अपना घर...
फ़िरदौस खान
जब हम अपनी एक क़रीबी रिश्तेदार के घर जाते हैं, तो रास्ते में एक घर पड़ता है... यूं तो वहां और भी घर हैं, लेकिन हमें यह घर बहुत अच्छा लगता है... इसलिए एक घर ही कहेंगे... ज़िक्र भी इसी घर का है... कोने का घर है, यानी उसके दो तरफ़ सड़क है... आसपास की जगह ख़ाली पड़ी है... इस घर की ख़ास बात यह है कि यह घर सिर्फ़ 17 गज़ ज़मीन पर बना है... ज़मीन के एक छोटे से टुकड़े पर एक कमरा बना है... कमरे के अंदर ही सीढ़ी है, जो छत पर जाती है... छत पर किचन, बाथरूम और टॊयलेट बने हुए हैं, जिनकी छतें टीन की चादरों से बनी हैं... एक दो छती भी है... घर के आगे चबूतरा बना है... चबूतरे के पास ही नल है... हम जब भी उधर जाते हैं, तो दूर से ही घर दिख जाता है... उस घर को देखना बहुत अच्छा लगता है... चबूतरे पर एक औरत बैठी रहती है... घर के काफ़ी सारे काम वो इसी चबूतरे पर बैठ कर करती है... वो कपड़े धोती है, बर्तन धोती है, सब्ज़ी काटती है, दाल-चावल बीनती है... उसके पास ही उसके दो छोटे-छोटे बच्चे खेलते रहते हैं... घर बहुत छोटा है, लेकिन उसका अपना है... यानी उसका अपना घर...
कितने प्यार से उसने इसे बनाया होगा, संवारा होगा... इसकी एक-एक ईंट में अपना घर होने की ख़ुशी का अहसास बसा होगा... है न...
इस दुनिया में कितने ही लोग ऐसे हुआ करते हैं, जिन्हें अपना घर कभी नसीब नहीं होता...
तस्वीर : गूगल से साभार
16 अक्टूबर 2014 को 1:57 pm बजे
कल 17/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
17 अक्टूबर 2014 को 11:12 am बजे
बहुत ही सुंदरता से भावों का प्रवाह बनाया है आपने
17 अक्टूबर 2014 को 2:43 pm बजे
वाकई अपना घर अपना ही होता है छोटा हो या बड़ा...भावपूर्ण पोस्ट..
17 अक्टूबर 2014 को 4:20 pm बजे
वाह क्या बात है। बेहद सुन्दर