआ यूं कि म्यूज़िक टीचर स्नान के लिए हरिद्वार गए थे... वहां उन्होंने फूल, नारियल और अन्य सामग्री नदी में प्रवाहित की... जहां वो खड़े से उससे कुछ दूरी पर एक व्यक्ति स्नान कर रहा था... जैसे ही नारियल उस तक पहुंचा, उसने झट से नारियल उठा लिया और कुछ मंत्र पढ़ते हुए उसे फिर से नदी में प्रवाहित कर दिया... वो ये सब देख रहे थे...
कहानी ख़त्म होते ही सबके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कराहट आ गई... हमारी सखी ने टीचर से माफ़ी मांगी...
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)
तस्वीर गूगल से साभार
0 Response to "फूल और नारियल..."
एक टिप्पणी भेजें