ख़ाक से उन्सियत
धूल भरी आंधियों वाला मई-जून का मौसम कब का गुज़र चुका है... ये रिमझिम बारिश की फुहारों का मौसम है... लेकिन ये दिल है कि अब भी उसी आंधियों के ख़ाक-धूल वाले मौसम में जाकर ठहर जाता है... क्यूं इतनी उन्सियत है इसे, गर्द भरे मौसम से... शायद इसलिए कि इंसान का वजूद ही ख़ाक से बना है और एक रोज़ इसे ख़ाक में ही मिल जाना है... और सबसे बढ़कर ज़िन्दगी भी तो ख़ाक हो चुकी है... फिर क्यूं न इसे ख़ाक से उन्सियत हो...
(Firdaus Diary)
तस्वीर गूगल से साभार
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