हरे कांच की चूड़ियां...
-फ़िरदौस ख़ान
आज फिर गली मे चूड़ी वाला आया... वह ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगा रहा था- चूड़ियां ले लो, चूड़ियां ले लो, रंग-बिरंगी चूड़ियां ले लो... जब भी चूड़ी वाले की आवाज़ आती... लड़की के क़दम दरवाज़े की जानिब बढ़ जाते... गली-मुहल्ले की औरतें चूड़ी वाले को घेर लेतीं... कोई लाल चूड़ियां ख़रीदती, कोई नीली-पीली चूड़ियां पहनती... लड़की को भी हर लड़की की तरह चूड़ियां बहुत पसंद थीं, लेकिन उसकी कलाइयां सूनी रहतीं... गली-मुहल्ले की औरतें टोकतीं कि कलाइयां ऐसे सूनी नहीं रखा करते अपशगुन होता है... लेकिन लड़की ने भी ज़िद कर रखी थी कि जब वो चूड़ियां लाकर अपने हाथ से पहनाएगा, तभी उसकी कलाइयां चूड़ियों से सजेंगीं... वरना उम्र भर यूं ही सूनी रहेंगी...
लड़का हज़ारों मील दूर परदेस में रहता था... वो नहीं जानती थी कि वो कब आएगा... बस उसे इतना याद है कि एक बार लड़के ने उससे पूछा था कि परदेस से उसके लिए क्या लाए... और लड़की ने कहा था कि उसे हरे कांच की चूड़ियां चाहिए... तब लड़के ने कहा था कि वो अपने हाथों से उसे चूड़ियां पहनाएगा... तब से वो उस लड़के का इंतज़ार कर रही है...
पेंटिंग : गूगल से साभार
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