बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी...
कुछ चीज़ें दिल के बहुत क़रीब होती हैं, जैसे कोई नज़्म, जिसे हमेशा सुनना अच्छा लगता है... कफ़ील आज़ार साहब की ऐसी ही एक नज़्म है
बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी... कॊलेज के दिनों में भी यह नज़्म बहुत अच्छी लगती थी... और आज भी उतनी ही पसंद है... कुछ चीज़ें कभी नहीं बदला करतीं...
नज़्म
लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे के तुम इतनी परेशां क्यूं हो
उंगलियां उठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ़
एक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ़
चूड़ियों पर भी कई तंज़ किए जाएंगे
कांपते हाथों पे भी फ़िकरे कसे जाएंगे
लोग ज़ालिम हैं हर एक बात का ताना देंगे
बातों बातों में मेरा ज़िक्र भी ले आएंगे
उनकी बातों का ज़रा-सा भी असर मत लेना
वरना चेहरे के तासुर से समझ जाएंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात ना करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी...
वाक़ई, इस नज़्म का कोई जवाब नहीं... एक-एक लफ़्ज़ दिल की गहराई में उतरता चला जाता है... और इंसान इसके जादू में खो जाता है... ख़ुदा कफ़ील आज़र साहब को जन्नतुल-फ़िरदौस में जगह दे, जो हमारे लिए इतने प्यारा कलाम लिखकर छोड़ गए...
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